वीर बलिदानी राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह के स्मृति श्रद्धा सुमन

1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ब्रिटेन के शीर्षस्थ नेता डिज़्रेली नेराष्ट्रीय क्रांतिकहा,   तो इतिहासकार रीस नेईसाई धर्म के विरुद्ध एक धर्म युद्ध

(लक्ष्मण राज सिंह मरकाम)

अमरेश मिश्रा नामक इतिहासकार ने अपने शोध से बताया की,   स्वतंत्रता संग्राम के प्रारम्भ से दस वर्षों तक इसे दबाए रखने के लिए,   एक करोड़ से भी अधिक लोगों का नरसंहार किया गया। आज कई विचारधाराओं के इतिहासकार,  इस संग्राम को केवल सैनिक विद्रोह तक सीमित रखना चाहते हैं,   उनसे केवल यह प्रश्न पूछा जाए की,   जहाँ भारत में केवल 2.5 लाख भारतीय सैनिक थे,   वहाँ एक करोड़ से अधिक जनमानस का संहार हुआ हो तो,  इस क्रांति को स्वतंत्रता का पहला संग्राम नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?

इसी विशाल स्वतंत्रता के यज्ञ में,   जिस प्रकार झाँसी,   कानपुर,   मेरठ,   बलिया,   दिल्ली व कलकत्ता जैसे कई शहरों ने अपने वीर सपूतों की आहुति दी,   उसी प्रकार संस्करधानि जबलपुर में भी गढ़ा मंडला के राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह  भी 18 सितम्बर 1857 को अंग्रेजो द्वारा तोप के सामने बाँधकर बलिदान हुए, ताकि आगे जाकर इस मिट्टी से हज़ारों शंकर शाह व रघुनाथ शाह पैदा हों।

राज ग़ोंड वंश ने हमेशा से ही विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध अपने राज्यों की सीमाओं को बचाने की कोशिश की,   फिर वो अकबर के विरुद्ध रानी दुर्गावती हों या अन्य राज ग़ोंड राजा … इनकी गोरिल्ला युद्ध नीतियाँ कई राज्यों ने अपनाई। अपने चरम उत्कर्ष के समय राज ग़ोंड वंश,   लगभग 90000 वर्ग किलो मीटर तक राज्य करने वाला मध्य भारत का सबसे बड़ा राज्य रहा। ऐसे वंश के वंशज राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह को राष्ट्र प्रेम विरासत में मिला।

युद्ध की शुरुआत : जबलपुर का महत्व उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले अति महत्वपूर्ण मार्ग के रूप में हमेशा रहा,  अन्य साधनों के साथ पथ कर इस क्षेत्र की आय का बड़ा अंश था,   अंग्रेज़ शाशन ने राजस्व व्यवस्था अपने हाथ ले ली व 65% तक कर वसूलने लगे थे,   इस बात से त्रस्त होकर जनता ने राज ग़ोंड राजाओं व माल्गुज़रों के साथ मिलकर अंग्रेजो को मारने की योजना बनानी शुरू कर दी,   छुपे रूप में मेरठ छावनी की क्रांति की भनक भी 52 वी नेटिव इंफेंट्री को लग चुकी थी,   बस सही समय का इंतज़ार था,   52 वी इंफेंट्री के सिपाहियों ने ठाकुर पांडेय व गजानन तिवारी के माध्यम से राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह को ख़बर पहुँचाई की वे राजा की सेना में,   उचित समय आने पर शामिल हो जाएँगे।

 

52 वी नेटिव इंफेंट्री का मुखिया लेफ़्ट. कर्नल जेमिसन था,   उसे भी इस सूचना की भनक लग गई,   उसने क्रांति को दबाने के लिए नागपुर स्थित ब्रिगेड से सहायता माँगी।

16 जून को एक सिपाही ने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या की कोशिश की जो नाकाम रही। जुलाई का पूरा माह अंग्रेज़ों ने सिपाहियों पर निगरानी रखी,   मेजर अर्सकिन ने दमन करके,   क्रांति की चिंगारी को दबा के रखा।

