कब तक कागज नहीं दिखाएंगे आंदोलन?

 

(अजित कुमार)

यह लाख टके का सवाल है कि संशोधित नागरिकता कानून, सीएए के विरोध के नाम पर शुरू हुआ कागज नहीं दिखाएंगे आंदोलन कब तक चलेगा? क्या आंदोलनकारियों को लग रहा है कि उनके प्रदर्शन का दायरा और तीव्रता इतनी है कि सरकार को उनके आगे झुकना होगा? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह आंदोलन भी नर्मदा या दूसरे कई आंदोलनों की तरह सालों साल चलता रहे और सरकार को जो करना है वह करती रहे?

आंदोलनकारियों की एक उम्मीद न्यायपालिका से है। परंतु अगर अदालत ने इस कानून की संवैधानिक वैधता मान ली तब क्या होगा? क्या तब भी आंदोलन चलता रहेगा? इन सवालों का जवाब तत्काल नहीं मिलने वाला है। क्योंकि एक तरफ आंदोलन और प्रदर्शन हैं तो दूसरी ओर आंदोलनकारियों से मुआवजा वसूलने का अभियान है। भाजपा और केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में लोगों को जागरूक बनाने का अभियान अलग चल रहा है।

पहली जनवरी को नए साल के मौके पर दिल्ली में इंडिया गेट से लेकर जामिया नगर तक जुटे आंदोलनकारियों ने नए साल का संकल्प लेते हुए कहा कि कागज नहीं दिखाएंगे। कागज नहीं दिखाएंगे की एक कविता भी बन गई है। स्टैंडअप कॉमेडियन वरुण ग्रोवर ने इसकी रचना की है, जिसे आंदोलनकारी हर जगह गा रहे हैं। सवाल है कि किससे कौन सा कागज मांगा जा रहा है, जिसे नहीं दिखाने का संकल्प किया जा रहा है? जब असम समझौते के तहत सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बना तब तो सबने दस्तावेज दिखाए थे! तब छह करोड़ दस्तावेज दिखाए गए थे और कई राज्यों में भेज कर उनका सत्यापन कराया गया था। उस समय जब दस्तावेज दिखाने को कहा गया तब तो किसी ने कागज नहीं दिखाएंगे का नारा नहीं लगाया! सबने लाइन में लग कर कागज जमा कराए थे।

अब कहीं किसी से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा रहा है तो सब आंदोलन पर उतरे हैं कि कागज नहीं दिखाएंगे! असलियत यह है कि अभी सरकार किसी भी भारतीय नागरिक से कोई कागज नहीं मांग रही है। कागज उनसे मांगे जा रहे हैं, जो पड़ोसी देशों से शरणार्थी के रूप में आए हैं। अगर उनके पास यह साबित करने का दस्तावेज है कि वे हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख या ईसाई हैं और पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर 2014 से पहले भारत आए हैं तो भारत सरकार उनको नागरिकता देगी। इसके अलावा कम से कम अभी किसी से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा रहा है।

सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, एनपीआर को अपडेट करने के प्रस्ताव और इसके बजट को मंजूरी दी है। इसमें भी सरकार ने दो टूक अंदाज में कह दिया है कि किसी से कोई कागज नहीं मांगा जाएगा। पिछली बार जब एनपीआर को अपडेट किया गया था उसके मुकाबले इस बार कुछ ज्यादा सवाल पूछे जा रहे हैं। पर उन सवालों के जवाब को प्रमाणित करने या उनके सत्यापन के लिए कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा रहा है। सरकार ने कहा है कि उसे अपने नागरिकों पर भरोसा है। लोग जो भी जानकारी देंगे उसे मान लिया जाएगा।

यह भी हकीकत है कि मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने एनपीआर शुरू किया था और पी चिदंबरम के गृह मंत्री रहते इसे बनाया गया था। तब यह सवाल नहीं उठा था कि जनगणना से पहले जनसंख्या रजिस्टर की क्या जरूरत है।

अब रही बात राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, एनआरसी की तो सरकार अभी कह रही है कि उसने इस बारे में कोई चर्चा नहीं की है। यहां सरकार की मंशा ठीक नहीं लग रही है। चूंकि चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाएगा, इसलिए यह मानने में हिचक नहीं है कि सरकार देर सबेर एनआरसी लाएगी। भले उसने अभी चर्चा नहीं की है पर वह कोई बड़ी बात नहीं है। सरकार जब चाहे तब चर्चा कर लेगी और इसे लोगों के सामने पेश कर देगी। और जब एनआरसी लागू होगा तब लोगों को दस्तावेज दिखाने होंगे। अपनी नागरिकता साबित करने के लिए हो सकता है कि देश भर के लोगों को दस्तावेज दिखाने हों। पर यह भी हो सकता है कि एनपीआर में दी गई जानकारी के आधार पर चुंनिंदा लोगों से नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज मांगे जाएं। इन दोनों बातों पर आपत्ति हो सकती है।

सवाल है कि क्या भविष्य में सरकार ऐसी पहल कर सकती है, इस आशंका में अभी आंदोलन किया जा सकता है? सोचें, अगर सरकार आज कह दे कि वह एनआरसी नहीं लाएगी तो क्या लोग उस पर भरोसा करके आंदोलन खत्म कर देंगे? और अगर बाद में सरकार वादा तोड़ दे और एनआरसी लागू करे तो फिर क्या होगा? तभी ऐसा लग रहा है कि फिलहाल कागज नहीं दिखाएंगे वाले आंदोलन का कोई बहुत मजबूत आधार नहीं है और न इस आंदोलन को बड़ा समर्थन मिल रहा है। आंदोलन का मौजूदा आधार धर्म के आधार पर नागरिकता देने या नहीं देने का है। सरकार ने सीएए के जरिए यह भेदभाव किया है कि वह तीन पड़ोसी देशों से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं देगी। यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इसे लेकर विरोध होना चाहिए और किसी तरह से इसमें बदलाव का प्रयास किया जाना चाहिए। पर कागज नहीं दिखाएंगे आंदोलन का कोई खास मतलब नहीं है। यह एक अच्छा नारा हो सकता है पर किसी बड़े आंदोलन का आधार नहीं है।

 

(साई फीचर्स)

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