(विवेक सक्सेना)
इसे महज संयोग ही कहेंगे कि मैं पिछले कुछ दिनों से लगातार पंजाबी फिल्में देख रहा हूं जो कि यहां के चौनल पर प्रसारित होती रहती है। हाल की दो फिल्मों में यह दिखाया गया है कि पंजाब के युवा देश के बाहर खासतौर नौकरी करने के लिए कनाडा जाने के लिए कितने लालयित रहते हैं और उनकी सबसे बड़ी कमजोरी अंग्रेंजी न आने की होती है। उन्हें यहां आने के लिए आईईएलटीएस परीक्षा पास करनी पड़ती है जिसे इंटरनेशनल इंगलिश लेग्वेंज टेस्ट सिस्टम कहते हैं व इसके तहत ब्रिटेन व कुछ अन्य देश बच्चों की अंग्रेंजी की परीक्षा लेते हैं जिससे भाषा बोलने, लिखने, समझने की योग्यता का पता लगाया जाता है।
इस परीक्षा व उनकी अब तक की शैक्षिक योग्यता व नौकरी के आधार पर हर साल नंबरों का बैंड तैयार किया जाता है जो बच्चा उस बैंड में आ जाता है उसे वहां जाकर पढ़ने, पढ़ते हुए नौकरी करने या नौकरी का पीआर वीजा जारी कर दिया जाता है। पीआर का मतलब परमानेंट रेजिडेंट होता है। मतलब यह वीजा मिलने के बाद कोई भी युवा कनाडा में मताधिकर के अधिकार के नागरिक की हैसियत से मिलने वाली स्वास्थ्य व पेंशन सरीखी सुविधाओं के अतिरिक्त वहां जाकर बसने नौकरी करने, व्यापार करने या संपत्ति खरीदने का हकदार हो जाता है।
उस फिल्म में बताया गया था कि किस तरह से पंजाब में आईईएलटीएस की तैयारी करवाने वाले संस्थौन कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं जोकि युवकों को बेवकूफ बना कर उनसे मोटी रकम वसूलते हैं। उनके मां-बाप अपने बेटे के बाहर जाने की लालसा में अपनी जमीन-जायदाद तक बेचकर एजेंटो के हवाले कर देते हैं। यह बहुत अहम परीक्षा व्यवस्था मानी जाती है।
ब्रिटिश सरकार द्वारा लिए जाने वाली इस परीक्षा को उसके अलावा, कनाडा, आस्टेलिया व न्यूजीलैंड की सरकारें भी अपने यहां नौकरी करने या पढ़ाई करने के लिए आने वाले छात्रों को वीजा देने के लिए मान्य मानते है। इस फिल्म में दिखाया गया था कि जब एक छात्र संस्थान के प्रमुख से आईईएलटीएस का पूरा मतलब पूछता है तो वे बगले झांकने लगता है और यह नहीं बता पाते हैं कि उसका फुलफार्म क्या होता है। अनेक देशों द्वारा इसे बच्चों के चयन का आधार माने जाने के कारण इसकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि पिछले साल 140 देशों के 20 लाख बच्चों ने यह परीक्षा दी थी।
छात्रों को उसे बुलाने वाले देश अपने यहां नौकरियों व कॉलेजों में सीटो की स्थिति के अनुसार वीजा दिए जाने की संख्या तय करते हैं। यह परीक्षा काफी कठिन मानी जाती है। वहीं दूसरी और यह आरोप भी लग रहे हैं कि इसके बावजूद अंग्रेंजी पढ़नें व सिखने में नाकाम रहे बच्चे भी विदेश पहुंच रहे हैं। कनाडा में पीआर के अलावा संबंधों को भी काफी महत्व दिया जाता है। किसी के खून के रिश्तेदार जैसे सगा भाई, भतीजा, मां-बाप वहां जा सकते हैं। इसके लिए उन्हें तमाम मामलों में ढील दी जाती है।
मुझे आज सुबह किसी ने एक वीडियो क्लिप भेजते हुए लिखा कि कृपया इसे प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो तक भेजा जाना चाहिए ताकि वे खुद देखे के किस तरह के लोग यहां आ रहे हैं और क्या हरकतें कर रहे हैं। इस क्लिप में एक कमरे में बैठे कुछ युवको को हल्ला और गंदगी मचाते व शराब पीकर बोतले तोड़ते दिखाया गया है। क्लिप भेजने वाले ने कहा है कि आखिर यह लोग प्रतिष्ठित आईईएलटीएस परीक्षा कैसे पास हो गए।