2 अगस्त को कामटी से कप्तान टोटेनहोम के नेतृत्व में घुड़सवार सेना जबलपुर पहुँच गई,   बाद में फिर जिसे सागर के विद्रोह पर नज़र रखने के लिए दमोह में भेजा गया,   कर्नल मिलर,   लेफ. परेरा,   लेफ. वाटसन भी इस 4 थीं मद्रास नेटिव इंफेंट्री का नेतृत्व कर रहे थे।

 

बलिदान की घटना : राजा शंकर शाह कुशल नीतिकार थे,   क्षेत्र के 18 अन्य राज ग़ोंड राजाओं के साथ मिलकर गिर्रिल्ला आक्रमण की गुप्त नीति बनाई गई,   52 वी इंफेंट्री को भी गोरिल्ला आक्रमण की योजना बता दी गई।।

 

योजना का यहाँ के तत्कालीन सेठ को पता चल गया,   उन्होंने राजा के कर्मचारी व सेठ के रिश्तेदार गिरिधारी दास से योजना की जानकारी चुराई,  जो की फिर अंग्रेज़ों तक पहुँचाई गई।।

अंग्रेजो ने राजा व कुँवर को धोखे से उनके 17 सिपाहियों के साथ त्रिपुरी के निकट गिरफ़्तार कर लिया,   योजना का कोई दस्तावेज़ नहीं मिला,   मगर गिरिधारी दास ने,   राजा की कुल देवी माँ काली,  की क्रांति के लिए बनाई स्तुति को यह कहकर अंग्रेज़ों की सौंप दी की इसी  में सभी अंग्रेज़ को मारने की योजना है,   ये स्तुति थी :

 

मूँद मुख डंडिन को चुग़लों को चबाई खाई,   

खूंद दौड़ दुस्टन को शत्रु सम्हारिका।

मार अंग्रेज़,   रेज,   कर देई मात चण्डी,   

बचै नहीं बैरी,   बाल बच्चे सम्हारिका।।

 

संकर की रक्षा कर,   दास प्रतिपाल कर,   

दीन की सुन,   ए मात कालिका।

खाई ले मल्लेच्छन को,   झेल नहीं करो अब,   

बच्छन कर,   तत्छन,   धौर मात कालिका।।

 

14 सितम्बर 1857 को,  राजा व कुँवर के पकड़े जाने की सूचना,   52 वी इंफेंट्री तक पहुँची तो उन्होंने,   तोप खाने को लूटकर राजा को छुड़ाने की योजना बनाई,   डिप्टी कमिश्नर ने सूचना दी की संख्या के आधार पर हम ज़्यादा दिन राजाओं को बंदी नहीं रख पाएँगे,   इसी लिए जल्द से जल्द इन्हें ख़त्म करना होगा,   राजा को संधि का प्रस्ताव दिया गया की,   धर्मान्तरित होकर,   पेंशन स्वीकार कर लो,   जिसे उन्होंने नकार दिया।।

16 सितम्बर को क्लार्क की अदालत मेंमुक़दमा ए बग़ावतका फ़ैसला सेठ ख़ुशहाल चंद की गवाही के आधार पर कर दिया गया। फ़ैसला थासजाए मौत – ज़िंदा तोप के मुहाने मौत के मार्फ़त

अंग्रेज़ी इतिहासकार कीज व मेलीसन के अनुसारराजा को अंतिम संस्कार के अधिकारों से वंचित रखने का फ़ैसला सुनकर ही,  राजा की सेना व 52 वी इंफेंट्री  ने अंतिम साँस तक लड़ने का फ़ैसला कर लिया

