घंटे भर योग, फिर समोसे-कचौरी का भोग..!!

(संजीव शर्मा)

भोर की सुनहरी किरणों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर जबलपुर में धरती का रंग ही बदल गया था…अधिकतर जगह योग दिवस के लिए खासतौर पर तैयार सफेद रंग की टीशर्ट के कारण श्वेत रंग छाया था तो कई जगह रंग-बिरंगी योगा-मेट ने माहौल में खूबसूरती बिखेर दी थी। बाकी शहरों का हाल भी अलग नहीं था। योग का जादू ऐसे सर चढ़कर बोल रहा है कि पूरा देश ही नहीं दुनिया भर के तमाम देश योगमय हो गए। छोटे छोटे बच्चों से लेकर कालेज के विद्यार्थियों में योग दिवस पर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस जैसा उत्साह नज़र आ रहा था। बच्चे ही क्या बुजुर्गों भी पीछे नहीं थे….आयोजन स्थलों में प्रवेश के लिए गेट पर कतारें दिखाई दे रही थी और सबसे अहम, हर आयोजन स्थल के पास सुबह से ही चाय, समोसा-कचौरी के ढेले सज गए थे…चौतरफा उत्सव का माहौल था और हर व्यक्ति अपनी ‘सेहत का सिपाही’ बना था ।

इस बार नौवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस था और राष्ट्रीय स्तर के मुख्य आयोजन के लिए संस्कारधानी जबलपुर को चुनाव गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीका के न्‍यूयार्क में संयुक्‍त राष्‍ट्र मुख्‍यालय में योग दिवस के आयोजनों का नेतृत्‍व किया। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के अध्‍यक्ष सहित कई गणमान्‍य व्‍यक्तियों और 135 देशों के हजारों योग उत्‍साहियों ने भाग लेकर यहाँ गिनीज वर्ल्‍ड रिकॉर्ड बना दिया। प्रधानमंत्री की उपस्थिति में गिनीज वर्ल्‍ड रिकॉर्ड का प्रमाण-पत्र बकायदा संयुक्‍त राष्‍ट्र में भारत की स्‍थायी प्रतिनिधि रूचिरा कम्‍बोज को सौंपा भी गया।

प्रधानमंत्री के देश से बाहर रहने के कारण इस साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मुख्य आयोजन का नेतृत्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया। उन्होंने जबलपुर के गैरीसन ग्राउंड पर चुनिन्दा 15 हजार लोगों और देशभर में करोड़ों लोगों के साथ योग किया। जबलपुर में तो ट्रांसजेंडर के उत्साह को देखते हुए उनके लिए लिए उपराष्ट्रपति के कॉरिडोर के बाजू में अलग स्थान आबंटित किया गया था। लोगों ने लगभग घंटे भर तक तमाम योग प्रोटोकाल का पालन किया। इधर, सात-साढ़े सात बजते-बजते सूरज देवता भी योग के रंग में रंग गए और अपने धूप योग और गर्मी योग को पूरी क्षमता से दिखाने लगे इसलिए योग में पसीना बहा रहे आम लोगों के साथ हम मीडिया कर्मी और व्यवस्थाओं से जुड़े लोग भी बहते पसीने के कारण यह साबित करने की स्थिति में आ गए थे कि हमने भी कम मेहनत नहीं की है। कुछ लोग होर्डिंग के आसपास छांव तलाशने की असफल कोशिश करने लगे लेकिन सूरज महाराज ने भी समानता के सिद्धांत से धूप बांटने में कोई कोताही नहीं की।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रोटोकाल पूरे होते ही वैसी ही भागमभाग शुरू हो गयी जैसे आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में होती है लेकिन इसमें बुनियादी फर्क यह था कि लोग अपनी चटाइयां समेटकर घर जाने से पहले, बाहर लगी समोसे-कचौरी की दुकानों पर जुटने लगे….इसमें कुछ गलत भी नहीं था क्योंकि सुबह साढ़े चार-पांच बजे घर से बिना चाय के खाली पेट निकले लोग कब तक ‘भूखयोग’ में रह सकते थे। अब जो लोग स्वभाव और नियमित अभ्यास से योगी हो गए हैं उन्होंने अपनी इच्छाओं को काबू कर लिया। वहीँ, कुछ लोग भूख पर काबू के साथ साथ फलाहार जैसा इंतजाम करके आए थे लेकिन आज जुटी उत्सवी लोगों की भीड़ के लिए तो सेहत के बाद स्वाद ज्यादा महत्वपूर्ण था और इस बात को समौसे-कचौरी के व्यापारी बखूबी जानते थे इसलिए वे पर्याप्त इंतजाम और स्टाफ के साथ तैयार थे ताकि ग्राहक की भूख के स्वाद को छोड़कर सेहत की चिंता में बदलने से पहले उसके हाथ में प्लेट थमा दी जाए। बस, फिर क्या था योग आयोजनों के आसपास की सड़कें वाहनों की चिल्लपों से हलकान थीं और दुकानें योग के बाद भोग लगाने को आतुर लोगों की फरमाइश से…हमने भी दो भाजीबड़े के साथ एक कड़क चाय के साथ अपनी रिपोर्टिंग का दायित्व पूरा किया…भाजीबड़े इसलिए, क्योंकि इसमें ‘भाजी’ शब्द आ जाने से अपराध बोध कुछ कम हो जाता है।  

(लेखक भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एवं आकाशवाणी भोपाल में संपादक के पद पर कार्यरत हैं)

(साई फीचर्स)