ईवीएम-वीवीपैट में कैसे इतनी गड़बड़?

 

 

(अजित कुमार)

इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन की साख पर अब तक का सबसे बड़ा सवाल उठा है। सवाल उठाया है असम के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी रहे हरेकृष्ण डेका ने। हरेकृष्ण डेका आईपीएस अधिकारी हैं और असम के डीजीपी रहे हैं। उन्होंने कहा कि 23 अप्रैल को मतदान के दौरान जब उनकी वीवीपैट मशीन से पर्ची निकली तो उन्होंने देखा कि पर्ची पर उसका नाम नहीं है, जिसको उन्होंने वोट दिया है। यानी उन्होंने वोट किसी और को दिया है और पर्ची किसी और के नाम की निकली है।

जब डेका ने इसकी शिकायत मतदान करा रहे कर्मचारियों से की तो उन्होंने कहा कि वे दो रुपए देकर इसकी औपचारिक शिकायत करा सकते हैं, जिसकी जांच मतदान कर्मचारी करेंगे और शिकायत गलत पाए जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। वीवीपैट पर्ची की शिकायत गलत होने पर दस हजार रुपए जुर्माना या छह महीने की जेल हो सकती है। जब यह बताया गया तो डेका ने शिकायत नहीं करने का फैसला किया। उनका कहना है कि वे जानते हैं कि मतदान कर्मचारी शिकायत की कैसी जांच करेंगे।

सोचें, जब राज्य के पुलिस महकमे में सबसे ऊंचे पद पर रहे अधिकारी ने जांच में गड़बड़ी और जेल जाने के डर से शिकायत नहीं कराई तो कोई आम आदमी कैसे शिकायत दर्ज करा सकता है। क्या चुनाव आयोग को ऐसे सख्त प्रावधान बनाने के समय इस बारे में नहीं सोचना चाहिए? बहरहाल, अब तक ईवीएम में गड़बड़ी से बचाव का उपाय वीवीपैट पर्चियों को माना जा रहा था। अगर उसमें गड़बड़ी है तो फिर मतदान की स्वतंत्रता व निष्पक्षता कैसे सुनिश्चित होगी?

ईवीएम की शिकायत लेकर 21 विपक्षी पार्टियों के नेता फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। वे वीवीपैट पर्चियों की गिनती बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा चाहते हैं, जिसके लिए पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। लेकिन यह तब की बात है, जब हरेकृष्ण डेका की शिकायत सामने नहीं आई थी। अगर यह बात सही है कि ईवीएम में जिस पार्टी का बटन दबाते हैं उसकी बजाय दूसरी पार्टी के पक्ष में पर्ची निकलती है तो वीवीपैट पर्चियों की मिलान का क्या मतलब रह जाएगा?

अगर यह शिकायत सही है तो चाहे 50 फीसदी पर्चियों का मिलान हो या सौ फीसदी पर्चियों का मिलान किया जाए, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर ईवीएम की गिनती और पर्चियों की गिनती बिल्कुल बराबर बैठेगी। तभी विपक्षी पार्टियों को चाहिए कि वे अपनी मूल शिकायत पर लौटें। वे इस बात को समझें कि अगर ईवीएम में से छेड़छाड़ संभव है तो वीवीपैट के साथ भी छेड़छाड़ संभव है। चूंकि वीवीपैट के पर्चियों की गड़बड़ी की शिकायत सही नहीं पाए जाने पर दस हजार का जुर्माना या छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान है इसलिए लोग शिकायत भी नहीं कराएंगे। सो, सिर्फ 50 फीसदी पर्चियों की गिनती की मांग से अब स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं संभव होने वाला है।

गौरतलब है कि विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम की गिनती से किया जाए। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र से एक मतदान केंद्र की पर्चियों का मिलान होता है। सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी पार्टियों की दलील सुनने के बाद इसे बढ़ा कर पांच करने का आदेश दिया। यानी अब हर विधानसभा क्षेत्र में पांच मतदान केंद्रों पर पर्चियों का मिलान ईवीएम की गिनती से किया जाएगा।

विपक्ष ने इस फैसले पर पुनर्विचार की याचिका दी है और कहा है कि वह फिर से 50 फीसदी पर्चियों की गिनती के बारे में सोचें। इस बीच असम में यह शिकायत आ गई कि पर्ची भी गलत नाम से निकल रही है। इससे पहले दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक बूथ का हवाला देकर ट्विट किया था कि तीसरे चरण में एक बूथ पर मशीन में नौ वोट डाले गए और गिनती हुई तो 16 वोट भाजपा के निकले। सिसोदिया और दूसरे भाजपा नेताओं ने यह जानना चाहा है कि क्यों जहां भी मशीन खराब होती है वहां वोट भाजपा को ही जाता है?

तीसरे चरण के मतदान के बाद देश के अलग अलग हिस्सों में ईवीएम की नई गड़बड़ियां सामने आई हैं। हजारों की संख्या में मशीनें खराब हुई हैं। वीवीपैट मशीनें भी खराब हुई हैं। अगर वोट की गड़बड़ी की बात छोड़ दें तो मशीनों के खराब होने से मतदान बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। कई जगह खुलते ही ईवीएम मशीन खराब हो गई, जिससे मतदान देरी से शुरू हुआ और लोगों को घंटों लाइन में इंतजार करना पड़ा। मशीन खराब होने से देर रात तक कई जगह मतदान होता रहा। लोग ऊब कर मतदान केंद्रों से लौट गए।

इस बार मत प्रतिशत पिछली बार से नहीं बढ़ने का एक कारण ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की गड़बड़ी को भी माना जा रहा है। सवाल है कि जब मशीनें इतनी खराब हो रही हैं तो इनको चुनाव आयोग कैसे फुलप्रूफ बता रहा है और कैसे दावा कर रहा है कि दुरुपयोग संभव नहीं है? आयोग और सुप्रीम कोर्ट दोनों को इस बारे में सोचना चाहिए।

(साई फीचर्स)