एक ब्रह्मांड ऐसा भी है, जहां सब कुछ चलता है उल्टा

(पंकज तोमर)
ज्ञानिक इस बात की संभावना से इनकार नहीं करते हैं कि हमारी दुनिया की ही तरह एक ऐसी भी दुनिया है, जहां भौतिकी के नियम अलग हैं और वक्त उल्टा चलता है। कई दशकों से धरती और ब्रह्मांड के बारे में खोज जारी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा बहुत कुछ है, जिसका पता लगाना बाकी है। इस बीच वैज्ञानिकों को अपनी दुनिया के बारे में तो बहुत कुछ पता है, मगर अब उन्हें धीरे-धीरे एक ऐसी दुनिया पर भी यकीन हो चला है, जो हमारी दुनिया से बिल्कुल उल्टी है।
ऐनल्ज ऑफ फिजिक्स जर्नल में इस सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की गई है। यह उस सामान्य भौतिकी की अवधारणा पर आधारित है, जिसे ‘सीपीटी’ कहा जाता है। यह दुनिया हमारी धरती के पास ही हो सकती है। रिसर्च के मुताबिक, यह दुनिया भौतिकी के नियमों में हमारी दुनिया से बिल्कुल उलट होगी। जैसे, हम समय की गणना जिस तरह करते हैं, वहां वक्त उससे उल्टा चलता होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि एंटी यूनिवर्स की परिकल्पना ‘फंडामेंटल सीमेट्रीज’ पर निर्भर है। इस परिकल्पना पर काम करते हुए डार्क मैटर्स की व्याख्या की जा सकती है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि इस दुनिया में न्यूट्रॉन दायीं तरफ से घूमते होंगे। इस दुनिया की बात को साबित करने के लिए वैज्ञानिक मास न्यूट्रॉन्स का परीक्षण कर रहे हैं। वे अगर इस प्रोजेक्ट में कामयाब होते हैं, तो दूसरी दुनिया की बात साबित हो जाएगी। इस परिकल्पना की सबसे अहम बात यह है कि हमारी दुनिया की तरह इस समांतर दुनिया में गुरुत्वाकर्षण शक्ति नहीं पाई गई होगी, इसी वजह से वहां सब कुछ रिवर्स यानी उल्टे मोड में चल रहा है।
सैद्धांतिक रूप से तथा प्रायोगिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रति-पदार्थ का अस्तित्व है। अब यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रति-ब्रह्मांड का अस्तित्व संभव है? हम जानते हैं, किसी भी आवेश वाले मूलभूत कण का एक प्रतिकण होता है, लेकिन अनावेशित कण जैसे फोटान (प्रकाश कण), ग्रैवीटान (गुरुत्व बल धारक कण) का प्रतिकण क्या होगा? कण व प्रतिकण मिलकर ऊर्जा बनाते हैं। फोटान और ग्रेवीटान जैसे कण बलवाहक होते हैं, इस कारण से वे स्वयं के प्रतिकण हो सकते हैं। ग्रेवीटान कण स्वयं का प्रतिकण है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण व प्रति-गुरुत्वाकर्षण एक ही है।
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक रिचर्ड फेनीमन ने इन ब्रह्मांडों से संबंधित एक मनोरंजक प्रश्न पूछा था। मान लिजिए, हमने किसी दिन इन दूरस्थ ग्रह के परग्रहियों से रेडियो संपर्क स्थापित कर लिया है, लेकिन हम उन्हें देख नहीं सकते। हम नहीं जानते कि वे पदार्थ से निर्मित हैं या प्रति-पदार्थ से, तब क्या हम इन परग्रहियों को बाएं तथा दाएं के बीच का अंतर समझा सकते हैं? आप कोशिश करके देख लीजिए। यदि भौतिकी के नियम विपरीत ब्रह्मांड के लिए समान रहते हैं, तब यह असंभव है। रिचर्ड के अनुसार, कुछ तथ्यों को समझाना आसान होता है, हम परग्रहियों को रसायनशास्त्र और जीवशास्त्र के नियम समझा सकते हैं, पर यदि हम बाएं या दाएं के सिद्धांत को समझाने का प्रयास करेंगे, तो हम विफल रहेंगे। हम उन्हें कभी नहीं समझा पाएंगे कि हमारा हृदय शरीर के बाएं में है, या किस दिशा में पृथ्वी घूम रही है या किस दिशा में डीएनए के अणुओं के पेच घूमे हुए हैं। सन् 1956 में दो अमेरिकी वैज्ञानिकों, सुंग दाओ ली व चेन निंग यांग ने प्रस्तावित किया था कि कमजोर नाभिकीय बल सममिती को नहीं मानता। यह भी पाया गया कि कमजोर नाभिकीय बल नियमों का भी पालन नहीं करता है। एक वैज्ञानिक ने तो यहां तक कहा था कि ‘भगवान ने जरूर गलती की है!’ यांग और ली को इस खोज के लिए 1957 में भौतिकी का नोबेल मिला था। ध्यान रहे, न्यूटन और आइंस्टीन के समीकरणों के अनुसार भी सैद्धांतिक रूप से विपरीत ब्रह्मांड संभव है।
समस्या यही है कि परग्रहियों से हमारी जब मुलाकात होगी, तो हाथ मिलाने के लिए हमने दायां हाथ बढ़ाया और उन्होंने अपना बायां, तब क्या होगा? इसका अर्थ यह होगा कि हमने एक भयानक गलती कर दी। यदि हमने उनसे हाथ मिलाया, तो दोनों एक विस्फोट के साथ नष्ट होकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाएंगे। मतलब, परग्रहियों के साथ पूरी सावधानी के साथ मिलना होगा।
(साई फीचर्स)

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