कैसे बने जिंदगी की कसौटी?

 

 

(प्रणव प्रियदर्शी)

सीधी-सादी सोच और सीधी-सादी जिंदगी। इस एक पंक्ति में उनके अब तक के पूरे जीवन का सार आ जाता है। जब जो ठीक लगा किया और उसका नतीजा झेलने को सीना ताने तैयार रहे। बचपन में बीमार पड़े तो डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। तब अपने ही जोखिम पर अपना प्राकृतिक इलाज खुद शुरू किया। शरीर की प्रतिक्रियाओं को आधार बनाकर प्रयोग करते-करते खुद को ठीक किया।

डॉक्टर तो कुछ महीनों से ज्यादा की मोहलत देने को तैयार नहीं थे, लेकिन अपनी सेहत का जिम्मा खुद संभालने के बाद अपनी जिंदगी के करीब चार दशक उन्होंने आंदोलनों के नाम समर्पित किए। फिर आंदोलनों का दौर जैसे बैठ ही गया। अब जब समाज को आंदोलन की ही जरूरत नहीं रही, तो आंदोलन करने वालों का क्या मोल रहता?

ऐसे में अपने जैसे बहुतेरे अन्य लोगों की तरह इन्हें भी अपने सरोकारों, मूल्यों को खुद तक समेटते हुए अपने परिवार की जरूरतों के लिए नौकरी-पानी के बंदोबस्त में जुटना पड़ा। हालांकि आज नौकरी की मजबूरियों के बीच भी अपनी चिंता के दायरे में वह देश-दुनिया को समेटे हुए हैं। कभी अपने मोहल्ले की गंदगी दूर करने की मुहिम छेड़ते हैं तो कभी पशु-पक्षियों के जीवन की कठिनाइयां कम करने की मशक्कत में लगे नजर आते हैं और कभी हाशिये पर जीवन बिता रहे मनुष्यों के लिए संवेदना जुटाते दिखते हैं। कार्यस्थल पर भी अपने हिस्से की मेहनत बढ़ाकर माहौल में सौहार्द्र बनाए रखने से कभी पीछे नहीं हटते, लेकिन यह परिवेश ही कुछ ऐसा है कि सब कुछ करके भी संतोष नहीं हासिल कर पा रहे।

यह दरअसल जीवन के दो नितांत भिन्न रूपों का टकराव है जो उन्हें तोड़ रहा है। उनके अकेले की कहानी नहीं है यह। जीवन के पहले चरण में दुनिया को अपने सपनों के अनुरूप ढालने की कवायद में जो शिद्दत से लग गया, उसे दूसरे चरण में खुद को दुनिया के हिसाब से बदलने की कसरत उतनी ही शिद्दत से करनी पड़ जाए तो उसका टूटना लाजिमी हो जाता है। खासकर तब जब उसका अपना मन भी इस नई कसरत के औचित्य को लेकर संतुष्ट न हो।

बाहर और भीतर की इस दोहरी लड़ाई से साबुत बचकर निकल जाए, ऐसा माई का लाल शायद ही कोई नजर आया हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि ऐसा कोई हो नहीं सकता। इसलिए भी कि उसे पहचानने वाली नजर का होना मुश्किल है। नजरें भी तो सांचा बदलने वालों और सांचे में ढलने वालों के दो परस्पर विरोधी खांचों में बंटी हैं। दोनों खानों से गुजरते इस जीवन को परखने लायक सटीक कसौटियां बनें तो कैसे बनें।

(साई फीचर्स)