भगवान अच्छे से जाने है पापी मन को तेरे..

 

 

(प्रकाश भटनागर)

एमपी को जवाब मांगना होगा तो पहले पुराने पापी से जवाब मांगेगा या नए से? शिवराज जी आपको तो तेरह साल मौका मिला था, कमलनाथ जी को तो अभी बरस होना बाकी है। तो एमपी के जवाब मांगने से पहले जरा खुद के गिरेहबान में झांक कर अपने सवालों के जवाब तो तलाशिए। राजेश खन्ना की एक सुपरहिट फिल्म याद दिला दी शिवराज ने। नाम था रोटी। गाने के बोल थे, ‘यार हमारी बात सुनो, ऐसा एक इंसान चुनो, जिसने पाप ना किया हो जो पापी ना हो।इसमें एक संशोधन करके पढ़ा जा सकता है। इंसानकी जगह इसमें सत्ताधीश राजनेताओंको जोड़ लें। तो शिवराज पुराने पापी है और कमलनाथ नए। इसलिए कमलनाथ से किसी सवाल को करने से पहले जवाब तो खुद शिवराज सिंह चौहान को देना होंगे। शिवराज कमलनाथ से ट्विटर पर सवाल पूछ रहे हैं, ‘कमलनाथ जी मुझे इतना बता दें कि शराब से अब तक किसका भला हुआ है? अगर किसी का फायदा नहीं हुआ है तो फिर मध्यप्रदेश में शराब की नई दुकानें और बार खोलने का फैसला किसके लिए किया है? क्या कमलनाथ जी को इतना पता नहीं कि शराब से लोगों की गाढ़ी मेहनत की कमाई बर्बाद होगी, बहन बेटियों की सुरक्षा खतरे में पड़ेगी और अपराध बढेगा

शराब की खुली छूट देकर अपराध को बढ़ावा और बहनों की लाज को संकट में डालने वाली इस पापी सरकार की आंखें आखिर कब खुलेंगी? क्या कमलनाथ जी को इतना समझ में नहीं आ रहा है कि इस मूर्खतापूर्ण फैसले से पूरा प्रदेश केवल और केवल बर्बाद होगा।तो माननीय शिवराज जी, प्रदेश की साढे सात करोड़ जनता के मंदिर के स्वयंभू पुजारी जी, सत्ता से हटते ही जागने का ढोंग क्यों कर रहे हों? जब जागने का मौका था, अफसरों के दिमाग से चलते रहे, अब अगर कमलनाथ ऐसा ही कर रहे हैं तो आपको विलाप करने का कोई हक है क्या? ये मंदिर में बैठे भगवानों के देखने का मामला है, स्वयंभू पुजारियों के स्यापा करने का नहीं। शिवराज सिंह चौहान के समय एमपी वाकई गजब बन पाया हो या नहीं, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री अपना समय खत्म होने के बाद यह शख्स खुद अजब-गजब बन गया नजर आ रहा है। वे राज्य सरकार के विरुद्ध गरज रहे हैं और बकौल शिवराज मध्यप्रदेश नुमा इस मंदिर के भगवान बजरिए पुजारी पाप-पुण्य में गौते लगा रहे हैं। शिवराज उसी सब का सत्ता से हटने के बाद विरोध कर रहे हैं, जिसे लगभग पूरे तेरह साल तक उन्होंने खुलकर अंजाम दिया। पूर्व मुख्यमंत्री अपने मौजूदा समकक्ष को आंख दिखा रहे हैं।

है ना सब कुछ बहुत अजब! हुजूरे-आला, खुद अपने कार्यकाल में आपने क्या किया था? दिग्विजय सिंह ने तो शराब ठेकेदारों के दबाव में अंग्रेजी शराब दुकानों में आहता खोलने की नीति को अंजाम दिया था। आपने बारह साल की सत्ता के बाद आहते बंद करने का एलान भर किया लेकिन उनके खुले रहने के दूसरे रास्ते आपकी सरकार ने खोल दिए थे। हिप्पोक्रेसी के आप बहुत बड़े उदारहरण हो। देशी शराब के साथ अंग्रेजी शराब बिकवाने का काम आपने किया या नहीं? सरकार के रेवेन्यू को चूना लगवाया सो अलग। कमलनाथ ने तो जो आपकी सरकार अवैध तरीके से कर रही थी, उसे बस सरकार के राजस्व को बढ़ाने की नीति से जोड़ा है। शिवराज जी, आपने इन दुकानों की संख्या घटाने का कौन सा ठोस जतन कर लिया था? धीरे-धीरे इन ठिकानों की संख्या कम करने वाला बेहद दीर्घकालीन तरीका अपना कर आप चुप नहीं बैठ गए थे। बल्कि आपकी सरकार ने शराब के अवैध ठिकाने पैदा किए। कभी जरा जयंत मलैया से बात करके देख लो। शायद आपके स्मृति विश्राम को गति मिल जाए। यदि शराब से राजस्व आपकी जरूरत थी तो यही आवश्यकता वर्तमान साकार की भी है। आखिर कमलनाथ ने डीजल-पेट्रोल पर पांच रूपए कम करने का वादा करके पांच रूपए बढ़ा दिए या नहीं? कमलनाथ सरकार की शराब नीति का विरोध आपके श्रीमुख से शोभा नहीं देता।

