आखिर इस मर्ज का इलाज क्या है?

सनातन धर्म : उदयनिधि स्टालिन के बाद प्रकाश राज बोले!

(अरुण दीक्षित)

तमिलनाडु सरकार में युवा एवम खेल मामलों के मंत्री और मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि द्वारा सनातन की तुलना मलेरिया से किए जाने के बाद से शुरू हुआ विवाद थमने का नाम ही नही ले रहा है। उदयनिधि के बाद अब अभिनेता प्रकाश राज ने उनसे एक कदम आगे बढ़ कर सनातन धर्म को डेंगू जैसा खतरनाक बुखार बता दिया है। प्रकाश राज के बयान के बाद पूरे उत्तर भारत में धर्म के ठेकेदार एक बार फिर ताल ठोक कर मैदान में उतर आए हैं।

उधर केंद्र में सत्तारूढ़ और हिंदू धर्म की स्वयंभू ठेकेदार बीजेपी ने इसकी आड़ में कांग्रेस और उसकी अगुवाई में बने विपक्षी दलों के गठबंधन “इंडिया” के खिलाफ एक और मुहिम छेड़ दी है। बीजेपी, हिंदू संगठन और साधु संत सभी सनातन धर्म के विरोध का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। कुछ बुद्धिजीवी भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। अफवाहें फैलाने के प्रमुख औजार के रूप में स्थापित हो चुके सोशल मीडिया और देश के गोदी मीडिया को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई है।

कुछ स्वयं स्थापित और कुछ नवांकुरित बुद्धिजीवी तो पूरी ताकत से सनातन के साथ खड़े हो गए हैं। बात हिंदू धर्मग्रंथों की विश्वसनीयता पर पहुंच गई है।

दक्षिण से आए एक बयान के बाद उत्तर में हुए हंगामे पर मैंने भी थोड़ी छानबीन करने की सोची। हालांकि धर्म मेरा विषय नही है न ही मैंने धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया है। इसलिए मैं ऐसे व्यक्ति की तलाश में निकला जो धर्म को लेकर तांगे में जुते घोड़े जैसी नजर न रखता हो। यह तलाश वर्तमान में अच्छे खासे चर्चित हिंदू विचारक अनिल चावला पर आकर रुकी। अनिल जी ने अभी हाल में वाल्मीकि रामायण पर एक बड़ा काम किया है। उन्होंने वाल्मीकि के राम की बहुत ही तार्किक व्याख्या की है। बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक अनिल चावला से मैंने सनातन के बारे में बात की।

उन्होंने कहा – समस्त पुराणों को स्मृति माना जाता है। हिन्दू धर्म का मूल आधार श्रुति (वेद) हैं ना कि स्मृति। स्मृति रचना समयानुसार की गयी और उन्हें अपरिवर्तनीय नहीं माना गया।

समस्त स्मृतियाँ (पुराण एवम मनुस्मृति जैसी अन्य स्मृतियाँ) पिछले लगभग डेढ़ हज़ार वर्षों में रची गयी। इनकी रचना में प्रच्छन्न बौद्धों का प्रमुख योगदान रहा।

चीन में ईस्वी ८५० के आसपास बौद्ध मठों को व्यापक रूप से तोड़ा गया। लगभग उसी समय हिन्दुस्तान में भी यह संहार हुआ। विस्थापित बौद्ध भिक्षुओं एवं पदाधिकारियों ने हिन्दू जामा पहन कर एक नयी परम्परा को जन्म दिया जिसका नाम वेदांत रखा गया। वेदांत का उद्देश्य वेदों का अंत करना था।

वेदांत काल में ही पुराणों एवं अन्य स्मृतियों की रचना हुई जिनसे समाज में जाति प्रथा, छूत छात, ऊँच नीच इत्यादि को स्थापित किया गया। साथ ही व्यक्ति कर्म से दूर कर भक्ति की ओर प्रवृत्त करने का प्रयास किया गया।

कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज पूरे विश्व में जितने भव्य विशाल हिन्दू मंदिर हैं वे इसी काल की देन हैं। एक ओर मंदिर विशाल से विशालतम बन रहे थे और दूसरी ओर देश गरीब होता जा रहा था और पराधीन बन रहा था।

आज तमिल नाडू के मंत्री उदयनिधि और अभिनेता प्रकाश राज सनातन धर्म को दोष देते हुए उसे समाप्त करने का जो आह्वान कर रहे हैं, उन्हें यह समझाने की आवश्यकता है कि हिन्दू या सनातन धर्म पाँच हज़ार से अधिक वर्ष प्राचीन है। उनको जो शिकायतें हैं, वे सभी तर्कसंगत और पूर्णतः उचित हैं। परन्तु उन्हें यह समझना चाहिए कि उनकी शिकायतें और आलोचनाएँ जिन बातों को लेकर हैं वे प्राचीन हिन्दू या सनातन धर्म का अंग कतई नहीं हैं। वे सभी विचार, परम्पराएँ, रिवायतें और रूढ़ियाँ हिन्दू समाज में पिछले लगभग हज़ार – डेढ़ हज़ार वर्षों में प्रविष्ट हुई और उन्होंने हिन्दू समाज को दूषित कर दिया।

वेदांत काल में हिन्दू धर्म में प्रवेश हुए दोषों के कारण ही हम पराधीन हुए। उदयनिधि और प्रकाश राज को यह बताया जाना चाहिए कि दोषों को समाप्त करना आवश्यक है, लेकिन रोग को समाप्त करने के लिए रोगी को ही मार देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

यदि हिन्दू धर्म को पिछले हज़ार – डेढ़ हज़ार वर्ष में प्रवेश हुए दोषों से मुक्त करना है तो हमें समस्त पुराणों और स्मृतियों को अस्वीकार करना होगा। हमें वेदों, वाल्मीकि रामायण (उत्तर काण्ड छोड़ कर) तथा महाभारत (बाद में जोड़े गए अंशों को छोड़ कर) का विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है। उस अध्ययन के आधार पर विद्वानों एवं मनीषियों की राय के अनुसार हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान एवं पुनर्जागरण करना होगा।

सनातन धर्म की रक्षा के लिए तोप और तलवारें लिए दहाड़ रहे लोगों को भी इस बात पर विचार करना चाहिए। उन्हें यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि असली गड़बड़ कब और कैसे हुई है।

मुझे लगता है कि उत्तर और दक्षिण के बीच सदियों से चल रहे विवाद का यदि वास्तविक हल खोजा जाना है तो पिछले 1500 साल में जो कुछ रचा गया है, उसकी गहरी समीक्षा करनी होगी। इस समीक्षा से उत्तर दक्षिण के साथ साथ हिंदू समाज के भीतर पनप रही तमाम खाइयों को पाटने में मदद मिलेगी। जो देश और समाज दोनों के लिए ही हितकर होगी!

मेरा मानना है कि समाज को इन बातों पर समग्र विचार करना चाहिए। क्योंकि एक लंबे समय से इन बातों का विरोध हमारे अपने ही लोग कर रहे हैं। इतिहास में झांकने से पता चलता है कि उत्तर और दक्षिण की यह लड़ाई भी इसी वजह से शुरू हुई थी। आज भी वही मुद्दे हमारे बीच में एक विभाजक रेखा खींच रहे हैं। हमें इनके हल की समग्र कोशिश करनी चाहिए!

(साई फीचर्स)