खुश होना कोई भाजपा से सीखे

 

(विवेक सक्सेना)

कानपुर की जिदंगी तो सबसे अलग कही जा सकती है। वहां के लोगों की सोच व काम करने का तरीका सबसे अलग होता है। जब विज्ञान के विद्यर्थी थे तब हमारे अध्यापक ने सापेक्ष शब्द बहुत उदाहरण देकर समझाया था। उनका कहना था कि हमारे जीवन में कुछ चीजे सापेक्ष होती है और रचनात्मक सापेक्ष सोच हमें जिदंगी में आगे बढ़ाने में सहायक साबित होती है। जैसे कि अगर आपकी बोर्ड की परीक्षा में थर्ड डिवीजन आई हो व कक्षा में आपका प्रतिद्वंदी माना जाने वाला छात्र फेल हो जाए तो सापेक्ष रूप से आपको सुख होता है क्योंकि आप उससे बेहतर पाते हैं। यह धारणा वहां आज लोगों के बीच में देखने को मिल जाती थी जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो खबरों को देखकर लगा कि दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का हमारे शहर से कुछ-न-कुछ पुराना रिश्ता है।

कहने को तो वे बिहार के माने जाते हैं मगर कानपुरियों की तरह से बर्ताव करते हैं। इस चुनाव में भाजपा का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। भाजपा के पास कुल आठ सीटें ही आई मगर उनकी हिम्मत व दिल तो देखिए कि इसके बावजूद वे दिल्ली की जनता को बधाई देते हुए इस परिणाम को अपनी पार्टी की जीत बता रहे हैं। इसे अपनी पार्टी के कार्यकर्ता व केंद्र सरकार की अच्छी नीतियों का परिणाम बता रहे हैं। उनकी खुशी की वजह यह है कि भाजपा की सीटे तीन से बढ़कर आठ व वोट प्रतिशत 32 फीसदी से बढ़कर 38 हो गया है। उनका दावा है कि 2015 के चुनावों की तुलना में इस बार हमारी जीत की संभावनाएं बढ़ी है। वोटों के प्रतिशत में बढ़ोतरी बताती है कि लोगों ने हमे ठुकराया नहीं जोकि पार्टी के लिए एक अच्छा संकेत हैं। उनका इसके साथ ही कांग्रेस के लिए मजाक उड़ाते हुए कहना था कि इस बार तो यह पार्टी अपना खाता ही खोल पाने में असफल रही। दिल्ली की राजनीति बदल रही है। यहां की राजनीति में एक नया बदलाव आ रहा है व यह जगह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दो दलीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। जिसमें केवल दो राजनीतिक दल ही सक्रिय रहेंगे। आप व भाजपा। कांग्रेस का तो सफाया हो गया है।

ध्यान रहे मतदान वाले दिन तक तिवारी यहां भाजपा को 55 सीटें जीतने का दावा करते आए थे। उन्होंने चुनाव के बाद शाम को तमाम एग्जिट पोलो का मजाक उड़ाया था। यह सब देखकर कानुपर की घटनाएं याद आ जाती है। यह तो वैसा ही है जैसे कि अगर आप की थर्ड डिवीजन आई हो तो आपका प्रतिद्वंदी फेल हो गया है। वैसे हमारे शहर में कुछ और शब्द भी ऐसी घटनाओं के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। वहां जब किसी के 35 फीसदी नंबर आ जाते तो वह कहता था कि हम गुड थर्ड डिवीजन में पास हुए हैं क्योंकि थर्ड डिवीजन में 33 फीसदी नंबर गिने जाते थे। हमारे शहर में अगर आप किसी आठवीं पास व्यक्ति से पूछे कि उसने कहां तक पढ़ाई की है तो वह आपसे कभी यह नहीं कहेगा कि वह आठवीं पास है बल्कि अपनी हैसियत व नंबर बढ़ाने के लिए कहेगा कि मैं नवीं फेल हूं क्योंकि नवीं शब्द आठवीं से बड़ा होता है। हमारे यहां तो लोग फेल आने पर भी गुड शब्द जोड़ देते हैं जैसे कि आप पांच में तीन विषय में पास हो तो वह अपनी असफलता के लिए गुड फेल शब्द इस्तेमाल करेगा। क्योंकि इस हिसाब से वह 60 फीसदी विषयों में पास हो चुका होता है व प्रथम श्रेणी के लिए 60 फीसदी अंक आना जरूरी हो जाता है। अतः महज 40 फीसदी विषयों में फेल होने पर अपनी सफलता के लिए 60 फीसदी गुड अंक लेता है।

भाजपा की खुशी की वजह यह है कि अगर वह खुद बहुमत नहीं हासिल कर पाई व उसके केवल आठ या नौ फीसदी विधायक ही जीत पाए तो कांग्रेस की हालात तो उससे भी बदत्तर है। उसके तो 62 प्रतिद्वंदियों की जमानत ही जब्त हो गई। वैसे यह अंतर तो हाथी व कुत्ते में अंतर करने जैसा है। जिस पार्टी की देश में दूसरी बार सरकार बनी हो, वह संसार की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती हो और कुछ माह पहले तक जिसकी देश में आधे राज्यों में सरकारें बन चुकी हो उसकी यह तुलना लोगों के मन में हंसी तो लाती है। खास बात तो यह है कि भाजपा अपनी हार के लिए किसी की गलती को स्वीकार नहीं कर रही है। जिस दल को राष्ट्रीय स्तर पर इतनी सफलता मिली हो उसने आप सरीखी जरा-सी पार्टी को निपटाने के लिए अपने मंत्रियों सांसदों व नेताओं की भीड़ चुनाव प्रचार में झोंक कर मानों मक्खी को तोप से मारने की कोशिश की और नतीजा सामने आ गया। उसकी यह हालत व उसके नेताओं के कुतर्क देखकर एक घटना याद आ जाती है। एक बार किसी व्यक्ति का बायां हाथ मशीन में आकर कट गया। उसके एक परिचित ने उसे दिलासा दिलाते हुए कहा कि तुम बहुत भाग्यवान थे अगर तुम्हारा दाहिना हाथ कट गया होता तो कितनी दिक्कत हो जाती। इस पर वह मुस्कुराते हुए कहने लगा कि इसमें भाग्य की क्या भूमिका यह तो मेरी अक्लमंदी थी कि मेरा दाहिना हाथ ही मशीन में आया था मगर मैंने अक्लमंदी दिखाते हुए दाहिना हाथ निकालकर उसमें अपना बायां हाथ डाल दिया।

(साई फीचर्स)