आख़िरी सुबह : गढ़ा मंडला के राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह को बंदी बनाकर शहर भर में परेड कराई गई,   4 थी मद्रास घुड़सवार सेना के सिपाही दोनो को मलगोदाम के पास ले गए,   जहाँ पहले से राजा के साथ पकड़े गए सैनिक तोप पर बाँध दिए गए थे,   पहले राजा के सामने उन्हें गोलियाँ मारी गई। गोलियों से तोप को कुछ हानि हुई,   अंग्रेज़ अधिकारी ने तोप को साफ़ करने का आदेश दिया,   राजा ने अधिकारी की तरफ़ इशारा किया और कहा,   आपकी तोपों में अगर परेशानी हो तो हमारी तोपों का प्रयोग कर लें,  जो आपने ज़ब्त की हैं .. अंतिम समय में इतनी निर्भीकता कम ही देखने मिलती है।

राजा व कुँवर को उनकी ही तोपों से बांधा गया। फिर पीलिकोठि से आए,  सैनिक पादरी ने दंड अधिकारी को पाप मुक्ति का की औपचारिकता पूरी की,   दंड अधिकारी ने राजा व कुँवर से उनकी अंतिम इक्षा जानी,   दोनो ने एक दूसरे को देखकर कहा कीहम उस स्तुति को दोहराना चाहते हैं,   जिसके कारण हमें मृत्यु दंड दिया गया

राजा ने स्तुति पढ़ी व कुँवर ने दोहराई,   

जैसे ही स्तुति ख़त्म हुई अंग्रेज़ अधिकारी ने हाथ से इशारा किया,   तोपची ने फ़्यूज़ में आग लगाई और दोनों के धड़ के टुकड़े टुकड़े हो गए,   राजा व कुँवर का शीश भी दूर जाकर गिरे,   उनकी आँखें खुलीं थीं,   अभी तक मुस्कुराता हुआ चेहरा व गर्व का भाव दिख रहा था,   देखने वालों ने ज़ोर से विलाप शुरू कर दिया,   उनके बीच वृद्ध रानी ने चुपचाप शरीर के टुकड़े चुने,   व उसी शाम मंडला के लिए प्रस्थान कर दिया।

 

बलिदान के बाद की स्थिति :राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह को,   अंतिम संस्कार ना हो पाने व शोक की ख़बर ने 52 वी इन्फ़ंट्री को हिला दिया।

उसी रात नौ बजे,   पूरी 52 वी इन्फ़ंट्री सैनिक व अन्य राजाओं जिनमें प्रमुख थे राजा दिलराज सिंह ( इमलाई ),  ठाकुर क़ुंदन सिंह ( नारायण पुर बघराज़ी,  जय सिंह देव,   जगत सिंह ( बरखेड़ा ) मूनीर गौसिया ( बरगी ),   भिक़मसिंह ( मगर मुहा) शिवनाथ सिंह,   ऊमराव सिंह,   देवी सिंह,   ठाकुर ख़ुमान सिंह ( मोकासी ),   बलभद्र सिंह,   राजा शिवभान सिंह ( बिलहरी ),   ठाकुर नरवर सिंह,   बहादुर सिंह भी अपनी सिपाहियों के साथ शामिल हो गए,   संख्या 4000 तक पहुँच गयी थी,   सभी ने इस घटना का प्रतिशोध की ठान ली थी।

पूरी क्रांति सेना चुपचाप रात को पाटन पहुँच गई,   वहाँ पहले से मौजूद अंग्रेज़ कमांडेंट लेफ. मकग्रेगर को बंदी बना लिया,   उसकी सेना के सिपाही भी क्रांतिकारियों के साथ हो गए। उन्होंने मकग्रेगर के बदले,   जबलपुर में कर्नल जेमिसन को बंदी सैनिकों को छोड़ने का प्रस्ताव भेजा,   जिसे नामंज़ूर कर दिया गया। आक्रोशित क्रांतिकारी सेना ने मकग्रेगर को,   मौत के घाट उतार दिया,   ये पहला प्रतिशोध था।

52 वी बटालियन व राजा दिल्ली कूच करना चाहती थी,   उसने सागर झाँसी के रास्ते दिल्ली जाने का फ़ैसला किया।

