मानो शाहीन बाग पर जनादेश

(हरी शंकर व्यास)

दिल्ली का चुनाव नतीजा शाहीन बाग पर जनादेश की तरह होगा। कम से कम भाजपा के प्रचार से तो ऐसा ही लग रहा है कि चुनाव का मुख्य और केंद्रीय मुद्दा शाहीन बाग है, जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम महिलाएं अपने परिवार के छोटे-बड़े सदस्यों के साथ संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर धरने पर बैठी हैं। ध्यान रहे यह बहुत बारीक फर्क है। नागरिकता कानून मुद्दा नहीं है, शाहीन बाग मुद्दा है और वहां बैठी बूढ़ी महिलाएं मुद्दा हैं। चुनाव प्रचार के दौरान यह नहीं कहा जा रहा है कि सरकार ने नागरिकता कानून पास किया है और पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के मुसलमानों को नागरिकता मिलने का रास्ता बंद किया। मुद्दा यह है कि शाहीन बाग में धरने पर बैठी मुस्लिम महिलाओं ने रास्ता रोका है और उनका समर्थन करने वाले गद्दार हैं। यह कहा जा रहा है कि एक तरफ बालाकोट एयर स्ट्राइक का समर्थन करने वाले हैं और दूसरी ओर शाहीन बाग के धरने का समर्थन करने वाले हैं।

यह बात प्रधानमंत्री खुद कह रहे हैं कि शाहीन बाग में धरने पर बैठे लोगों का समर्थन करने वाले लोग वहीं हैं, जो बालाकोट एयर स्ट्राइक के समर्थन में नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि बालाकोट एयर स्ट्राइक का सबूत मांगने वालों को सजा देना है इस चुनाव में। इसका सीधा मतलब है कि जो लोग शाहीन बाग में धरने पर बैठे हैं और जो लोग उनका समर्थन कर रहे हैं वे देश के साथ नहीं हैं, देश की सुरक्षा के साथ नहीं हैं और इसलिए देशभक्त नहीं हैं। दूसरे नेता उन्हें सीधे सीधे गद्दार कह रहे हैं और गोली मारने की बात कह रहे हैं। तभी हैरानी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया और शाहीन बाग के आसपास तीन बार गोली चल चुकी।

असल में भाजपा का पूरा प्रचार शाहीन बाग के मुद्दे पर है। संभवतः पार्टी की रणनीति बनाने वालों को इसका अंदाजा था कि इस धरने का राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है इसलिए धरना खत्म कराने का कभी भी गंभीर प्रयास नहीं हुआ। न तो पुलिस ने जोर जबरदस्ती धरना खत्म कराया और न सरकार की ओर से ठोस पहल हुई। ध्यान रहे हाई कोर्ट ने भी पुलिस से इतना कहा कि वह आने जाने में लोगों को हो रही परेशानी को देखते हुए धरना खत्म करने का प्रयास करे। पुलिस बातचीत के जरिए धरना खत्म करने का कथित प्रयास किया पर कामयाबी नहीं मिलनी थी सो नहीं मिली। प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के मंत्री जो बात जनसभाओं में कह रहे हैं वह बात सरकार का कोई मंत्री धरने की जगह पर जाकर कह आता तो यह धरना कब का खत्म हो गया होता। पर सरकार या भाजपा की ओर से किसी ने वहां जाकर यह नहीं कहा कि सरकार किसी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता नहीं छीन रही है और सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू करने नहीं जा रही है। यह बात संसद में कही जा रही है पर शाहीन बाग जाकर नहीं कही जा रही है।

इसका एकमात्र कारण यह है कि शाहीन बाग को चुनावी मुद्दा बनाया गया है। शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया के नाम से जाहिर है कि इस मुद्दे पर विभाजन हो सकता है। इन नामों और वहां धरने पर बैठे लोगों सीएए विरोधी, सरकार विरोधी, भाजपा विरोधी और इस तरह देश विरोधी बताया जा सकता है। दशकों, सदियों पुराने हिंदू-मुस्लिम की ग्रंथि को इस बहाने उभारा जा सकता है। तभी इसी मुद्दे पर वोट मांग जा सकता है और नतीजे इसी मुद्दे पर जनादेश होंगे। जैसे महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे अनुच्छेद 370 पर जनादेश की तरह थे और झारखंड का चुनाव नागरिकता कानून के मसले पर जनादेश था वैसे ही दिल्ली का चुनाव शाहीन बाग पर जनादेश है।

(साई फीचर्स)