हर की पैड़ी हरिद्वार में गंगा न अविरल है न निर्मल

 

 

(अमितांशु पाठक)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वाराणसी से अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करेंगे। इस मौके पर एक पुराने जुमले की याद आना स्वाभाविक है- मैं आया नहीं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है। पिछले पांच सालों में गंगा निर्मलीकरण के मुख्य मुद्दे अविरल गंगा, निर्मल गंगा के आकलन का भी यह बिल्कुल सही मौका है। जनता जानती है कि चुनाव से पहले जो कुछ संकल्पपत्र या घोषणापत्र में कहा जाएगा, वह चुनाव के बाद जुमला हो जाएगा, फिर भी इनकी चर्चा तो होती ही है। 1986 में वाराणसी से प्रारंभ गंगा ऐक्शन प्लान के तीन चरण भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। वर्तमान सरकार समेत अब तक की तमाम सरकारों ने 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि नमामि गंगे तथा अन्य कार्यक्रमों के नाम पर बहा दिए। मगर तमाम दावों और वादों के बावजूद गंगा की हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही है।

जुमलों की नदी : गंगा इस बार भी चुनावी मुद्दा बनी हुई है। कांग्रेस का घोषणापत्र कहता है, कांग्रेस गंगा सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए बजट आवंटन को दोगुना करने का वादा करती है. . . हम गंगा ऐक्शन प्लान को लोगों के कार्यक्रम में बदल देंगे और इसे लागू करेंगे। जबकि विशेषज्ञों ने बार-बार कहा है कि गंगा पैसा बहाने से नहीं पानी बहाने से स्वस्थ होगी। गंगा ऐक्शन प्लान के फेहृल होने पर ही पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण बनाया गया था और आईआईटी कंसॉर्सियम को नया प्लान बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। जिस पार्टी को अपनी ही सरकार द्वारा किए गए कार्यों और निर्णयों का ध्यान न हो, सोचा जा सकता है कि वह गंगा के मुद्दे पर कितनी गंभीर है। हां, गंगा के नाम पर दोगुना बजट जरूर पानी में बहेगा। अब बीजेपी की बात करें। प्रधानमंत्री ने पिछले चुनाव के समय गंगा ने बुलाया है का बहुचर्चित बयान दिया था।

गंगा की दुर्दशा का आरंभ बहुत पहले ही हो गया था, जब 1978 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में गठित समिति ने ही टिहरी बांध को हरी झंडी दी थी। पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा 2009 में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी बनाई गई थी, जिसमें नौ पर्यावरणविदों को शामिल किया गया था। पर बीजेपी सरकार ने आते ही सभी पर्यावरणविदों को बाहर का रास्ता दिखा दिया क्योंकि वे गंगा की अविरल धारा चाहते थे। कांग्रेस सरकार ने 2013 में आईआईटी कंसॉर्सियम को गंगा संरक्षण प्लान बनाने को दिया जिस पर करोड़ों रुपये भी खर्च किये। प्लान तैयार भी हो गया पर बीजेपी सरकार ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। कांग्रेस के समय स्वामी सानन्द के तप के बाद भागीरथी नदी पर तीन जलविद्युत परियोजनाओं को निरस्त किया गया। पर बीजेपी कार्यकाल में तीन और परियोजनाओं को निरस्त करने से इंकार कर दिया गया, जिसके कारण तप करते हुए ही स्वामी सानन्द के प्राण चले गए।

अभी 180 से भी अधिक दिनों से स्वामी आत्मबोधानंद जी तपस्या कर रहे हैं। कल से वह जल का भी त्याग करने वाले हैं। पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। नदी को जीवित रखने के लिए स्रोत से छोड़े जाने वाला पानी पूर्व में 15 प्रतिशत था, जिसे पिछली कांग्रेस सरकार ने बढ़ाकर बीस से तीस प्रतिशत किया था। लेकिन आईआईटी कंसॉर्सियम ने इसे बढ़ाकर पैंतीस से इक्यावन प्रतिशत करने को कहा है, जिसे न तो कांग्रेस सरकार ने माना और न मोदी सरकार ने। 2014 तक जलमार्ग की बात ठंडे बस्ते में थी। पर मोदी सरकार के आते ही पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति लिए बिना ही जलमार्ग का कार्यान्वयन आरंभ कर दिया गया है। दिखावे के लिए कुछ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने और कुंभ में टिहरी बांध से जल छोड़ने की बात कहने के अतिरिक्त कोई दूसरा बड़ा योगदान पिछले पांच वर्षों में इस सरकार का नहीं रहा।

2019 के अपने चुनाव घोषणापत्र में बीजेपी ने एक लाइन गंगा को दी है- गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा नदी का स्वच्छ, निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करना। इसके लिए 2022 तक की अवधि बताई गई है। प्रश्न है कि जब गंगा पर एक के बाद एक बांध बनाए जाते रहेंगे तो प्रवाह निर्बाध कैसे होगा/ विशेषकर तब जबकि गंगामंत्री नितिन गडकरी हर सौ किलोमीटर पर एक बैराज बनाने की योजना को आगे बढ़ाते दिख रहे हों। हाल यह है कि वाराणसी में 39 नाले पूरे शहर की गंदगी और कानपुर में दो दर्जन से अधिक चमड़ा कारखाने जहरीला पदार्थ गंगा में विसर्जित कर रहे हैं। उत्तराखंड के हृषिकेश और हरिद्वार में 100 से अधिक साधु-संतों के बड़े आश्रमों और होटलों का मल-जल रात में चुपचाप गंगा की धारा में बहा दिया जाता है। गंगा किनारे नए कारखानों की संख्या भी पांच सालों में काफी बढ़ी है।

पूरे करें वादे : सभी मानते हैं और वैज्ञानिक परीक्षणों से भी यह सच सामने आया है कि सदानीरा गंगा अपने लाखों साल पुराने अस्तित्व के एक अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है। जन-मन की आस्था की अतल गहराइयों में बहती हुई गंगा तो आज भी पवित्र है, निर्मल है पर भौतिक रूप से गंगा का पानी आचमन क्या नहाने लायक भी नहीं रहा। इसीलिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि जिस तरह सिगरेट के नुकसानों की चेतावनी उसके पैकेट पर दी जाती है, वैसा ही कुछ गंगा के पानी को लेकर भी जारी किया जाए। नरेंद्र मोदी इस बार भी गंगातट से अपने राष्ट्रीय राजनीतिक जीवन की दूसरी पारी प्रारंभ कर रहे हैं। उन्हें गंगा के प्रति किए गए अपने वादों को पूरा करने का संकल्प लेना होगा क्योंकि गंगा बीजेपी, कांग्रेस या एसपी-बीएसपी की नहीं है। गंगा के साथ खिलवाड़ इसलिए हो रहा है क्योंकि जनता इस पर आंदोलित नहीं हो रही है। यह मुद्दा तभी हल होगा, जब इसे युवा भगीदारी वाले जन आंदोलन का रूप दिया जाए।

(साई फीचर्स)