कनाडा में सबसे ज्यादा सिख व पंजाबी वेंकूवर के साथ लगने वाले सरी इलाके में रहते हैं। वहां काफी गुरुद्वारे हैं और वह भारत या दिल्ली का ही कोई हिस्सा लगता है। इस इलाके में अक्सर गोलीबारी, चोरी आदि की घटनाएं घटती रहती है। यहां की एकमात्र बीमा कंपनी ने सरी इलाके की गाड़ियों का बीमा प्रीमियम भी ज्यादा रखा हुआ है। वहां के लोगों ने अपने घर के अंडरग्राउंड कमरे में परदा डाल कर चार-चार लड़कों को रखा हुआ है जोकि अपने कपड़े बाजार में दुकानों पर लगी कपड़ा धोने की मशीन से धो लेते हैं व उनका उद्देश्य किसी तरह से नौकरी हासिल करना होता है।
हाल ही में अमेरिका स्थित वाशिंगटन स्टेट नेटवर्क फार हयूमेन राइट्स व सेंट्रल वाशिंगटन कोयलीशन फार सोशल जस्टिस के अध्यक्ष डा स्वराज सिंह ने पंजाब से आने वाले व पंजाबियों की स्थिति को लेकर बहुत सुदंर समीक्षा की हे। उनके मुताबिक पिछले कुछ वर्षों से पंजाब के बाहर जाने वाले लोगों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है जोकि पंजाब और पंजाबियों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। बाहर जाने के इच्छुक चार लाख युवको ने पिछले साल वहां आईईएलटीएस की परीक्षा दी थी और यह संख्या समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। ऐसा लगता है कि वहां की सरकार युवाओं को यह बता पाने में नाकाम रही है कि विदेश के अलावा उनके सामने नौकरी हासिल करने का कोई विकल्प नहीं है।
पंजाबी विश्वविद्यालय ने तो आईईएलटीएस परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग तक शुरू कर दी है। ऐसा करके वह पलायन को और बढ़ावा दे रहे हैं। आज छोटे-मौटे कामों के लिए बिहार से लोग पंजाब आ रहे हैं। मगर बिहार में आपको आईएएस की परीक्षा की तैयारी करवाने संस्थानों के बोर्ड तो मिल जाएंगे मगर आईईएलटीएस की परीक्षा के नहीं। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक अमेरिकी टीवी चौनल ने एक कार्यक्रम दिखाया था जिसमें बताया गया था कि अमेरिकी कंपनियां अपने अहम पदों के लिए आईआईटी मुंबई के छात्रों को चुनती है। आईआईटी मुंबई में भर्ती होने की प्रतियोगिता दुनिया की सबसे कठिन प्रतियोगिता है। वहां जिन छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाता है वे इतने योग्य होते हैं कि वे दुनिया के सबसे अच्छे संस्थानों जैसे अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला पा जाते हैं। जबकि पंजाब से कनाडा आने वाले छात्रों को अंग्रेजी बहुत कमजोर है। अधिकांश ने उच्च शिक्षा हासिल ही नहीं की है। वे यहां पढ़ने के लिए नहीं बल्कि छोटी-मोटी नौकरी करने आते हैं जिसके लिए बहुत कम शिक्षा की जरूरत होती है।
सबसे खतरनाक बात तो यह है कि इनमें से तमाम लोग अपराधों की और आकर्षित हो जाते हैं। वे गिरोह में शामिल होकर नशीली दवाएं बेचते हैं, चोरी करते हैं। अधिकांश लोग ट्रक ड्राइवर बन जाते हैं, टैक्सी चलाते है या पिज्जा और पेट्रोल बेचने का काम करने लगते हैं। अमेरिका व कनाडा के लोग ट्रक ड्राइवरी नहीं करना चाहते हैं अतः वहां इनकी काफी मांग है। इस समय भी अमेरिका व कनाडा में 40,000 ट्रक ड्राइवरों की जरूरत है। वह दिन दूर नहीं जबकि इन देशों का हर ट्रक ड्राइवर सिख, पंजाबी हो जबकि यहां आने वाले दक्षिण भारतीय लोग अच्छे पदों पर काम करते हैं। कुछ साल पहले अमेरिका में 20 वैज्ञानिको को सम्मानित किया गया था। इनमें से 19 दक्षिण भारतीय थे। जबकि एक समय वो भी था जब पंजाब के हरगोबिंद खुराना ने नोबल पुरुस्कार हासिल किया था। आज पंजाब में उच्च शिक्षा समाप्त हो रही है। पहले वहां के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के लिए प्रति सीट 4-5 लोग आवदेन करते थे अगर अब 70 फीसदी सीटे भी भर पाना मुश्किल हो रही हैं। वहां के मध्यमवर्गीय सिर्फ नौकरी के लिए अपना घर व देश छोड़कर भाग रहे हैं। भगवान न जाने पंजाब का क्या होगा।
(साई फीचर्स)