पटवारी 5 करोड़ का तो . . ., मंत्री और सचिव कितने के?

अपना एमपी गज्जब है. . . 71

(अरुण दीक्षित)

वैसे तो लोकायुक्त पुलिस के “ट्रैप” की खबरें रोज अखबारों में जगह पाती रहती हैं! पर वे अक्सर किसी कोने में पड़ी होती हैं। लेकिन 28 अप्रैल 2023 को प्रदेश के सबसे प्रमुख अखबार में पहले पन्ने की दूसरी खबर थी – 5 करोड़ का पटवारी. . दो घर सात दुकानें. . . साथ में गरीबी के रेखा से नीचे वाला सरकारी कार्ड भी। ये पटवारी महोदय फिलहाल खरगोन जिले में तैनात थे। शायद आगे भी वहीं रहेंगे! क्योंकि लोकायुक्त पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बाद सरकार अक्सर खुद कोई कदम नहीं उठाती है। सब कुछ अदालत पर छोड़ देती है या फिर खुद फाइल पर पालथी मार कर बैठ जाती है!

लोकायुक्त पुलिस की इंदौर इकाई ने इन पटवारी महोदय की जो खासियत बताई, उसके मुताबिक इन्हें अब तक की नौकरी में सरकारी खजाने से कुल 60 लाख रुपए मिले हैं। लेकिन इन्होंने परिवार को तमाम जिम्मेदारियां निभाते हुए 5 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जोड़ ली है। अभी खोजबीन चल रही है। यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है!

वैसे तो व्यापम जैसे बहुचर्चित घोटाले वाले राज्य में 5 करोड़ का पटवारी मिलना कोई बड़ी बात नही है। लेकिन जब राज्य में रोज इस बात की बांग लगाई जाती हो कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा! भ्रष्टाचारियों को खोद के गाड़ दिया जायेगा! तब यह खबर थोड़ी बड़ी सी लगती है! क्योंकि इतने बड़े ऐलान के बाद भी पटवारी जैसा अदना कर्मचारी करोड़ों बटोर ले, वह भी “किसान” के राज में! है न आश्चर्य की बात?

इसी वजह से यह सवाल मन में आया कि जब पटवारी 5 करोड़ कमा सकता है तो फिर सचिव और मंत्री का आंकड़ा क्या होगा! बीच के अफसरों को गिनेंगे तो आंकड़ा लंका में हनुमान जी की जलती पूंछ की तरह बढ़ता जायेगा!

पटवारी की ताकत को लेकर हजारों किस्से कहे जाते हैं! एक कहावत है – राज्यपाल और लेखपाल (पटवारी) का लिखा कोई बदल नही सकता। जहां इनकी कलम चल गई वहां किसी दूसरे की नही चल सकती! यह भी सर्वविदित तथ्य है कि पटवारी सबसे ज्यादा शोषण गांव वालों का ही करते हैं। क्योंकि उनका कोई भी काम बिना पटवारी के नही होता। अब पटवारियों की ऊपरी आमदनी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि खरगोन जैसे छोटे जिले में तैनात होने वाला भी करोड़ों कमा सकता है। सोचिए भोपाल, इंदौर और अन्य बड़े शहरों में उनकी कमाई कितनी होती होगी?

यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण चेन की पहली “कड़ी” पटवारी होता है! पटवारी से शुरू होकर यह “चेन” मंत्री तक पहुंचती है। मंत्री को ही आखिरी कड़ी माना जाता है। लेकिन आजकल की व्यवस्था में कुछ कह नहीं सकते! क्योंकि अब तो मंत्री के ऊपर भी “अदृश्य हाई कमान” होती है! उन्हें भी “ऊपरी मठ” पर मत्था टेकना होता है। सुना है कि आजकल मठों की भी “चेन” बन गई है। अब एक नही कई दहलीजों पर मत्था टेकना पड़ता है! इन मठों के “भव्य प्रासाद” आए दिन चर्चा में रहते हैं!

हां तो बात पटवारी की हो रही थी। सवाल था – जब पटवारी के बस्ते में इतना माल तो ऊपर कितना? कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, डिप्टी कलेक्टर, कलेक्टर, कमिश्नर, डिप्टी सेक्रेटरी, सेक्रेटरी , प्रिंसिपल सेक्रेटरी , चीफ सेक्रेटरी, मंत्री और उनके ऊपर मुखिया! ये सब पटवारी के ऊपर हैं। इस सूची में दफ्तरों में विराजे बाबू शामिल नहीं हैं। उनका रोल सबसे अहम होता है। उनके बिना तो कोई कागज़ सरकता ही नही है!