कर्नल जमिसन ने पाटन की सूचना,   तार के द्वारा दमोह की 33 वी मद्रास नेटिव इन्फ़ंट्री को भेजी,   वो 52 वी इन्फ़ंट्री को रोकने 21 सितम्बर को दमोह से चले व 25 सितम्बर को सिंग्रामपुर पर पड़ाव किया,   लेफ. वाटसन व जनकिन्स के नेतृत्व में,   क्रांतिकारी व 52 वी इन्फ़ंट्री की मुठभेड़ हिरन पुल पर हुई। गोरिल्ला युद्ध नीति से हिरन पर मुठभेड़ हुई,   आधुनिक हथियारों के सामने भी क्रांतिकारियों ने डट कर मुक़ाबला किया,   02 अंग्रेज़ अधिकारी मारे गए। अंग्रेज़ सेना पीछे हटी और दूसरी टुकड़ी का इंतज़ार किया,   क्रांतिकारी सेना फिर भी डटी रही,   मगर आधुनिक तोपख़ाने के सामने 52 वी इन्फ़ंट्री व क्रांतिकारी सेना को बहुत हानि हुई,   सरकारी आँकड़ों के अनुसार 125 सैनिक मारे गए,   मगर ये आँकड़े लगभग 1000 से ऊपर थे।।

बाक़ी बचे क्रांतिकारियों ने पीछे हटना ही ठीक समझा।। अब तक अंग्रेज़ सेना के कुल 4 अधिकारी मारे गए थे,   भारतीय सैनिकों की मृतक संख्या प्रशासनिक कारणों से गुप्त रखी गई,   मगर छती काफ़ी हुई,   दोनो पक्षों की।।

मगर प्रतिशोध जी ज्वाला तभी समाप्त हुई जब,   बाक़ी बचे क्रांतिकारियों ने नवम्बर में कैप्टन टोटेनहोम को एक गौरिल्ला युद्ध में मार गिराया।।। इस क्रांति के बाद जबलपुर को संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर,   भारी संख्या में ब्रिगेड को स्थापित किया गया,   ताकि फिर किसी क्रांति की पुनरवृत्ति ना हो,   फिर भी 1946 के आस पास जबलपुर में हुई रेडीओ कोर के सैनिक क्रांति ने फिर से लोगों के मन में राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह के वीर बलिदान को पुनः जीवित कर दिया था …..

वर्तमान परिदृश्य : आज भारत वर्ष अंतर राष्ट्रीय षड्यंत्रो के निशाने पर हैं,   विघटन कारी शक्तियाँ नक्सल व धार्मिक उन्माद के माध्यम से जनजाती समाज के अंदर अन्य समाज के प्रति वैमनस्य भर रही हैं,   शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं का जनजातीय क्षेत्रों में आभाव है,   ऐसी परिस्थितियों में जब हम  भारत के इस वीर जनजातीय नायकों को,   सिर्फ़ जनजातीय समाज के वीर ना मानकर,   भारत के अन्य वीर सपूतों के समकक्ष सम्मान देंगे तभीतू मैं एक रक्तभावना सिद्ध होगी।

,  जनजातीय समाज देश का आदि क्षत्रिय समाज है,   जो केवल मानवीय नहीं,   प्रकृति के हर घटक की रक्षा करता है,   ये विकास की सर्वोच्च परिकल्पना का द्योतक है,   जो प्रकृति को बिना हानि पहुँचाए सदियों से उसके साथ तारतम्य बिता कर जी रहा है।।

क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य : संस्कार धानी,   जबलपुर,   भेड़ाघाट,   आप अपने आप को कई परिपाटियों से जोड़ते होंगे,   मगर यह जाने बिना की स्वतंत्रता समर के यज्ञ में इस भूमि से किन वीरों ने अपने प्राणों की पूर्णाहूति लगाई? आपका जबलपुर से परिचय अधूरा है।।

अंतिम प्रार्थना :शहीदों की चिताओं  पर लगेंगे हर बरस मेले,   वतन पे मिटने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा

आइए आगामी 18 सितम्बर को,   जबलपुर स्टेशन के नज़दीक राजा शंकर शाह व कुँवर रघुनाथ शाह की स्मारक पर,  अवश्य अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें …

(साई फीचर्स)