“श्रवण कुमार” उनकी रोटी के 20 रुपए तो भिजवा दीजिए….

अपना एमपी गज्जब है..75

(अरुण दीक्षित)

लीजिए. . . अपना एमपी एक बार फिर नंबर वन हो गया! राज्य के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने बच्चों के “मामा” से बूढ़ों के “श्रवण कुमार” तक का सफर तो पहले ही तय कर लिया था। अब वे बुजुर्गो को हवाई जहाज से तीर्थ यात्रा कराने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री भी बन गए हैं।

21मई 2023 को शिवराज ने भोपाल हवाई अड्डे से 32 बुजुर्गों को संगम स्नान के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) रवाना किया। वे बुजुर्गों को ले जा रहे जहाज के भीतर गए! हर तीर्थ यात्री का हाल चाल पूछा! कुछ के गले लगे। कुछ को समझाया कि जहाज में उड़ते समय डरना नही है। जहाज से उतरते समय यह आश्वासन भी दे आए कि अगली बार सबको जोड़े से भेजूंगा। अगले दिन ये यात्री संगम स्नान करके भोपाल वापस लौट आए। हवाई अड्डे पर सरकारी मशीनरी ने उनकी शानदार अगवानी की। ज्यादातर यात्रियों अपने तीर्थ अनुभव की बजाय शिवराज का गुणगान किया। यह स्वाभाविक भी था।

दो दिन बाद इंदौर से इतने ही तीर्थ यात्री शिरडी के लिए रवाना हुए। वे शिरडी के साई बाबा का मंदिर और आसपास के अन्य तीर्थस्थलों का भ्रमण करेंगे।

इन यात्राओं को लेकर सरकार की ओर से स्थानीय अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन दिए गए! बड़ी बड़ी खबरें छपवाई गईं। शिवराज.. मामा से श्रवण कुमार हो गए। और एमपी हवाई जहाज से तीर्थ यात्रा कराने वाला देश का पहला राज्य!

इन बड़ी बड़ी खबरों के साथ मुख्यमंत्री का मुस्कुराता चेहरा देख मुझे अचानक राज्य के मानव अधिकार आयोग का 20 दिन पुराना प्रेसनोट याद आ गया। दरअसल उस प्रेसनोट को अखबारों में जगह नहीं मिल पाई थी! आयोग को वैसे भी अखबार भाव कहां देते हैं?

आयोग के मुताबिक उसने स्थानीय अखबारों में छपी खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया। इसी आधार पर उसने प्रदेश के सामाजिक न्याय विभाग के प्रमुख सचिव और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से यह पूछा कि लोगों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन क्यों नही मिल रही है।

आयोग ने अपने पत्र में सिर्फ भोपाल क्षेत्र के करीब 80 हजार गरीबों को दो महीनों से सामाजिक सुरक्षा पेंशन न मिलने का उल्लेख किया था। आयोग के मुताबिक पिछले दो महीनों से बूढ़े, निराश्रित और दिव्यांग लोगों को उनकी पेंशन नही मिली है। क्योंकि इसके लिए बजट ही मंजूर नही हुआ है। सरकार मंजूरी देना भूल गई है। आयोग के मुताबिक इसके लिए करीब 5 करोड़ रुपए प्रतिमाह की जरूरत होती है।

ऐसा न होने से हजारों लोग परेशान हैं।

आयोग ने सिर्फ भोपाल के आसपास के लोगों की स्थिति पर चिंता जताई। लेकिन एक मोटे अनुमान के मुताबिक पूरे प्रदेश में करीब 35 लाख लोग सरकार की इस पेंशन पर निर्भर हैं। 600 रुपए महीने के हिसाब से जोड़ें तो एक बूढ़े और लाचार व्यक्ति को 20 रुपए रोज पर अपना जीवन यापन करना है। महीने के 31वें दिन शायद उसे भूखा ही रहना पड़े। ये 20 रुपए भी कभी उसे समय पर नहीं मिलते हैं।

मानव अधिकार आयोग ने 15 दिन में जवाब मांगा था। मैंने अपने स्तर पर यह पता करने की कोशिश की कि सरकार ने आयोग को जवाब दे दिया है कि नहीं। क्योंकि अब तो 20 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। साथ ही यह भी कि क्या भुगतान के लिए बजट स्वीकृति मिल गई है!

