अगर ट्रांजैक्शन हुआ असफल तो बैंक देंगे हर्जाना!

 

 

 

 

आरबीआई ने नियम बनाया, बैंक ग्राहकों को रोज देंगे 100 रुपये जुर्माना

(ब्यूरो कार्यालय)

मुंबई (साई)। ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस करते वक्त अक्सर ऐसा होता है कि खाते से पैसे तो कट जाते हैं, लेकिन मर्चेंट को भुगतान नहीं हो पाता। ऐसा डेबिट कार्ड स्वाइप करते वक्त भी होता है। ऐसा होने के बाद आपके पास कस्टमर केयर या बैंक का चक्कर लगाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।

जब तक आपके पैसे वापस आपके अकाउंट में नहीं आते, तब तक आपको मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संबंधित बैंक भी आपकी समस्या का समाधान करने में काफी वक्त लेते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं चलने वाला। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए इसके लिए नए दिशा-निर्देश तय किए हैं, जिससे ग्राहकों को बड़ी राहत मिलेगी।

क्या है फेल ट्रांजैक्शन : किसी मर्चेंट को पेमेंट करते वक्त अगर खाते से पैसे कट जाते हैं, लेकिन मर्चेंट को भुगतान नहीं हो पाता है तो इसे फेल्ड ट्रांजैक्शन कहा जाता है।

पांच दिनों के भीतर पैसे करने होंगे वापस : आरबीआई ने ई-कॉमर्स पेमेंट को और सुविधाजनक तथा सहूलियतभरा बनाने के लिए शुक्रवार को टर्न अराउंड टाइम (टीओटी) पर जारी अपनी गाइडलाइंस में स्पष्ट कर दिया है कि बैंकों को फेल्ड डेबिट कार्ड ट्रांजैक्शंस के मुद्दे को पांच दिनों के भीतर सुलझाना होगा।

इसके अलावा, केंद्रीय बैंक ने फेल्ड एटीएम, स्वाइप मशीन तथा आधार ऐनेबल्ड पेमेंट्स (एईपीएस) ट्रांजैक्शंस का मुद्दा पांच दिनों के भीतर तथा आईएमपीएस से जुड़े फेल्ड ट्रांजैक्शंस का मुद्दा एक दिन के भीतर सुलझाने का निर्देश दिया है।

तो ग्राहकों को हर दिन 500 रुपये जुर्माना देंगे बैंक : आरबीआई ने अपनी वेबसाइट पर जारी एक सर्कुलर में कहा है कि अगर बैंक या पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर मुद्दे का निर्धारित समय-सीमा के अंदर समाधान करने में नाकाम होते हैं तो उन्हें ग्राहक को प्रतिदिन 100 रुपये का जुर्माना भरना होगा।

फेल्ड ट्रांजैक्शंस के कई कारण : आरबीआई ने कहा, ग्राहकों की भारी तादाद में अनसक्सेसफुल या फेल्ड ट्रांजैक्शंस की शिकायतें आती हैं। पेमेंट फेल्योर होने के कई कारण हो सकते हैं, जो सीधे ग्राहक से जुड़े नहीं हो सकते हैं, जैसे कम्युनिकेशंस लिंक बाधित होना, एटीएम में कैश नहीं होना, सेशन का टाइम आउट हो जाना, विभिन्न कारणों से बेनिफिशियरिज को क्रेडिट नहीं हो पाना इत्यादि।

पहले मनमानी करते थे बैंक : इससे पहले, एक यूनिफॉर्म गाइडलाइन नहीं होने की वजह से इस तरह की शिकायतों के निपटारे के लिए हर बैंक के पास खुद की रिजॉल्यूशन एवं कंपेंशेसन पॉलिसी थी। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अप्रैल में मॉनिटरी पॉलिसी पर अपने स्पीच के दौरान इस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाते हुए इसका सही समाधान के लिए परामर्श प्रक्रिया शुरू की थी।

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