कें…. चु….आ… क्या करे?

(अरुण दीक्षित)

सोमवार से शुरू हुए संसद के विशेष सत्र को लेकर तमाम अटकलें चल रही हैं। विपक्ष ने कुछ सवाल उठाए हैं! कुछ आशंकाएं व्यक्त की हैं! सरकार के अब तक के व्यवहार को देखते हुए उन्हें उसकी मंशा पर शक है।

सरकारी जानकारी के मुताबिक इस विशेष सत्र में विशेष चर्चा के साथ साथ चार खास विधेयक भी पेश किए जायेंगे। इनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक भी शामिल है। इस विधेयक पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि सरकार चुनाव आयोग में प्रक्रियागत बदलाव लाना चाहती है। इनमें आयुक्तों की सेवा शर्तों के अलावा उनकी नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया भी शामिल है। चर्चा यह भी है कि सरकार चयन प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को ही खत्म करना चाहती है। आशंका यह भी है कि नए नियमों के बाद चुनाव आयोग पूरी तरह सरकार के दवाब में रहेगा।

अब सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग आज सरकार के आगे नतमस्तक नही है? क्या वह पूरी तरह स्वतंत्र होकर निष्पक्षता से काम कर रहा है? क्या आयोग विपक्ष के साथ उचित व्यवहार कर रहा है? और तो और क्या वह अपने ही नियमों का पालन करवा पा रहा है?

इन सवालों का जवाब खोजने से पहले थोड़ी बात 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर कर लेते हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग इन चुनावों की तैयारियों में पूरी ताकत से जुटा हुआ है। कई महीने से वह इस दिशा में काम कर रहा है। पिछली दो जून को उसने एक विस्तृत परिपत्र भी राज्यों को भेजा था। इस पत्र में चुनावी तैयारियों के संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए थे।

चार पृष्ठ के इस पत्र के छठे बिंदु के छठे खंड में आयोग ने साफ लिखा है कि जो सरकारी अधिकारी सेवा वृद्धि पर हैं या जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पुनः नियुक्त किया गया है, उन्हें चुनाव कार्य से पूरी तरह अलग रखा जायेगा!

राज्यों में चुनाव की तैयारियों की समीक्षा खुद मुख्य चुनाव आयुक्त कर रहे हैं। वे चुनाव वाले राज्यों का दौरा भी कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे अपनी पूरी टीम के साथ भोपाल आए थे।

चुनावी तैयारियों की समीक्षा करने के बाद उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ मीडिया से बात की। उन्होंने आयोग द्वारा निष्पक्ष और निर्विघ्न चुनाव की तैयारियों का विस्तार से ब्यौरा दिया! पत्रकारों के सवालों के बड़े बड़े उत्तर भी दिए।

इसी पत्रकार वार्ता में मुख्य चुनाव आयुक्त को आयोग द्वारा दो जून 2023 को राज्यों को भेजे गए पत्र की याद दिलाते हुए सवाल पूछा गया। मुख्यचुनाव आयुक्त महोदय से पूछा गया कि आपने अपने पत्र में साफ साफ लिखा है कि सेवावृद्धि पर चल रहे अधिकारियों को चुनाव कार्य से अलग रखा जाएगा। लेकिन मध्यप्रदेश में तो स्थिति एकदम अलग है। यहां आपने जिन मुख्य सचिव को पत्र लिखा है, वह खुद सेवावृद्धि पर हैं! उन्हें सरकार ने दूसरी बार सेवा वृद्धि दी है! इस पर आप का क्या मत है! क्या चुनाव आयोग मुख्य सचिव को हटाएगा!

इस सवाल पर मुख्यचुनाव आयुक्त एकदम हड़बड़ा गए। बार बार पूछे जाने पर भी उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। ऐसे मामलों में जो अक्सर होता है, वही हुआ! मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपनी फाइल उठाई और धन्यवाद देकर चले गए। प्रेस कांफ्रेंस खत्म!

सैकड़ों मीडिया कर्मियों और चुनाव आयोग तथा राज्य सरकार के तमाम अफसरों के सामने आयुक्त महोदय निरुत्तर होकर चले गए। अब सवाल यह उठता है कि आज जब चुनाव आयोग के स्वतंत्र और निष्पक्ष होने का दावा किया जा रहा है तब आयोग अपने ही लिखे का पालन नही करवा पा रहा है! मुख्य चुनाव आयुक्त के पास इस सवाल का कोई जवाब भी नही है! वह उसी अधिकारी को पत्र लिख रहे हैं जो उनके नियमों के मुताबिक चुनावी जिम्मेदारी निभाने के योग्य नहीं है। उसके बाद भी राज्य में निष्पक्ष चुनाव कराने का दावा कर रहे हैं।

मजे की बात यह है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस संबंध में चुनाव आयोग को शिकायत भी कर चुकी है। लेकिन उसकी कौन सुने?

अगर चुनाव आयोग के इतिहास पर नजर डालें तो अचानक टी एन शेषन की याद आ जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए शेषन ने जो कुछ किया था वह आयोग के इतिहास में दर्ज है। उनके जाने के बाद जो हुआ है वह भी सब जानते हैं।

ऐसे में सरकार कुछ भी नियम बना ले क्या फर्क पड़ता है! क्योंकि कें…चु… आ… अब वही देखेगा जो उसे देखने को कहा जायेगा और वही करेगा जो उसे करने को कहा जायेगा। नियम कानून सिर्फ कागज पर रहेंगे!

(साई फीचर्स)

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