लिमटी की लालटेन 196
(लिमटी खरे)
2022 में 11 मार्च को रिलीज हुई द कश्मीर फाईल्स एक सिनेमा ही मानी जा सकती है। इसे लेकर वाद विवाद के दौर जारी हैं। आधे लोग इसे काश्मीर में कश्मीरी पण्डितों के साथ हुई त्रासदी निरूपित कर रहे हैं तो आधे इसे कपोल काल्पनिक बातों पर बनाई गई एक सामान्य सिनेमा ही बता रहे हैं। द काश्मीर फाईल्स ने महज 15 दिनों में ही दो सौ करोड़ का बिजनिस करके कीर्तिमान स्थापित कर लिया है इस बात में संदेह नहीं है, पर कहा जाता है कि सफलता, पैसा, शोहरत जब भी आती है साथ में कुछ न कुछ बुराई लेकर ही आती है।
याद है हमें कि जब स्कूल में पढ़ा करते थे तब सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता पाठ्यक्रम का हिस्सा हुआ करती थी, जिसकी एक लाईन थी – जब नास मनुज का छाता है तब विवेक मर जाता है . . . अर्थात मनुष्य के जब बुरे दिन आते हैं तब उसकी मति मारी जाती है। कमोबेश यही द कश्मीर फाईल्स के निर्देशक विवेक अग्हिोत्री के साथ होता दिख रहा है। जब द कश्मीर फाईल्स का जादू सर चढ़कर बोल रहा है तब विवेक अग्निहोत्री का एक इंटरव्यू सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
इस साक्षात्कार में विवेक अग्निहोत्री कहते दिख रहे हैं कि मैं भोपाल से हूं, लेकिन मैं खुद को भोपाली नहीं कहता क्योंकि इसका एक निश्चित अर्थ होता है। अगर कोई खुद को भोपाली कहता है, तो इसका आम तौर पर मतलब है कि वह व्यक्ति समलैंगिक है.. नवाबी कल्पनाओं वाला कोई व्यक्ति। उन्होंने यह तक कहा कि वे इसका अर्थ साक्षात्कार लेने वाले को बाद में बताएंगे . . .
अब विवेक अग्निहोत्री बैकफुट पर दिख रहे हैं, जबकि इस फिल्म को केंद्र सरकार के द्वारा सराहा गया या यूं कहा जाए कि इस फिल्म का अघोषित तौर पर प्रमोशन ही बड़े नेता कर रहे हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगा, वैसे इस फिल्म का प्रमोशन जनता स्वयं कर रही है, फिर विवेक अग्निहोत्री को देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वालों के बारे में इस तरह का अनर्गल प्रलाप करने का क्या ओचित्य है।
मान भी लिया जाए कि उनका यह साक्षात्कार पुराना है तब भी उन्हें यह अधिकार किसने दे दिया कि वे एक शहर विशेष के लोगों को समलैंगिक की उपाधि से नवाजें! हमने अपने लगभग दो दशक भोपाल में गुजारे हैं। भोपाल जैसा सुंदर और तहजीब पसंद दूसरा शहर अभी तक हमें देखने नहीं मिला। भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी है। यहां रहने वाले नेता, मंत्री, विधायक, उद्योगपति, आम जनता क्या विवेक अग्निहोत्री की बात से इत्तेफाक रखेंगे! जाहिर है नहीं, इस बात को आगे बढ़ाने से विवेक अग्निहोत्री को बचना चाहिए था और कोयले को घिसकर काला करने के बजाए उन्हें उस साक्षात्कार पर प्रश्न चिन्ह लगाने के बजाए माफी मांगकर उस विवाद का पटाक्षेप कर देना चाहिए था। वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं, विवेक अग्निहोत्री के द्वारा जो सफाई दी गई वह सफाई किसी के गले उतर नहीं पा रही है। हो सकता है कि सुर्खियां बटोरने की लालसा में विवेक अग्निहोत्री के द्वारा अभी या पूर्व में किसी साक्षात्कार में इस तरह की बात कह दी हो, अगर उन्होंने ऐसा कहा है तो यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है।
विपक्ष में बैठी कांग्रेस को उस कथित साक्षात्कार ने हमलावर होने का एक मौका दे दिया है। यह अलहदा बात है कि इस मामले में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कुछ चुनिंदा नेता ही विरोध में उतरे, पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इस मामले में चुप्पी ही साधे रखी, जो आश्चर्य का विषय माना जा सकता है। बैठे बिठाए कांग्रेस के हाथ एक अच्छा मामला भी लग गया था, पर इस मामले में कांग्रेस के दिल्ली स्तर के नेताओं ने भी अपनी खामोशी नहीं तोड़ी है। काश्मीर में वैसा नरसंहार हुआ अथवा नहीं! यह बताना जरा मुश्किल है, पर जिस तरह से कांग्रेस के ही कश्मीर मूल के नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी है उससे लग रहा है कि विवेक अग्निहोत्री के जरिए किसी दल अथवा नेता विशेष के द्वारा आज के मौजूदा हालातों को देखते हुए जनता की दुखती रग पर उंगली रख दी है। आज द कश्मीर फाईल्स के प्रति जो उत्साह देखा जा रहा है वह लगभग दो तीन दशकों में लोगों के मन में भरा आक्रोश भी माना जा सकता है।
अभी हाल ही में द कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के खिलाफ मुंबई के वर्साेवा थाने शिकायत की गई है। उन पर एक साक्षात्कार में भोपालियों के लिए समलैंगिक शब्द का प्रयोग करने का आरोप है। उनके इस बयान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। मुंबई के वर्साेवा पुलिस स्टेशन में 27 वर्षीय पब्लिक रिलेशन का काम करने वाले प्रबंधक रोहित पांडे ने विवेक अग्निहोत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। शिकायतकर्ता मध्य प्रदेश के भोपाल का रहने वाला है और उसने मामले में तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है।
एक कहावत है कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा है यह अगर आपको जानना हो तो उसे ढेर सारा पैसा, शोहरत और ताकत से नवाज दिया जाए। अगर उसका स्वभाव नहीं बदले तो मान लीजिए कि वह व्यक्ति धीर गंभीर है और उसे पद, प्रतिष्ठा, पैसे से बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ता है, पर अगर यह सब आने के बाद वह अनर्गल प्रलाप करना आरंभ कर दे तो क्या कहा जा सकता है! विवेक अग्निहोत्री को यही सलाह दे सकते हैं कि वे इस प्रकरण में खेद व्यक्त करते हुए इस मामले का पटाक्षेप करने के मार्ग प्रशस्त करें, अन्यथा इसकी आंच में द कश्मीर फाईल्स की लोकप्रियता झुलस न जाए . . .!
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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