गुजरात मॉडल नहीं… एमपी के लिए बनेगा नया मॉडल.?

अपना एमपी गज्ज़ब है..36

(अरुण दीक्षित)

गुजरात विधानसभा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के बाद यह मान लिया गया था कि गुजरात मॉडल का तत्काल विस्तार होगा! उसे कम से कम पड़ोसी राज्य एमपी में तो लागू किया ही जायेगा! सबकी नजरें दिल्ली पर टिकी थीं। 12 दिसम्बर को अमदाबाद में भूपेंद्र पटेल का शपथ समारोह खत्म होते ही हजारों जोड़ी आंखे दिल्ली पर टिक गईं थीं। सबको उम्मीद थी कि अब गुजरात का “ट्रस्टेड और ट्रायड” मॉडल एमपी पहुंचेगा ही।

 इसी बीच बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और एमपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने हरदा में यह कह कर सबकी उत्सुकता बढ़ा दी कि गुजरात मॉडल पूरे देश में लागू होना चाहिए! इससे अगले दिन बीजेपी के मैहर के विधायक नारायण त्रिपाठी ने इस बात को और आगे बढ़ाया! उन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को पत्र लिख कर एमपी में तत्काल गुजरात मॉडल लागू किए जाने की मांग कर दी। सपा और कांग्रेस से होते हुए बीजेपी में पहुंचे नारायण ने तो सत्ता और संगठन दोनों में ही बदलाव की मांग कर डाली।

मजे की बात यह है कि इस मांग पर राज्य में किसी भी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। पर इसके अगले दिन ही खुद कैलाश विजयवर्गीय ने दमोह में एक अलग संकेत दिया। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव ने वहां वरिष्ठ नेता जयंत मलैया के अमृत महोत्सव में मंच से मलैया को पार्टी द्वारा नोटिस दिए जाने पर महासचिव की हैसियत से खेद जताया। उन्होंने कहा कि जयंत जी बहुत ही वरिष्ठ नेता हैं। उनके साथ इस तरह का व्यवहार नही किया जाना चाहिए था। हालांकि उन्होंने यह नही बताया कि ऐसा करने में उन्हें एक साल से ज्यादा का समय क्यों लग गया!

इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन और केंद्रीय राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल भी मौजूद थे।

शिवराज ने मंच से जयंत मलैया की तारीफ की। उन्होंने कहा जयंत भाई ने पार्टी के लिए बहुत काम किया है। आगे भी बहुत काम उन्हें करना है। प्रदेश अध्यक्ष ने भी मलैया की तारीफ में कसीदे पढ़े। मौका अमृत महोत्सव का था सो सभी ने 50 साल से बीजेपी में सक्रिय मलैया का खुल कर गुणगान किया।

आगे बात करने से पहले कुछ बातें मलैया के बारे में। जयंत मलैया का परिवार दमोह का प्रतिष्ठित परिवार है। बीजेपी में उनके परिवार की पीढियां गुजर गई हैं। वे प्रदेश में बनी बीजेपी सरकारों में अहम पदों पर रहे हैं। शिवराज की सरकार में भी वे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व संभाल चुके हैं। उनकी पत्नी सुधा मलैया भी पार्टी में सक्रिय हैं। वे राष्ट्रीय पदाधिकारी भी रही हैं।

2018 का चुनाव मलैया हार गए थे। उनकी हार पर यह कहा गया था कि पार्टी की अंदरूनी कलह ने उन्हें हराया है। उन्हें हराने वाले कांग्रेस के राहुल लोधी को बीजेपी के ही एक बड़े नेता का समर्थन था।

बाद में कांग्रेस विधायकों ने कांग्रेस का हाथ छोड़ा और बीजेपी में आ गए तो हालात बदल गए। सरकार गिरने के कुछ समय बाद कांग्रेस के दो लोधी विधायक भी बीजेपी में शामिल हो गए। इनमें दमोह के विधायक राहुल लोधी भी शामिल थे। इन दोनों पर उमा भारती का वरदहस्त था। इन्होंने विधायकी छोड़ी। बदले में मंत्री दर्जा मिला। साथ ही फिर चुनाव लडने के लिए बीजेपी का टिकट भी।

