ये विधवा बुआओं को मनाने का मौसम है ….

अपना एमपी गज्जब है..94

(अरुण दीक्षित)

काफी माथापच्ची और जद्दोजहद के बाद बीजेपी ने अपनी चुनाव समितियां घोषित कर दी हैं। कुछ अभी भी बाकी हैं। बताया गया है कि उनके लिए नाम और चेहरे तलाशे जा रहे हैं! चूंकि यह नए जमाने की बीजेपी है। इसलिए इस बारे में अपना ज्ञानवर्धन करने के लिए मैंने कुछ पुराने भाजपाई मित्रों से संपर्क किया।

कई “संघदीक्षितों” से बात हुई। ज्यादातर ने राम जुहार के बाद इधर उधर की बात करके मुझे टाल दिया। मार्गदर्शक मंडल में धकेले गए एक मित्र ने तो साफ कह दिया कि मुझे आपसे इस बारे में फोन पर कोई बात नही करनी है। कभी उधर से गुजरा तो आपके घर चाय पीता हुआ जाऊंगा। तभी बात करूंगा। आप तो जानते ही हो कि पेगासस का जमाना है। पार्टी वैसे ही लतिया चुकी है ऊपर से ऐसी बातें करके काहे मेरा बुढ़ापा खराब करना चाहते हो!

उनकी शंका और पीड़ा का पूरा सम्मान करते हुए मैंने उनका सुझाव मान कर फोन काट दिया। लेकिन दिमाग में जो कीड़ा घूम रहा था उसने अगला दरवाजा खटखटाने का सुझाव दे डाला। मैंने दो तीन नंबर और घुमाने की सोची!

लेकिन पहले ही नंबर पर शानदार रिस्पॉन्स मिला। जिन मित्र को मैंने फोन किया उन्होंने अपनी जवानी बीजेपी को सौंपी थी! सालों तक लालकृष्ण आडवाणी जी के साथ काम किया है। गोविंदाचार्य से लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी तक उनके करीबी मित्र रहे हैं। प्रदेश में बीजेपी के वर्तमान कर्ताधर्ता भी एक जमाने में गुरू कह कर उनके पांव छूते रहे हैं। यह अलग बात है कि आजकल वे “आडवाणीगति” को प्राप्त हैं।

जैसे ही मैंने फोन करने के पीछे अपना उद्देश्य बताया, उन्होंने बड़ी जोर का ठहाका लगाया! थोड़ी देर तक हंसते रहे फिर सांस रोक कर बोले – पंडित जी बीजेपी में आजकल विधवा बुआओं का मौसम है! बुआओं के साथ साथ घर के कोनों में पड़ी बूढ़ी चाची और ताई भी खोजी जा रही हैं!

मैंने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा – भाई साहब मैं कुछ समझा नहीं! उन्होंने लगभग डपटते हुए कहा – अरे कैसे गांव वाले हो महाराज! अरे जरा याद करो गांवों में क्या क्या होता था। नई पीढ़ी न जाने तो कोई बात नहीं। आप तो सठिया गए हो! आपको तो पता होना चाहिए था! मैं कुछ बोलता उससे पहले वे खुद बताने लगे!

उन्होंने कहा कि आपको याद है कि पहले के टाइम में गांव में करीब हर घर में एक दो बाल विधवा बुआ या चाची – ताई होती थीं। आम दिनों में वे रूखा सूखा खाकर घर के एक कोने में पड़ी रहतीं थीं। लेकिन जैसे ही परिवार में कोई शादी ब्याह या अन्य शुभ काम होता उनकी पूछ परख बढ़ जाती। सब उनसे राय मशविरा करते। उन्हें ऐसा महसूस कराते जैसे वे परिवार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। सब काम उन्हीं की राय से होता।

अचानक मिले सम्मान से अभिभूत बुआएं सब कुछ भूल कर काम में लग जाती। दौड़ दौड़ कर हुलसते हुए सब काम करतीं। चाहे देह साथ न दे रही हो पर वे आगे बढ़ कर सारे काम करतीं। पूडियां बेलती। वर्तन मांजती! पूछे जाने पर सबको रीति रिवाज बतातीं। सब कुछ भूलकर अपने होने का अहसास करातीं। घर के कारिंदो को डांटती फटकारती और उनके साथ पूरी ताकत से काम में लगी रहतीं।

लेकिन जैसे ही घर में नई बहू के आने का टाइम होता बुआओं को भूल सब आगे हो जाते। बहू को देहरी पर पहला पांव रखते हुए देखने को अगर बुआ आगे आ जाए तो सब उन्हें पीछे हटने को कहते! अगर उन्होंने अनसुनी की तो उन्हें पहले इशारों में फिर साफ साफ बता देते कि तुम विधवा हो! नई ब्याही बहू के सामने तुम्हारा आना शुभ नही माना जाएगा! इसके बाद वे फिर उसी कोने में धकेल दी जाती जो उनकी नियति बन चुका है।

यही हाल बीजेपी का है। चुनाव सिर पर हैं। सब को पता है कि हालत कैसी है। इसलिए आजकल उन सब बूढ़े और पुराने नेताओं को खोजा जा रहा है जिनकी रगों में बह रही बफादारी अभी भी करंट मारती रहती है। इन सब को लायेंगे। आगे करके पूरी हम्माली कराएंगे! और जैसे ही सत्ता मिलेगी तो उन्हें फिर कोने में धकेल देंगे।

आपको यकीन न हो तो कमेटियों के नाम देख लीजिए। वे नेता जिन्हें कुछ दिन पहले तक पानी पी पी कर कोसा जा रहा था आज सम्मान के साथ सूचियों में बैठाए जा रहे हैं। किस किस का नाम लूं। आप तो सब को जानते ही हो।

इसके बाद वे कुछ क्षण को रुके! लंबी सांस ली! फिर थोड़ा भावुक होते हुए बोले – जैसे घर की उन बुआओं के पास कोई विकल्प नहीं होता है, वैसे ही हम सबके पास भी नहीं है। अब इस उम्र में हम जाएं तो जाएं कहां? जिनके पास जा सकते थे..उनकी हालत तो विधवा बुआ से भी बदतर है। इसलिए पांच साल में एक दो बार आने वाले इस बुआ मौसम का मजा लेते हैं।

मैं उनसे कुछ पूछता इससे पहले उन्होंने ठहाका लगाते हुए कहा – आप भी बुआओं के इस मौसम का आनंद लीजिए! हम तो बहुत पूडियां बेल चुके हैं। अब हमारा क्या! तुम रोज कहते रहते हो अपना एमपी गज्ज़ब है। अब तुम्ही बताओ कि अपना एमपी गज्ज़ब है कि नहीं? और जोर से बोलो…आइए बुआओं का मौसम है!

(साई फीचर्स)