तीन सौ अरब डॉलर खर्च करके भी बदनामी!

 

बेचारा कतर! वह कतर जिस पर फुटबाल के कारण अभी वैश्विक निगाह है। दुनिया फुटबॉल देखेगी लेकिन उसका दिमाग कतर पर सोचेगा। वह भी निगेटिविटी में। क्यों? इसलिए कि कतर की मेजबानी और विकास तथा आधुनिकता इंसानी खून से रंगी हुई है! आयोजन मजूदरों की नारकीय जिंदगी, उनके खून-पसीने की कहानियां लिए हुए है।

मैंने अपनी जिंदगी में कई ओलंपिक, कई विश्व कप होते देखे हैं लेकिन ऐसी खबरें, किस्सागोई और बदनामी पहले कभी नहीं सुनी जैसी कतर की है। नेपाल, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों के गरीब मजदूरों के खून-पसीने के दाग कतर की मेजबानी का वीभत्स सत्य है।

कतर ने इमारतें बनाईं, देश को नया बना कर चमका डाला लेकिन गेंद खेलने की वह जिंदादिली उसने नहीं दिखलाई, जिससे देश की महिलाएं गेंद को किक मारने की आजादी पातीं! घर की औरतें भी दर्शकों में वैसे ही फुटबॉल देखते हुए मिलतीं, जैसे पिछले विश्व कपों में देखते-झूमते मिलती थीं। कुछ भी हो, फुटबॉल तो खेल ही जज्बे-जोश-भंगड़े और आजादी से किक मारने का है न कि पर्दे, बुर्के और घर में बंद रह कर दूसरो को किक मारते देखना!

इसलिए दुनिया में कतर की आलोचना समझ में आने वाली बात है तो विश्व कप शुरू होने से ठीक एक दिन पहले फीफा के अध्यक्ष जियानी इन्फेंटिनो का भड़ास निकालना भी स्वाभाविक। फीका के अध्यक्ष ने वैश्विक मीडिया पर कतर के बादशाह की भड़ास निकाली। फीफा प्रमुख जियानी के कहने का लब्बोलुआब था कि टूर्नामेंट शुरू होने वाला है लेकिन मुकाबलों के रोमांच और वैश्विक कौतुकता की खबरें नहीं हैं। अरे फुटबॉल की बात करो न कि यह हल्ला कि आयोजन की तैयारी में कितने लोग मरे! फीफा अध्यक्ष जियानी अपने फुटबाल संघ के भ्रष्टाचार से लेकर कतर में मानवाधिकारों-श्रम अधिकारों के रिकॉर्ड की वैश्विक कवरेज से इतने आहत थे कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि पश्चिम में हल्ला हो रहा है, जबकि उसने तीन हजार साल जो जुल्म किए है उस पर पश्चिम यदि तीन हजार साल माफी मांगे तब भी वह कम होगी!

क्या गजब बात। तो कतर के फुटबॉल मैदान से सभ्यतागत संघर्ष का जुमला भी। वह भी स्विट्जरलैंड के महाअमीर 52 वर्षीय जियानी के मुंह से। सवाल है कि कतर के शेख के बचाव में फीफा के अध्यक्ष को इतना बोलना जरूरी क्यों हुआ? इसलिए कि कतर दुनिया का सुपर अमीर देश है। बारह साल पहले भी उसका पैसा तब बोला था जब उसे फुटबॉल संघ ने 2022 की मेजबानी दी। इसकी घोषणा के दिन से फीफा इस आरोप में घिरा रहा है कि कतर ने उसके पदाधिकारियों को खरीदा। अन्यथा क्या तुक जो जिस देश की टीम सौवे नंबर की है, जहां आबादी बीस लाख, दर्शकों की भीड़ नहीं और न कायदे का एक स्टेडियम उसे विश्व कप की मेजबानी!

