भव्य नहीं, दिव्यता की प्रतीक है बा-बापू की धरोहर…!!

गुजरात मेरे साथ -4

(संजीव शर्मा)

गुजरात में द्वारका से पोरबंदर होते हुए सोमनाथ के सफर में जैसे ही आप नेशनल हाइवे 51 पर पहुंचते हैं समुद्र आपके साथ साथ चलता है यानि आपका सहयात्री हो जाता है। समुद्र के सहयात्री का अर्थ यह भी नहीं है कि समुद्र सड़क से लगा हुआ है पर आप हवा में और बार बार बैक वॉटर के रूप में उसकी मौजूदगी महसूस कर सकते हैं। शायद,इसलिए इसे कॉस्टल हाइवे भी कहा जाता है। हमारे ड्राइवर के शब्दों में कहें तो सड़क ऐसी मक्खन सी है कि सैंकड़ों किमी के सफ़र के बाद भी समय और थकान का पता ही नहीं चलता।

लेकिन,पोरबंदर पहुंचते ही समुद्र अपनी गर्जना से आपका स्वागत करता है और आप कितने भी दूर खड़े हो जाएं, अपनी लहरों से बनी अपनी विशाल बाहों से आपको छू ही लेता है। लहराती-बलखाती छोटी बड़ी लहरें जब हमारे पैरों के पास से गुजरकर वापस लौटती हैं तो पूरे में चांदी सी आभा बिखर जाती है। हमें, पोरबंदर में समुद्र के रजत और सुनहरे, दोनों ही रूपों को देखने का अवसर मिल गया। पहले तो लहरों ने रेत पर जीभर के चांदी बिखेरी और फिर ढलते सूरज से गठजोड़ कर ऐसी स्वर्णिम आभा रची कि एक एक लहर सोने में नहा गई.. मानो, समंदर का पूरा पानी ही लिक्विड गोल्डमें बदल गया हो।

पोरबंदर पहुंचकर चुनावी खबरों से जुड़ी ज़िम्मेदारी निभाने के बाद हमारी प्राथमिकता थी गांधी जी की जन्म स्थली कीर्ति मंदिर पहुंचना। किसी स्थानीय व्यक्ति को तकलीफ़ न देकर हमने गूगल गुरु से मदद मांगी। यदि आप इंटरनेट पर जाकर कीर्ति मंदिरटाइप करते हैं तो रिजल्ट में दो कीर्ति मंदिर सबसे प्रमुखता से मिलते हैं। पहला और सर्च में करीब 80 फ़ीसदी मिलने वाला कीर्ति मंदिर है मथुरा के पास बरसाना का कीर्ति मंदिर। वहीं, दूसरा कीर्ति मंदिर पोरबंदर में स्थित है। हालांकि दोनों मंदिरों में काफी समानता है। पहला कीर्ति मंदिर कृष्ण की प्रिय सखी राधा की मां कीर्ति को समर्पित है और शायद यह देश का अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कृपालु महाराज के ट्रस्ट ने कराया है और यह अपने आप में नक्काशी और कला का बेजोड़ नमूना है। वहीं दूसरा कीर्ति मंदिर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। पोरबंदर स्थित यह मंदिर कला और नक्काशी के लिहाज से भले ही बरसाना के कीर्ति मंदिर से उन्नीस हो लेकिन गरिमा- सम्मान और पर्यटकों के आकर्षण के मामले में उस से कम नहीं है। इस आलेख में हम पोरबंदर के इसी कीर्ति मंदिर की बात कर रहे हैं जो भव्यता नहीं, दिव्यता का प्रतीक है।

 जैसा कि हम सभी जानते हैं पोरबंदर बापू यानी मोहनलाल करमचंद गांधी और कस्तूरबा गांधी की जन्म स्थली है। इस शहर से कृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा का भी करीबी रिश्ता है। अब जिस शहर में सुदामा, बापू और कस्तूरबा गांधी जैसी महान शख्सियतों का नाता हो उस शहर की आभा किसी भी मामले में देवभूमि से कम नहीं है। पोरबंदर के इस कीर्ति मंदिर में न तो आपको भव्य मंदिरों सी जगमग देखने को मिलेगी और न ही मंदिरों के आसपास सजने वाले बाजारों और दुकानों का जमावड़ा। यह मंदिर बिल्कुल महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप है अर्थात् सादगीपूर्ण, स्वच्छ, सहज और बिना किसी तामझाम के।