अब अगर बीच वालों को छोड़ दें और सिर्फ बड़े वालों की बात करें तो बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे! छोटे कर्मचारियों को तो लोकायुक्त पुलिस दबोच लेती है लेकिन बड़े साहबों पर उसका बस नही चलता। अगर वह इन बड़े साहबों के खिलाफ तथ्य जुटा भी ले तो “ऊपर से” इस बात की मंजूरी ही नही मिलती है कि आगे कोई कार्रवाई हो! सैकड़ों फाइलें मंत्रालय की अलमारियों में बंद हैं! उनकी चाभी ही गायब हो गई है।

लेकिन फिर भी कुछ बड़े साहब चर्चा में आ ही जाते हैं। कुछ साल पहले एक आईएएस दंपत्ति के नोटों का बिस्तर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना था! उनकी संपत्ति पूरे देश में फैली हुई थी। अब एक तो दुनिया में ही नही हैं और दूसरे भी गुमनामी में जी रहे हैं। जो संपत्ति बटोरी थी उस पर तीसरे मौज कर रहे हैं।

राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव अभी भी भ्रष्टाचार के मुकदमें में फंसे हुए हैं। जबकि पानी में से पैसे को सोख लेने वाले दूसरे पूर्व मुख्य सचिव ई डी की जांच के दायरे में हैं। एक और बड़े साहब अक्सर चर्चा में रहते हैं। उन्होंने खुद को “ईमानदारी की मूर्ति” बना रखा था। लेकिन जब कुर्सी छूट गई तो पता लगा कि उनकी पाइप लाइन तो भोपाल से सीधे लंदन से जुड़ी हुई थी। आजकल वे भी जांच के दायरे में हैं।

कई “वर्तमान साहबों” की रियासतें अक्सर चर्चा में रहती हैं। करीब 6 महीने पहले एक दस्तावेज मीडिया के साथ साथ दिल्ली के बड़े “मठों” को भी भेजा गया था! उसमें कई साहबों की कुंडली बताई गई थी।

बताते हैं कि इन साहब लोगों के लिए सबसे अहम भूमिका पटवारी ही निभाते आए हैं। इंदौर और भोपाल में तैनात रहे पटवारी ऐसे साहबों के सबसे बड़े राजदार होते हैं। क्योंकि इनके लिए जमीनों की जुगाड़ ये पटवारी ही करते हैं। अगर इंदौर भोपाल और ग्वालियर जिलों में ही जमीनों की ईमानदारी से जांच करा ली जाए तो बहुत से भूत और वर्तमान बड़े साहबों के चेहरे का मेकअप उतर जायेगा। साहब लोगों को जमीनों से कितना प्यार है, इसका प्रमाण भी मिल जायेगा।

कुछ वर्तमान साहब लोगों की लाइन तो दुबई और रॉक ऑफ जिब्राल्टर से भी जुड़ी हुई है। देश में जमीन जायदाद तो सामान्य बात है। एक और रोचक तथ्य यह भी है कि कई साहबों को उनके बूढ़े मां बाप ने बड़े बड़े कीमती तोहफे भी दिए हैं।

तोहफे से याद आया! अभी कुछ दिन पहले ही प्रदेश के राजस्व मंत्री को बुढ़ापे में दहेज मिलने का खुलासा हुआ था। कई अन्य मंत्रियों की नामी संपत्ति भी अचानक सुरसा के मुंह की तरह बढ़ी है। कुछ की खेती सोना उगल रही है तो कुछ का दूध का धुला दूध खजाना भर रहा है। बेनामी का तो कहना ही क्या। कुछ के तो घरेलू नौकर करोड़ों के मालिक हैं।

अनेक प्रमाणिक किस्से हैं। सब को दिख रहे हैं लेकिन उन्हें नही दिख रहे जो भ्रष्टाचारियों को जमीन में गाड़ देने का ऐलान करते घूम रहे हैं। पता नही ऐसे कौन से “बादल” हैं जो इन्हें हुजूर के “रडार” से छिपा लेते हैं।

यह सब तब है जब सबको अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना होता है! वह ब्यौरा भी बहुत कुछ बता देता है। लेकिन उस पर नजर कौन डाले! जब तक सिर पर “सरकार” का हाथ… वे रहेंगे जगन्नाथ!

बेचारा खरगोन का पटवारी! वह तो पहली कड़ी है। हो सकता है कि बीच की कोई कड़ी इधर उधर खिसक गई हो और उसका “बस्ता खुल” गया। पकड़ा भी उसी को जाना है क्योंकि वह तो शतरंज का प्यादा है। हाथी, घोड़ों और ऊंटो के बाद वजीर खड़ा होता है। बादशाह तो सबसे आखिर में विराजता है। प्यादे से बादशाह तक पहुंचना कोई आसान काम नही है। फिर प्यादे तो होते ही हैं पिटने के लिए। ऐसे प्यादे हर विभाग में हैं। लोकायुक्त पुलिस उन्हें अक्सर पकड़ती रहती है।

अब आप खोजिए प्यादे से बादशाह तक की कड़ियां! हो सकता है कि कुछ प्यादे भी वजीर बने दिखें!

कुछ भी हो…हम तो यही कहेंगे कि अपना एमपी गज्जब है! है कि नहीं ?

(साई फीचर्स)