आबादी की ओर वन्यजीवों का रूख मंथन योग्य!

 

 

इन दिनों जंगलों में रहने वाले जीव आबादी की ओर रूख करते दिख रहे हैं। इस तरह की घटनाएं हाल ही में ज्यादा प्रकाश में आयी हैं जिस ओर वन विभाग के द्वारा ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इस स्तंभ के माध्यम से मैं इसी संबंध में अपनी बात रखना चाहता हूँ।

सिवनी में फोरलेन का कार्य लंबे समय तक बाधित रहा। काफी मुश्किलों के बाद इसके निर्माण कार्य को पुनः आरंभ करने की अनुमति दी गयी। इसके पीछे कारण यही बताया जाता रहा कि वन्यजीवों की सुरक्षा को प्रमुखता से रखा गया है। बताया जाता है कि जब वन्यजीवों की भी सुरक्षा के प्रति सभी आश्वस्त हो गये तभी इस कार्य को मंजूरी दी गयी।

फोरलेन में वर्तमान में जिस तरह से निर्माण कार्य किया जा रहा है उसमें वन्यजीवों के प्रति ठेकेदार संवेदनशील नहीं दिख रहे हैं। शायद यही कारण भी हो सकता है कि वन्यजीवों में बेचैनी हो और वे जंगल से निकलकर रिहायशी क्षेत्र की ओर रूख कर रहे हों। यदि वास्तव में यही कारण है तो संबंधित विभागों को चाहिये कि वे फोरलेन निर्माणकर्त्ता कंपनियों को हिदायतें अवश्य दें।

जो जंगली जीव अब रिहायशी क्षेत्रों की ओर रूख करने लगे हैं उनमें मांसाहारी प्राणियों का भी समावेश है। शाकाहारी प्राणी तो कई मर्तबा पूर्व में भी किसानों की फसल को क्षति पहुँचा रहे थे लेकिन अब मांसाहारी प्राणी इन किसानों के पालतू मवेशियों को ही अपना शिकार बनाने लगे हैं जिसके कारण निर्धन किसान, दोहरी मार झेलने के लिये मजबूर हो चले हैं। बाघ, तेंदुआ जैसे खतरनाक जीव सिर्फ मवेशी ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी घायल करने मेें कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। इन घायलों में से तो कुछ की मौत भी हो गयी लेकिन वन विभाग अपनी नींद से जागता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है।

वन विभाग की निष्क्रियता के कारण ऐसा भी संभव है कि कुछ लोग इन वन्य जीवों के द्वारा पहुँचाये जाने वाले नुकसान से बचने के लिये उनका शिकार करके, मुसीबत से छुटकारा पाने का निर्णय ले लेते होंगे। ऐसे में वन विभाग को चाहिये कि वह इन बातों पर मंथन अवश्य करे कि जंगली प्राणी, जंगलों से बाहर निकलने के लिये क्यों मजबूर हो रहे हैं। यदि वन विभाग के द्वारा ऐसा किया जाता है तो आम लोग तो सुरक्षित होंगे ही, साथ ही किसानों को होने वाले नुकसान से भी उनको बचाया जा सकेगा और वन्य जीवों की अति महत्वपूर्ण संपदा को भी सुरक्षित रखा जा सकेगा।

अवधेश यादव