सामाजिक न्याय विभाग की ओर से किसी स्तर पर कोई अधिकृत सूचना नही मिली। हां यह जरूर बताया गया कि पेंशन भुगतान में 4..6 महीने की देरी स्वाभाविक है। इसमें कौन सी बड़ी बात है।

एक अफसर ने इससे आगे की जानकारी भी दे दी। उन्होंने कहा आप एक सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पूछ रहे हो ..हमारा विभाग किसी को भी कोई भी भुगतान समय पर नही कर पाता है। बजट आने और भुगतान होने में 6 महीने लग जाना तो आम बात है!

और इस समय..इस समय तो पूरी सरकार लाडली बहनों को खोजने में लगी है। पहले बहनों की व्यवस्था देखेंगे! बाद में बूढ़े और विकलांगों के बारे में सोचा जायेगा। मानव अधिकार आयोग तो नोटिस देता ही रहता है।

यह बात शायद “श्रवण कुमार” तक पहुंचेगी भी नहीं। क्योंकि अभी तो 32 लोगों के चेहरे की खुशी देख कर खुद के “नंबर वन” होने पर वे गदगद हैं। हवाई यात्रा करने वालों की कुल संख्या कुछ सैकड़ा होगी। लेकिन उसका प्रचार तो करोड़ों तक जायेगा।

वे 35 लाख लोग , जो सरकार के 20 रुपए रोज पर जीते हैं, इसी तरह जीने की आदत डाल चुके हैं। इस बार मानव अधिकार आयोग ने पत्र लिख दिया। हमेशा उसे भी कहां याद रहती है। फिर उसके पत्रों की परवाह कौन करता है।

दो दिन पहले अखबारों में यह भी पढ़ा था कि नगर निगम के पेंशनरों को उनकी पेंशन का भुगतान नहीं हुआ है। वे भटक रहे हैं।

2280 इंजीनियरों को सरकार ने नौकरी दी थी। लेकिन नियुक्ति की निर्धारित अवधि निकल गई पर उन्हें नियुक्ति नही मिली। अब नियमानुसार उनकी नियुक्ति ही अवैध हो गई है।

कुछ दिन पहले चयनित महिला शिक्षक मुख्यमंत्री आवास पहुंची थी। उन्हें भी चुन तो लिया गया है लेकिन सरकार नियुक्ति देना भूल गई है। अब “लाडली बहिनों ” के भाई को कौन और कैसे याद दिलाए कि उनकी कुछ बहनें अपनी योग्यता के बल पर अपना हक हासिल करना चाहती हैं। एक हजार रूपये की खैरात नही।

ऐसे अनेक मामले रोज सामने आ रहे हैं! लेकिन उन्हें कौन देखे? “श्रवण कुमार” तो अभी चुनावी गंगा में गोते लगा रहे हैं। उन्हें आशीर्वाद में तीर्थयात्रियों के वोट नजर आ रहे हैं! ईवीएम मशीन का बटन दबाती एक करोड़ से ज्यादा “लाडली बहनो” की उंगलियां दिख रही हैं। कुछ देवियों और देवताओं के भव्य “लोक” दिख रहे हैं! जातिगत जनगणना का भले ही विरोध किया जा रहा हो लेकिन वे समाज की जातियों को ही देख रहे हैं। उनके “कथित” कल्याण के लिए बोर्ड गठित कर रहे हैं।

और भी बहुत कुछ चल रहा है चुनावी वैतरणी पार करने के लिए! ऐसे में लाखों बूढ़े और लाचार लोगों के 20 रुपए पर कौन ध्यान दे?

कुछ भी हो..बजट से ज्यादा कर्ज में डूबी सरकार बहुत व्यस्त है। साढ़े चार महीने ही तो बचे हैं उसके पास! अस्पताल में दवा, स्कूल में शिक्षक, खेत पर बिजली और पीने के पानी की बातें तो होती ही रहती हैं। अभी तो ज्यादा कहने और कुछ कुछ करते दिखते रहने का मौसम है।

अब आप ही बताइए कि अपना एमपी गज्जब है कि नहीं! बोलिए है कि नहीं?

(साई फीचर्स)

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