यहां न 4 साल की बच्ची सुरक्षित है न 92 साल की वृद्धा….

अपना एमपी गज्जब है..50

(अरुण दीक्षित)

महिलाओं के प्रति अपराध में देश में अव्वल चल रहे एमपी ने इस क्षेत्र में एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। यहां एक 92 साल की बुजुर्ग महिला बलात्कार की शिकार हुई है। साथ ही 4 साल की बच्ची के साथ भी ज्यादती की खबर आई है। इसके साथ ही यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है कि क्या महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को लेकर किए गए बड़े बड़े उपाय और सख्त कानून भी बेअसर हैं? आखिर ये मामले रुक क्यों नही रहे हैं?

92 साल की बुजुर्ग से बलात्कार की घटना 5 दिन पुरानी है। यह बुजुर्ग महिला शहडोल रेलवे स्टेशन पर उतरी थी। उसे पास के एक गांव में अपने रिश्तेदार के घर जाना था। उसे एक व्यक्ति ने रिश्तेदार के घर तक छोड़ने का आश्वासन देकर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया। शहर के बाहर निकल कर उसने मोटर साइकिल जंगल की ओर मोड़ दी। बुजुर्ग जब तक कुछ समझती तब तक जंगल में पहुंच चुकी थी।

वहां उस व्यक्ति ने उससे बलात्कार किया। बाद में घायल अवस्था में उसे सड़क पर छोड़ कर भाग गया। सड़क से गुजर रहे लोगों ने उसकी मदद की। रिश्तेदारों को खबर की। उन्होंने इसे अस्पताल में भर्ती कराया। पुलिस ने बलात्कारी को पकड़ लिया है।

इसी दिन जबलपुर से खबर आई कि एक चार साल की बच्ची के साथ पड़ोसी ने बलात्कार किया। बच्ची उसके घर टीवी देखने जाती थी।

दो दिन पहले राजधानी भोपाल कोलार इलाके में एक 15 साल की किशोरी के साथ घर में घुस कर छेड़छाड़ की गई।

सोमवार को जबलपुर के बरगी इलाके में एक 12 साल की आदिवासी बच्ची के साथ तीन युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया! वे उसे अगवाकर के ले गए थे।

यह तो कुछ उदाहरण हैं! प्रदेश के अखबार रोज ऐसी घटनाओं से रंगे रहते हैं। कोई दिन ऐसा नही जाता है जब बलात्कार की खबरें न आती हों।

प्रदेश के मुख्यमंत्री लगातार महिला सुरक्षा को लेकर बड़े बड़े दावे करते रहते हैं। उनकी नीयत पर कोई सवाल नही है। वे जब सांसद थे तब उन्होंने सामूहिक विवाह कराने शुरू किए थे। इसी वजह से उन्होंने खुद को प्रदेश के बच्चों का मामा घोषित किया है।

सबसे लंबे समय तक पद पर रहने का रिकॉर्ड बना चुके मुख्यमंत्री ने बलात्कारी को फांसी दिए जाने का कानून भी विधानसभा में पास कराया था। बाद में केंद्र सरकार ने उसी आधार पर अपना कानून बनाया।

2018 में कानून बनने के बाद अदालतों ने कई बलात्कारियों को फांसी की सजा भी दी। करीब दो दर्जन से ज्यादा बलात्कारी इन दिनों जेल में फांसी का इंतजार कर रहे हैं।

लेकिन हालत यह है कि कानूनी दांव पेंच के चलते ऊपरी अदालतों में ये मामले लंबित हो गए। यही वजह है कि कोई बलात्कारी फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा है।

दूसरी ओर सख्त कानून के बाद भी बलात्कार की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। मध्यप्रदेश आज भी इस क्षेत्र में देश में अव्वल है।

इस बीच बलात्कार के मामलों जो फैसले निचली अदालतों ने दिए हैं उनमें सजा का अनुपात बहुत कम रहा है। ग्वालियर जिले में 2022 में 46 मामलों में फैसला आया। इनमें 52 आरोपियों में सिर्फ 8 को सजा हुई है। इससे यह साफ है कि पुलिस अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही है। उसकी पैरवी कमजोर रही है।