राहुल लोधी को बीजेपी से चुनाव जिताने का जिम्मा मोदी के मंत्री प्रह्लाद पटेल को दिया गया। इस उपचुनाव में जयंत मलैया को जमकर अपमानित किया गया। चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री ने अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं की तुलना “पूतना” से भी की।

राज्य सरकार और संगठन की पूरी कोशिश के बाद भी बीजेपी दमोह उपचुनाव नही जीत पाई। कांग्रेस प्रत्याशी भारी अंतर से चुन लिया गया।

इस हार के बाद मलैया परिवार पर बीजेपी नेताओं ने बड़ा हमला किया। हारे प्रत्याशी ने हार का ठीकरा जयंत मलैया के सिर फोड़ा। सार्वजनिक बयान दिया! उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया। उनके बेटे को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया गया। जम कर खींचतान चली। दमोह सांसद केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने हर स्तर पर शिकायत की।

बाद में पालिका चुनाव में भी बीजेपी दमोह में हार गई। इस बीच मलैया के बेटे ने बीजेपी छोड़ दी। उन्होंने पालिका चुनाव में अपने अलग प्रत्याशी उतारे। नतीजा यह हुआ कि बीजेपी की जमकर भद्द पिटी!

अब अचानक जयंत मलैया का अमृत महोत्सव होना और उसमें मुख्यमंत्री सहित बड़े नेताओं की मौजूदगी ने सबके कान खड़े कर दिए। ऊपर से कैलाश विजयवर्गीय ने मंच से ही मलैया को कारण बताओ नोटिस दिए जाने का जिक्र करके खेद भी व्यक्त कर दिया।

संघ और बीजेपी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि ऐसे कार्यक्रम वस्तुतः संघ की निगरानी में उसके निर्देशन में ही होते हैं। इस कार्यक्रम में बड़े नेताओं की मौजूदगी भी इसी बात का प्रमाण है।

उनका कहना है कि कुछ महीने पहले ही बीजेपी के और वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा का अमृत महोत्सव भोपाल में आयोजित किया गया था। शर्मा काफी मुखर रहे हैं। कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते रहे हैं। उन्होंने उमा भारती के साथ पार्टी भी छोड़ी थी। बाद में वे पार्टी में वापस आए और राज्यसभा सदस्य भी बनाए गए। बीजेपी में चल रहे पीढ़ी बदल में उन्हें भी हाशिए पर धकेल दिया गया है। ऐसे में उनका अमृत महोत्सव और इसमें बीजेपी के बड़े नेताओं को मौजूदगी आश्चर्य जनक थी। बताते हैं कि इस आयोजन के पीछे संघ की अहम भूमिका थी।

मलैया का अमृत महोत्सव गुजरात की जीत और दिल्ली व हिमाचल में बीजेपी की हार के बाद हुआ है। इस वजह से इसकी अहमियत ज्यादा है। मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय महासचिव के बयान भी इसी का प्रमाण माने जा रहे हैं।

उधर पुराने भाजपाई नेता यह साफ कहते हैं कि गुजरात और मध्यप्रदेश के हालात बिल्कुल अलग हैं। मध्यप्रदेश शुरू से ही संघ, जनसंघ और बीजेपी की प्रयोगशाला रहा है। यहां आज भी पुराने नेता और कार्यकर्ता का गुजरात जैसा अपमान नही किया जाता है।

एक पुराने नेता के मुताबिक गुजरात मॉडल पुराना काटो और नया पैदा करो की थ्योरी पर चलता है। वहां की धारणा है कि आम के पुराने पेड़ के फल खाओ! उसकी गुठलियों को इधर जमीन में गाड़ दो। फिर पुराने पेड़ को काट के लकड़ी बेच दो। पांच साल बाद जब दुबारा फल की जरूरत होगी तब तक गुठलियां पेड़ बन ही जायेगी। संख्या भी ज्यादा और फल भी ज्यादा।

