लिमटी की लालटेन 603
क्या आने वाले दिनों में वाकई उत्तर प्रदेश नेहरू गांधी परिवार के वारिसानों से मुक्त हो जाएगा!
(लिमटी खरे)
देश भर में राज्य सभा की 56 सीटों के लिए मतदान होना है एवं नामांकन की अंतिम तारीख 15 फरवरी है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता श्रीमति सोनिया गांधी ने राजस्थान से नामांकन दाखिल कर दिया है। सोनिया गांधी नेहरू गांधी परिवार की दूसरी सदस्य हैं जो देश की सबसे बड़ी पंचायत के उच्च सदन में जा रही हैं। इसके पहले श्रीमति इंदिरा गांधी राज्य सभा से सदन में जा चुकी हैं। वे 1964 से 1967 तक राज्य सभा सदस्य रहीं। 1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश से राज्य सभा हेतु चुनी गईं थीं। उस वक्त श्रीमति इंदिरा गांधी तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रीमण्डल में बतौर सूचना और प्रसारण मंत्री काम कर रहीं थीं। इसके बाद 1966 में जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ उस वक्त राज्य सभा सदस्य रहते हुए ही इंदिरा गांधी ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला था।
वैसे राज्य सभा में जाने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि सोनिया गांधी आने वाले समय में अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने वालीं। इस सीट से फिरोज गांधी ने 1952 में चुनाव जीता। इंदिरा गांधी ने रायबरेली से 1967, 1971 रायबरेली से सांसद रहीं। 1977 में रायबरेली से राजनारायण के हाथों पराजय का स्वाद चखने के बाद इंदिरा गांधी ने 1978 में चिकमंगलूर से उपचुनाव जीता था। 1980 में हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी ने रायबरेली और उस वक्त के अविभाजित आंध्र प्रदेश के मेडक से चुनाव लड़ा और दोनों ही सीटों पर उन्होंने परचम लहराया। बाद में उन्होने रायबरेली सीट संभवतः इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि वहां की जनता के द्वारा एक बार उन्हें नकार दिया गया था। इसके बाद 2004, 2009, 2013 एवं 2019 में सोनिया गांधी ने रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया।
2019 में सोनिया गांधी के द्वारा यह बात कही गई थी कि वह उनका आखिरी लोकसभा चुनाव है। लोकसभा सदस्य के रूप में सोनिया गांधी पांच बार चुनाव जीत चुकी हैं। लगभग 77 साल की सोनिया गांधी के लिए यह पहला मौका होगा जब वे राज्य सभा के जरिए संसद में पहुंचेंगी। सोनिया गांधी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं पर राज्य सभा से चुने जाने के पीछे आखिर वजहें क्या हो सकती हैं, इस बारे में चर्चाएं तेजी से चल रही हैं। कांग्रेस के अंदर चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो सोनिया गांधी का स्वास्थ्यगत कारणों के चलते लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की बात आसानी से लोगों के गले नहीं उतर पा रही है, क्योंकि लोकसभा या राज्य सभा दोनों ही के सांसदों के काम, अधिकार आदि में अंतर शायद नहीं है।
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कांग्रेस के अंदरखाने में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो कांग्रेस को संकट से उबारने में सोनिया गांधी की अहम भूमिका रही है। भाजपा और अटल बिहारी वाजपेयी का जादू जब सर चढ़कर बोल रहा था, उस दौर में सोनिया गांधी ही थीं, जिन्होंने न केवल भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया वरन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का कुशल नेतृत्व करते हुए मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार का गठन भी कराया। सोनिया गांधी का ही प्रभाव था कि उत्तर प्रदेश में दम तोड़ रही कांग्रेस की 10 सीटों से बढ़ाकर 2009 में 21 सीटों तक आंकड़े को पहुंचा दिया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि जब सोनिया गांधी बीमारी से जझते हुए जी 23 की बगावत को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में शांत किया और इसी दौर में उन्होंने 2014 एवं 2019 के आम चुनावों में भी पूरी शिद्दत के साथ न केवल प्रचार किया वरन पूरी ताकत भी झौंकी, तब अब राज्य सभा से जाने का क्या ओचित्य!
उक्त नेता का कहना था कि लगभग दो महीने पर एक एजेंसी के द्वारा चुनाव पूर्व किए गए सर्वेक्षण में यह बात रेखांकित हुई थी कि 2024 के आम चुनावों में सोनिया गांधी के लिए रायबरेली लोकसभा से राह बहुत आसान नहीं है। इस सर्वे में सोनिया गांधी के अलावा प्रियंका वाड्रा के लिए भी यह सीट कांटों भरा ताज ही साबित हो सकती है।
वहीं जानकारों का यह कहना था कि 1999 में अमेठी से चुनाव जीतने के बाद अमेठी सीट को अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंपकर वे रायबरेली की ओर कूच कर गईं थीं। 2019 में राहुल गांधी अपनी इस पैत्रिक सीट को संभाल नहीं सके और उन्होंने दक्षिण भारत के वायनाड की ओर रूख कर लिया। अब जबकि रायबरेली सीट सोनिया गांधी के लिए सुरक्षित नहीं रह गई है इसलिए इस सीट के साथ दक्षिण भारत की किसी सीट पर चुनाव लड़ना शायद उन्होंने उचित नहीं समझा। वैसे तेलंगाना की खम्मम, मेडक और नलकोंडा सीटा से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव उनके पास आया था पर यह सम्मानजनक शायद नहीं होता।
सोनिया गांधी का अब तक का ट्रेक रिकार्ड अगर देखा जाए तो वे अब तक एक अपराजेय योद्धा के मानिंद ही दिखाई देती हैं। अब वे पलायन कर अपने आप को कमजोर साबित नहीं करना चाह रहीं होंगी। संभवतः यह उनका आखिरी चुनाव भी हो। इसके बाद वे सम्मानजनक तरीके से सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ सकती हैं। वैसे उत्तर प्रदेश की तरफ से पहले राहुल गांधी ने जिस तरह से मुंह मोड़ा है वह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के लिए पहले से ही एक झटके से कम नहीं था। अब सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्य सभा में जाने का मन बना लिया है। इन परिस्थितियों में हाल ही में हमने लिमटी की लालटेन में कहा था कि उत्तर प्रदेश को नेहरू गांधी परिवार से मुक्त कराने का अघोषित अभियान जारी है, को बल मिलता है। भाजपा अगर मेनका गांधी और वरूण गांधी को इस बार टिकिट नहीं देती है तो यह बात अपने आप ही साबित भी हो सकती है।
नेहरू गांधी परिवार के कांग्रेस के वरिसानों की उत्तर प्रदेश में अनुपस्थिति या उत्तर प्रदेश से हुए मोहभंग का असर सूबे की सियासत पर जमकर पड़ने की उम्मीद है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पहले की तुलना में बहुत ज्यादा कमजोर हो चुकी है, और अब जबकि एक के बाद एक कर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं, के अलावा नेहरू गांधी परिवार से सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश से अपना बोरिया बिस्तर समेटते दिख रहे हैं तब आने वाले समय में कांग्रेस के लिए राहों में शूल ही शूल पड़े नजर आने लगे हैं . . ., इसके अलावा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं विशेषकर उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं के लिए इस तरह के फैसले निराशा को जन्म देने वाले माने जा सकते हैं।
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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