तभी से फीफा लगातार बदनाम व जांच-पड़ताल के निशाने में है। स्वाभाविक है जो कतर और फीफा के पदाधिकारियों में पिछले 12 सालों से परस्पर घालमेल बढ़ा हो। तभी टूर्नामेंट शुरू होने से ठीक एक दिन पहले फीफा अध्यक्ष ने पश्चिम याकि उन यूरोपीय देशों के मीडिया को कोसा जो फुटबाल के एपिसेंटर के प्रतिनिधि हैं। सभी जानते हैं कि फुटबॉल यूरोप याकि पश्चिमी सभ्यता का नंबर एक खेल है। यदि ये आलोचक उदासीन रहे तो 72वें फुटबॉल विश्व कप का पूरा आयोजन फीका हो जाएगा। दर्शक खेल देखने नहीं पहुंचे, कतर की ख्याति नहीं हुई तो भारी नुकसान।

संदेह नहीं कि कतर ‘फर्स्ट इंप्रेशन, लास्ट इंप्रेसन’ का मारा है। सन् 2009-10 में फुटबॉल संघ में कतर की लॉबिंग से ही बदनामी शुरू हो गई और फिर वह बढ़ती ही गई। तब कतर में एक फीफा स्तर का स्टेडियम था। देश की आबादी कुल बीस (अब तीस लाख बताते हैं) लाख थी। मगर पेट्रोल-गैस की इफरात कमाई में कतर के शेख अमीर ने वैश्विक प्रतिष्ठा के झंडे गाड़ने के लिए फुटबॉल की मेजबानी का शगल बनाया। जुगाड़ बना तो अरब-खाड़ी, इस्लामी देशों की जमात में जहां ईर्ष्या पैदा हुई वहीं यूरोप, लातिनी अमेरिका में यह सोच बनी कि कतर पैसे की ताकत से हमारे खेल, हमारे ब्रांड और खिलाड़ियों के प्रदर्शन से अपना रूतबा बना रहा है।

कतर की राजशाही की गलती थी जो केवल पैसे की ताकत पर दुनिया के नंबर एक खेल से अपनी प्रतिष्ठा बनानी चाही। दरअसल जैसे नए बने अरबपति सेठ पैसे से ग्लैमर, प्रतिष्ठा के लिए फुटबॉल टीमों को खरीदते हैं, आयोजनों का स्पॉन्सर बनते हैं वैसे ही देशों में भी ओलंपिक, फुटबॉल विश्व कप आदि के आयोजन की होड़ होती है। चीन की शी जिनफिंग एंड पार्टी ने ओलंपिक का आयोजन करके वैश्विक जलवा बनाया तो पुतिन ने सन् 2018 में फुटबॉल विश्वकप का आयोजन कर दुनिया को अपना रूतबा दिखाया।

वैसी ही मनोदशा में कतर के अमीर ने फुटबाल विश्वकप के आयोजन का दांव चला। मगर हैरानी की बात जो कतर के अमीर याकि शेख तमीम बिन हमद अल थानी और उनके सलाहकारों ने यह नहीं समझा कि जब पैसा लुटा कर तमाशा दिखलाना है तो भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, अफ्रीकी देशों से बुलाए मजदूरों को ढंग की धर्मशालाओं में तो ठहरा देते। मजूदरों से पासपोर्ट रखवा कर तो काम नहीं करवाते। कतर के वीडियो देखने के बाद मुझे भी रियलिटी दहला गई कि खाड़ी और अरब देशों की चकाचौंध में भारत के मजदूर वहां जा कर कैसी नारकीय दशा में काम करते हैं। भारत में क्योंकि मनुष्य की जान और गरिमा का अर्थ जीरो है तो भारत सरकार, दूतावास और मीडिया इंच भर कभी चिंता नहीं करते कि प्रवासी भारतीय मजदूर किन स्थितियों में मजदूरी कर रहे हैं? कटु सत्य है कि कतर में मजूदरों की बुरी दशा को ले कर आवाज केन्या, नेपाल, श्रीलंका के मजदूरों की जुबानी, उनके एनजीओ से दुनिया ने जानी है, जबकि भारत के मजदूर सर्वाधिक होते हुए भी गूंगे, लावारिस, बेजुबान थे। सोचें, केन्या, नेपाल के मजदूर विश्व मीडिया से बात करते दिख रहे हैं, जबकि भारत का मजदूर रामजी के भरोसे, किस्मत के हवाले अपना खून-पसीना बहा कर लौट आया है। आयोजन की तैयारी में साढ़े छह हजार मजदूर मरे हों या उन्हें आधी-अधूरी मजूदरी मिली हो, कतर यह सत्य नही झुठला सकता है कि स्टेडियम मजूदरों के खून से बने हैं।

