Covid-19 के लिए आइसोलेशन वार्ड बनी बोगियों को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में चलाना कितना सही?

(ब्‍यूरो कार्यालय)

नई दिल्‍ली (साई)।  कोरोना वायरस (Corona Virus Pandemic) के बढ़ते मामलों के बीच रेलवे द्वारा आइसोलेशन वार्ड (Railway isolation bogies) बनाई गई बोगियों को फिर से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों (Shramik special train) के लिए परिचालन में लाने का फैसला समझ से परे लग रहा है। अस्पतालों में कोविड के मरीजों के इलाज के लिए बिस्तरों की संख्या कम पड़ रही है।

देशभर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसके कारण सरकारी तथा निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बिस्तरों की संख्या कम पड़ रही है। ऐसे वक्त में इनके इलाज के लिए रेलवे द्वारा आइसोलेशन वार्ड में बदली गई बोगियों को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के लिए परिचालन में दोबारा लाने का फैसला समझ से परे लगता है। देश में कोरोना मरीजों की संख्या 1.31 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है और आने वाले वक्त में इस आंकड़े के तेजी से बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

1.31 लाख का आंकड़ा पार

हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों की संख्‍या 1.31 लाख से ज्‍यादा हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय (MoHFW) के मुताबिक, देश में अब तक 1,31,868 लाख से अधिक लोग कोविड-19 से प्रभावित हुए हैं। इनमें से 3,867 लोगों की मौत हो चुकी है। इस वक्‍त देश में 73,560 लोग कोरोना के सक्रिय मरीज हैं। हर दिन संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और इस बात पर कोई संदेह नहीं कि आंकड़े कभी भी भयावह हो सकते हैं। इसे मद्देनजर रखते हुए कभी भी अतिरिक्त बेड की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में रेलवे द्वारा काफी मेहनत कर बनाया गया आइसोलेशन वार्ड काफी कारगर साबित होता। लेकिन अब इन्हें दोबारा परिचालन में लाने से समस्या विकराल हो सकती है।

3,120 डिब्बों का होगा इस्तेमाल

रेलवे बोर्ड के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ये डिब्बे आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किए जाने के बाद यूं ही पड़े हुए हैं और उन्हें भी तैनात किया जाना बाकी है, ऐसे में रेलवे ने प्रवासी स्पेशल सेवाओं के लिए उनका उपयोग करने का निर्णय लिया है। 21 मई को जारी आदेश में कहा गया है, ‘बोर्ड चाहता है कि कोविड-19 मामलों में सहयोग के लिए निर्धारित किए गए 5,200 डिब्बों में से 60 फीसदी यानी 3120 डिब्बों का रेलवे श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने के लिए उपयोग करे। बोर्ड ने इसकी अनुमति दी है।’

हटा दिया गया था बीच का बर्थ

आइसोलेशन वार्ड बनाते समय इन डिब्बों से बीच का बर्थ हटा दिया गया था और नीचे के हिस्से को प्लाइवुड से जोड़ दिया गया था। बीच का बर्थ नहीं होने से इन डिब्बों वाली ट्रेनों में कम यात्री होंगे। अधिकारियों ने बताया कि यात्रा के दौरान इन डिब्बों में ऑक्सीजन टैंक, वेंटीलेटर और अन्य मेडिकल उपकरण हटा दिए जाएंगे।

अब तक इन डिब्बों का नहीं हुआ उपयोग

रेलवे ने भले ही देशभर में 5,200 से भी ज्यादा रेल डिब्बों को आइसोलेशन वार्ड के रूप बदला हो, लेकिन अभी तक उनमें से एक भी डिब्बे का इस तरह से उपयोग नहीं हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि या तो उन डिब्बों का रोगियों के लिए उपयोग हो या फिर श्रमिकों की ढुलाई में उपयोग हो। ऐसे कहीं खड़े रखने का कोई औचित्य नहीं बनता।

200 स्पेशल ट्रेन चलाने से डिब्बों की कमी

रेलवे ने फैसला किया है कि आगामी एक जून से देश के विभिन्न हिस्सों में 200 मेल/एक्सप्रेस स्पेशल रेलगाड़ी चलनी है। लंबी दूरी की किसी भी गाड़ी के लिए दो से तीन रैक तो साधारण सी बात है। दिल्ली से डिब्रूगढ़ जाने वाली ट्रेन के लिए तो पांच से छह रैक रखना पड़ता है। एक रैक में 24 डिब्बे भी मान लिया जाए तो हजारों डिब्बों की आवश्यकता निकल गई है। इसलिए अब यार्ड में बेकार पड़े डिब्बों पर रेल प्रशासन की नजर गई है।

गर्मी में शायद ही रेलवे के वार्ड का हो उपयोग

रेल अधिकारी का कहना है कि बैशाख-जेठ के तपते दिनों में रेलगाड़ी के नॉन एसी डिब्बों में 24 घंटे रहना जरा मुश्किल है। यात्रा के दौरान तो जब रेलगाड़ी दौड़ती है तो दरवाजे और खिड़की से हवा आती रहती है, लेकिन जब रेलगाड़ी के डिब्बे खड़े हों तो उसमें कितनी गर्मी लगेगी, यह सोचकर ही पसीना निकल जाता है। इसलिए 2,000 डिब्बों को छोड़ कर शेष डिब्बों को फिर से रेलगाड़ी में जोड़ने का फैसला हुआ है।

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