गुजरात में यही किया गया। पिछले सालों में सभी पुराने नेताओं को किनारे किया गया। नई टीम के साथ गुजराती अस्मिता पर हर हथकंडा अपना कर चुनाव जीता गया। जनता ने इसी भाव से साथ दिया। गुजरात को लगता है कि अभी वह देश पर काबिज है।

लेकिन सब जानते हैं कि मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं किया जा सकता। यहां सारे घर के बदल डालने वाली थ्योरी नही चलेगी। इससे पहले उत्तरप्रदेश में इसे नही अजमाया गया था।

दरअसल एमपी में बीजेपी के कई प्रमुख नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में धकेला गया है। प्रदेश के हर कोने में ऐसे पुराने नेता हैं जिन्हें 2018 -19 में किनारे किया गया है। कुछ के टिकट काटे गए। कुछ को चुनाव हराया गया। बाद में जब कांग्रेसियों की मदद से दुबारा सरकार बनाई गई तो कई को कोटे के नाम पर घर बैठा दिया गया।

यह सूची बहुत लंबी है। अनूप मिश्रा, जयभान सिंह पवैया, गौरीशंकर शेजावर, जयंत मलैया, उमाशंकर गुप्ता, रघुनंदन शर्मा, हिम्मत कोठारी, कैलाश चावला, अजय विश्नोई, राजेंद्र शुक्ला, गौरीशंकर बिसेन, डाक्टर सीताशरण शर्मा, बिजेंद्र सिसोदिया, अर्चना चिटनिस, सुमित्रा महाजन, सुधा मलैया आदि नेता आज निर्वासित से हैं। सिंधिया के साथ आए लोगों की वजह से अन्य कई नेताओं पर भी राजनीतिक निर्वासन का खतरा मंडरा रहा है। बहुत से नेताओं को यह भी लग रहा है कि गुजरात मॉडल के नाम पर उनके साथ कुछ भी किया जा सकता है।

इन नेताओं का यह भी कहना है कि 2018 का चुनाव पार्टी स्थानीय नेतृत्व के कारण हारी थी। 15 साल की सरकार की खामियां भी सामने थीं। इसी वजह से जनता ने विभाजित कांग्रेस को जिता दिया। 2020 में दुबारा सरकार बनाने के बाद भी हालात बदले नहीं हैं।

सरकार का ढर्रा वही पुराना है। सरकार बनवाने वालों के प्रति उपकार के भाव ने पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ाई है। नौकरशाही पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। भले ही मुख्यमंत्री रोज छोटे अफसरों को मंच से सस्पेंड करें लेकिन बड़ी मछलियां तो मौज कर ही रही हैं।

संघ यह सब करीब से देख रहा है। इसीलिए उसने सक्रियता बढ़ाई है। केंद्रीय नेतृत्व को भी इसका अहसास है। इसी वजह से अब असंतोष दूर करने और समस्याओं का हल निकालने के लिए समिति बनाने की बात की जा रही है। और भी बहुत कुछ हो रहा है।

ऐसे में माना जा रहा है कि गुजरात मॉडल एमपी में जस का तस लागू नहीं होगा। कुछ न कुछ तो होगा! हो सकता है कि कुछ अहम चेहरे बदल कर जनता का गुस्सा शांत किया जाए।

पर एमपी गुजरात नही बनाया जायेगा। यहां बुजुर्गो का उतना “असम्मान” नही होगा। क्योंकि गुजरात वालों को भी मालूम है कि एमपी की तासीर अलग है। भले ही नेता डर के मारे मौन रहें पर जनता अपनी अस्मिता की रक्षा करना जानती है। दिल्ली और नागपुर को भी यह समझ में आ रहा है! यह दिखाई भी दे रहा है।

आए क्यों न! आखिर अपना एमपी गज्ज़ब जो है। यहां की जनता इशारों पर नही चलती है! है कि नहीं! बताइए.. बताइए!

(साई फीचर्स)