कह सकते हैं ऐसा सब जगह होता है। होता होगा! मगर कतर को अपनी अमीरी दिखलानी थी तो वह अमीर की तरह मजदूर को मजदूरी देता। 21वीं सदी के पैमानों में कामगारों को पैसा देता। सोचने में भी बेतुकी बात लगती है कि कतर ने पानी की तरह पैसा बहाकर भी विदेश से बुलाए मजूदरों को सामान्य मजूदरी भी नहीं दी। जानकारों के अनुसार सन् 2014 में ब्राजील ने फुटबॉल विश्वकप आयोजन में 15 अरब डॉलर खर्च किए। रूस ने सन् 2018 में 12 से 15 अरब डॉलर खर्च किए, जबकि कतर के खर्च का अनुमान तीन सौ अरब डॉलर का है। मतलब कोई 20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च! सिर्फ तीस लाख की आबादी और भारत के किसी भी शहर से छोटा कतर इतने विशाल पैमाने के खर्च की मेजबानी करते हुए है तो अनुमान लगा सकते हैं कि यह देश तेल और गैस से कैसी बेइंतहां कमाई कर रहा है और इतना कुछ होते हुए भी प्रवासी मजूदरों का शोषण!

जाहिर है नई अमीरी से कतर के शेख ने अपनी हैसियत, पहचान, प्रतिष्ठा वैश्विक बनाने की फितरत में विश्व कप का आयोजन किया है। इससे खाड़ी-अरब-इस्लामी देशों के पुराने अमीर शेख ऐसे जले-भुने कि जून 2017 में सऊदी अरब, यूएई आदि ने कतर से न केवल नाता तोड़ा, बल्कि गैस-तेल की सप्लाई रूकवाने के लिए उसके रास्ते भी बंद किए। इनका कतर पर आरोप था कि वह उग्रवादी इस्लामी सगंठनों जैसे मुस्लिम भाईचारे को प्रश्रय देता है। मानना होगा कतर के अमीर को जो उसने तुर्की के जरिए पश्चिम को तेल-गैस सप्लाई के नए रास्ते बना डाले। ध्यान रहे यदि सऊदी अरब, दुबई, यूएई अमेरिका पर निर्भर है तो कतर में बाकायदा अमेरिका ने बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर रखे हैं। मगर सऊदी अरब बनाम कतर में ऐसी खुन्नस है जो कतर ने अपने को आधुनिक दिखलाने के लिए वैश्विक टीवी चैनल अल-जजीरा बनाई हुई है, उसके जरिए अरब आबादी पर असर है तो वैश्विक स्तर की एयरलाइंस सेवा भी चला रखी है। अब फुटबॉल का शो। अपनी जगह हकीकत है कि अरब-इस्लामी देशों के नागरिकों में भी फुटबॉल का क्रेज जबरदस्त है।

सो, वैश्विक प्रतिष्ठा की भूख में कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी यह माने हुए थे कि विश्व फुटबॉल कप की मेजबानी से दुनिया उनकी कायल होगी। मगर उलटा हुआ। कतर बदनाम है। कहते हैं दुनिया की आठ अरब लोगों की आबादी में पांच अरब लोग फुटबॉल के मुकाबले देखेंगे। पर ऐसी संभावना नहीं है कि फुटबॉल देखते हुए लोग कतर की चकाचौंध पर भी वाह बोलें! वैश्विक मीडिया, खासकर यूरोप, अमेरिका और लातिनी देशों में इस आयोजन से कतर की वह पुण्यता कतई नहीं बनेगी जैसी फुटबॉल विश्व कप के पूर्व आयोजक देशों की बनी। कतर के अमीर का अनुभव भी वहीं बनेगा जो रूस के पुतिन और चीन के शी जिनफिंग को अपने आयोजनों के बाद हुआ। दुनिया ने अमीरी देखी मगर यह नहीं माना कि हमारे आदर्श चीन या रूस! उस नाते सच्ची अमीरी, सच्चे विकास, सच्ची लीडरशीप और फुटबॉल की सच्ची किक भी, उसके सच्चे खेल का मजा, खेल की जिंदादिली का मतलब ही अलग है। क्या नहीं?

(साई फीचर्स)

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