सिवनी में क्रिकेट की तकनीक को टेनिस बॉल की क्रिकेट प्रतियोगिताओं के माध्यम से समाप्त करने के प्रयास के बीच जिला क्रिकेट संघ सिवनी की टीम को जबलपुर में आयोजित प्रतियोगिता का उप विजेता बनने पर इस स्तंभ के माध्यम से मैं सिवनी की टीम के साथ ही साथ जिला क्रिकेट संघ सिवनी को बधाई देना चाहता हूँ।
ऐसा वातावरण जबकि खिलाड़ियों के पास अभ्यास के लिये पर्याप्त मैदान न हों और ज्यादातर क्रिकेट की प्रतियोगिताएं भी टेनिस बॉल से आयोजित करवायी जा रही हों तब जिला क्रिकेट संघ सिवनी की टीम ने लेदर बॉल की संभाग स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करके यह साबित किया है कि प्रतिभा का हनन किसी भी तरह की परिस्थिति में नहीं किया जा सकता है।
समाचार माध्यमों से जानकारी मिली कि सिवनी की टीम ने फाईनल खेलने के पूर्व छिंदवाड़ा और बालाघाट जैसी सशक्त टीमों को धूल चटाने का काम किया है तो इसके लिये निश्चित रूप से जिला क्रिकेट संघ सिवनी भी साधुवाद का पात्र है जिसने क्रिकेट की प्रतिभाओं के निखारने का काम विपरीत परिस्थितयों में भी जारी रखा है।
देखने वाली बात यह भी है कि सिवनी में खेल मैदानों के सिमटते चले जाने के कारण क्रिकेट खिलाड़ियों के लिये अभ्यास की जगह ही शेष नहीं रह गयी है। ऐसी परिस्थितियों में कोई क्लब सक्रिय कैसे रह सकता है जबकि उसके पास पर्याप्त मैदान ही न हों। क्लब न होने की स्थिति में लेदर बॉल क्रिकेट की प्रतियोगिताएं आयोजित करवाने का भी शायद कोई औचित्य नहीं रह जाता होगा जिसके कारण खिलाड़ी टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने की तरफ बाध्य भी हो रहे होंगे।
दूसरे शहरों में अपेक्षाकृत ऐसी स्थिति नहीं है। छिंदवाड़ा या बालाघाट जैसे समीपस्थ जिलों की बात करें तो वहाँ आज भी खेल के मैदान पर्याप्त संख्या में माने जा सकते हैं लेकिन जन प्रतिनिधियों की उदासीनता और जिम्मेदार संस्थाओं के निकम्मेपन के कारण शायद सिवनी में ऐसी स्थिति नहीं है।
यहाँ सिवनी में खेल मैदानों को पाट दिया गया लगता है। अस्पताल का मैदान जिसे पूर्व में होमगार्ड मैदान कहा जाता था वहाँ इमारतें तानकर खिलाड़ियों की उम्मीदों को कुचल दिया गया। बस स्टैण्ड के समीप स्थित उर्दू स्कूल मैदान भी भवन बनाकर अत्यंत संकरा कर दिया गया है। सर्किट हाउस चौराहे पर चर्च से लगा हुआ छोटा सा मैदान भी पुलिस कंट्रोल रूम बनाकर समाप्त कर दिया गया। ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ पहले खिलाड़ी अभ्यास किया करते थे और उनमें से कई स्थानों पर प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती थीं लेकिन अब ऐसे स्थान शेष नहीं छोड़े गये हैं जिसके कारण सिवनी के खेल जगत में घोर निराशा घर कर चुकी है।
शेष रह गये मैदानों पर भी विभिन्न आयोजनों को अनुमतियां प्रदान कर दी जाती हैं जिसके कारण उनका होना या न होना, दोनों एक समान ही रह जाता है। कृत्रिम रूप से जो मैदान समाप्त कर दिये गये हैं उन्हें उनके मूल स्वरूप में वापस लाया जा सकता है बशर्ते शासन-प्रशासन राशि खर्च करने को तैयार हों।
विस्तृत क्षेत्र में छोटे-छोटे भवन बनाने के स्थान पर यदि विशालकाय इमारत बनाकर सभी छोटे-छोटे भवनों को उसमें शिफ्ट कर दिया जाये तो शहर के मध्य स्थित कई खेल मैदानों को वापस पुर्नजीवित किया जा सकता है। आवश्यकता है तो संबंधित अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ही साथ जन प्रतिनिधियों में जागरूकता की जिसके अभाव में खिलाड़ी निराश होते जा रहे हैं।
इंद्र नारायण ठाकुर