मध्यप्रदेश तो तब भी चीत्कार कर रहा था। शराब के बुरे परिणामों से कराह रहा था। आपके सामने तो अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण था। जिनके राज्य गुजरात में शराबबंदी लागू है। नीतिश कुमार भी आपके कार्यकाल में ही बिहार में यह व्यवस्था लागू करके दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दे चुके थे। मोदी और नीतिश ने मुख्यमंत्री रहते हुए इस दिशा में सख्ती करने के बावजूद अपने राज्यों के खजाने को विपरीत रूप से अधिक प्रभावित होने नहीं दिया। और आप, शराब से जमकर राजस्व वसूलने के बावजूद ऐसा रीता हुआ खजाना छोडकर गये कि वर्तमान सरकार को वित्तीय प्रबंधन में पसीना आ गया। क्या आपसे से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि शराब से मिला राजस्व आखिर कहां गया? उत्तर सबको पता है। शिवराज शराब नहीं पीते, लेकिन उस समय वह सत्ता के नशे में चूर थे। हर कुछ कर जनमत को अपनी ओर खींचने की मदहोशी उन पर पूरी तरह हावी थी। जनता का पैसा ऐसी-ऐसी योजनाओं में फूंका गया, जिनमें जनहित जैसा कोई दृष्टिकोण ही नहीं था। कार्यक्रम ऐसे, जो केवल और केवल मुलायम सिंह के सैफई महोत्सव जैसे आत्ममुग्धता के भाव से घिरे हुए थे।

प्रदेश की जनता पेट्रोलियम पदार्थ की कीमत में वृद्धि से जब हलाकान थी, तब शिवराज आत्मरति के शिकार होकर धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास के मायाजाल पर पैसा बर्बाद करने में मशगूल थे। किसी ने सही कहा है कि नशा नाश की जड़ है। शराब का नशा भी ऐसा करता है और ऐसा ही करता है सत्ता का वह सुरूर भी, जो उस समय शिवराज और उनके मंत्रिमंडल के सिर पर सवार था। अब हैंगओवर के बाद शिवराज की छटपटाहट देखकर साफ है कि नशे का असर अब तक पूरी तरह नहीं जा सका है। विपदा यह कि उनके लिए सत्ता की सुरा का प्रबंध होने के आसार अब पूरी तरह कमजोर हो चुके हैं। एक भाजपा विधायक की सदस्यता खत्म होने के साथ ही कमलनाथ सरकार स्पष्ट रूप से बहुमत हासिल कर चुकी है। फर्क इससे भी नहीं पड़ेगा। कमलनाथ एक ब्लेकमैल होने वाले मुख्यमंत्री फिर भी बने ही रहेंगे। बहरहाल नशा किसी भी किस्म का हो, यदि लत में बदल जाए तो उसकी तलब भयावह होती है। सत्ता के मद से दूर होने के बाद उसमें दोबारा चूर होने की नाकाम कोशिश ने शिवराज के हालिया कार्यकलापों पर ऐसा ही भयानक असर दिखाना आरंभ कर दिया है। सच तो यह है कि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद शिवराज मध्यप्रदेश में अपनी प्रासंगिकता तेजी से खोते जा रहे हैं। जीवन के प्रत्येक पक्ष में नाकामी का अपना अहम स्थान है। कुछ लोग इससे सीख लेकर सफलता का जतन करते हैं और कुछ असफलता की खीझ निकालने में ही समय बिताते हुए अंतत: अप्रासंगिक हो जाते हैं। शिवराज इस दूसरी पायदान पर ही खड़े हैं। इस पायदान के ठीक नीचे हकीकत का वह सख्त फर्श है, जिसका स्पर्श उनके श्रीचरण जितना जल्दी कर लें, उतना ही खुद उनके लिए अच्छा होगा।

(साई फीचर्स)

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