पोरबंदर के इस कीर्ति मंदिर में अंदर पहुंचते ही अद्भुत एहसास होता है। यहां की शांति, सौम्यता, सुकून और सहजता में बापू के भावों के साक्षात दर्शन होते हैं। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सामने लगे महात्मा गांधी और कस्तूरबा के आदमकद चित्र अपनी ओर खींचते से लगते हैं । सबसे खास बात यह है कि यहां  बापू की आज्ञा के अनुरुप न तो आम मंदिरों की तरह दीपक या अगरबत्ती जलाने का कोई चलन है और न ही बा और बापू को फूल माला पहनाने का रिवाज।  हां, आज के सेल्फी के दौर में आप बा और बापू के चित्रों के साथ खड़े होकर अपनी तस्वीर जरूर निकलवा सकते हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि हम कितनी भी सीढ़ियां चढ़कर खड़े हो जाएं हमारा कद बा और बापू के सामने बौना ही लगता है। बा और बापू की इन तस्वीरों को स्थानीय चित्रकार नारायण खेर ने बनाया है। चित्रों के नीचे  महात्मा गांधी के दो प्रिय शब्द सत्य और अहिंसा लिखें गए है।

सीधे सपाट शब्दों में कहें तो, कीर्ति मंदिर देश का  एक ऐसा अहम स्मारक है, जिसे गांधी जी और कस्तूरबा गांधी की याद में स्थापित किया गया है। गांधी परिवार का पैतृक घर, जहां 2 अक्टूबर, 1869 को महात्मा गांधी का जन्म हुआ था, वह कीर्ति मंदिर के ठीक बगल में स्थित है और अब इस स्मारक का अमूल्य हिस्सा भी। पहले इसे नीली हवेली के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि इस घर को महात्मा गांधी के परदादा हरजीवन गांधी ने 1777 में खरीदा था। बाद में, गांधीजी के दादा उत्तमचंद गांधी ने उस पुराने घर को जरूरत के अनुरूप तीन मंजिला इमारत में बदल दिया। गांधी जी करीब 7 साल तक पोरबंदर में रहे।

कीर्ति मंदिर में हमें महात्मा गांधी के जन्म स्थान, उनके द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तुओं, उनकी जीवन यात्रा  को दर्शाने वाली तस्वीरों, उनके वंश वृक्ष जैसी कई जानी अनजानी स्मृतियों से रुबरु होने का अवसर मिलता है। बापू की जन्मस्थली और कीर्ति मंदिर के इतिहास पर नजर दौड़ाने पर जानकारी मिलती है कि प्रमुख गांधीवादी दरबार गोपालदास देसाई ने गांधी के जीवनकाल के दौरान ही 1947 में  मौजूदा कीर्ति मंदिर की नींव रखी थी। बताया जाता है कि शुरू में गांधी जी उन पर केंद्रित किसी भी तरह के मंदिर या स्मारक के निर्माण के खिलाफ़ थे। हालांकि, इसके पीछे छिपे उद्देश्य और भावना को जानने के बाद उन्होंने इसकी अनुमति दे दी। इसके निर्माण का खर्च करीब 5 लाख रुपए उद्योगपति नानजीभाई कालिदास मेहता ने उठाया था। हालांकि, स्वयं गांधीजी से इसका लोकर्पण कराने की उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी और  महात्मा की मृत्यु के बाद, 27 मई, 1950 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस स्मारक का अनावरण किया ।

कीर्ति मंदिर करीब 79 फीट लंबा है, जो गांधी जी के जीवन के 79 वर्षों का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें सर्व धर्म समभाव के प्रतीक के तौर पर सभी धर्मों की स्थापत्य कला के तत्वों  को शामिल किया गया है। मंदिर में एक पुस्तकालय और प्रार्थना कक्ष भी है। अगर आप गांधी जी के अहमदाबाद स्थित साबरमती और सत्याग्रह आश्रम जा चुके हैं तो पोरबंदर भी जरूर जाइए क्योंकि आप यहां गरजते समुद्र की इठलाती लहरों के साथ कीर्ति मंदिर की शांति और सादगी और महात्मा गांधी के जीवन की दिव्यता को अवश्य महसूस करेंगे।

(लेखक भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)

(साई फीचर्स)