एक पहलू यह भी है कि सरकार ने अपने कानून का जितना प्रचार किया उसका उतना डर समाज में नही पैदा हुआ। बलात्कारी को फांसी पर लटकाने की बात आकर सभाओं में कही जाती रही है। लेकिन आज तक एक भी बलात्कारी फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा। न ही फांसी के डर से बलात्कार की घटनाएं कम हुईं।

जमीनी हकीकत यह है कि खुद भाजपा से जुड़ी महिला नेता यह मुद्दा घुमा फिरा कर उठाती रही हैं। लेकिन वे कोई असर नहीं डाल पा रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अपनी शराबबंदी की मांग का मुख्य आधार महिलाओं की पीड़ा को ही बताती हैं। उनका मानना है कि शराब सभी समस्याओं की जड़ है। इसका सीधा असर महिलाओं पर ही पड़ता है। यह अलग बात है कि पार्टी से जुड़ी होने की वजह से वे बलात्कार के मुद्दे पर साफ बात नहीं करती हैं।

उधर हमेशा विवाद में रहने वाली भोपाल की सांसद संन्यासिन प्रज्ञा ठाकुर ने तो एक सार्वजनिक समारोह में बच्चियों पर अत्याचार से जुड़ा मुद्दा उठाया था। भोपाल में उन्होंने कहा था कि उनके चुनाव क्षेत्र के कुछ गांवों में लोग अवैध शराब बनाने और बेचने का धंधा करते हैं। पुलिस उन्हें पकड़ ले जाती है तो उनके परिवार के लोग अपनी छोटी छोटी बच्चियों को बेच कर पुलिस वालों को पैसे देते हैं। अपने लोगों छुड़ाते हैं। लव जिहाद के मुद्दे पर लगातार विवादास्पद बयान देने वाली भोपाल सांसद आज तक प्रदेश में बलात्कार के बढ़ते मामलों पर कुछ नही बोली हैं।

प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर तो महिलाओं को लाइसेंस लेकर हथियार रखने की सलाह दे चुकी हैं। वे खुद कृपाण रखती हैं। लेकिन प्रदेश में छोटी छोटी दुधमुही बच्चियों और 92 साल की बुजुर्ग तक के साथ हो रहे दुराचार पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कभी कुछ नही कहा है।

सवाल यह है कि जब सरकार सख्त कानून बना रही है! मुख्यमंत्री इतने सख्त हैं कि सरेआम फांसी देने की बात कहते हैं। नरम इतने हैं कि खुद प्रदेश के बच्चों के मामा बन गए हैं। बालिकाओं के जन्म से लेकर उनकी शिक्षा और विवाह तक की व्यवस्था उन्होंने खुद ली है। हर साल सरकार हजारों लड़कियों के विवाह कराती है। यह अलग बात है कि सरकारी मशीनरी ने इस योजना को भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया है।

फिर भी प्रदेश महिलाओं के साथ अपराधों में अव्वल क्यों बना हुआ है। सरकार हर समाज से बात करती है। उनके सम्मेलन मुख्यमंत्री निवास में होते हैं। सबका साथ सबका विकास का नारा है। फिर इस सामाजिक बुराई पर वह समाजों को एकजुट करके आगे क्यों नही ला पा रही है। इस मुद्दे पर सरकार कोई सामाजिक मुहिम क्यों नही चला रही है।

बच्ची के जन्म के समय से शादी तक की सरकारी योजना है। बुजुर्ग महिलाओं को तीर्थ भी सरकार करा रही है। हर बात में महिलाओं को आगे किया जा रहा है।

फिर भी 4 साल की बच्ची से लेकर 92 साल तक की वृद्धा तक बलात्कार का शिकार हो रही हैं! सरकार की कोशिशों को समाज का साथ नही मिल पा रहा है। सच माने तो इस दिशा संगठित प्रयास भी नही हो रहे हैं। सामाजिक संगठन आपने हित के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। लेकिन प्रदेश पर लगे इस कलंक को धोने में उनकी कोई भूमिका नजर नहीं आती है।

पर कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है !

(साई फीचर्स)