एकेश्वरवाद, आज्ञापालन, आत्मसमर्पण, त्याग और बलिदान का त्यौहार है ईदुल अजहा

 

 

(अ.वाहिद खान)

संसार में जितने समाज और दीन, धर्म हैं उनके मानने वाले कोई न कोई त्यौहार जरूर मानते हैं। त्यौहार हर्ष व उल्लास और खुशी मनाने का दिन होता है जिसे, अक्सर सब लोग मिल जुलकर मनाते हैं। संसार के पालनहार ने इस्लाम धर्म के अनुयायियों को प्रत्येक वर्ष में दो दिन त्यौहार के रूप में खुशी मनाने को दिए हैं। पहला है ईदुल फित्र तथा दूसरा है ईदुल अजहा। ईदुल फित्र तो रमजान माह के पूरे एक महीना रोजे रखने के बाद आता है और चांद दिखने के दूसरे ही दिन या 30 रोजों की गिनती पूर्ण करने पर मनाया जाता है।

इस में चांद दिखने से लेकर ईद की नमाज पढ़ने को जाने के बीच प्रत्येक व्यक्ति की ओर से ढाई किलो अनाज गेंहू आदि गरीब, यतीम, मिस्कीन, बेवा, असहाय लोगों में बांटा जाता है जिसे फितरह कहते हैं। फितरा देना अनिवार्य है, ईदुल फित्र को भारतीय उपमहाद्वीप में मीठी ईद भी कहते हैं क्योंकि, नमाज पढ़ने के पहले कुछ मीठी चीज खाना जरूरी है। हजरत मुह ाद स. ताक अदद विषम संख्या में खजूरे खा कर नमाज को जाया करते थे।

उक्ताशय की जानकारी देते हुये मदरसा सुमैया लिलबनात के सचिव अब्दुल वाहिद खान ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि इस्लाम में दूसरा खुशी का दिन है ईदुल अजहा जिसे भारतीय उपमहाद्वीप की बोल, चाल की भाषा में बकराईद भी कहते हैं। यह त्यौहार आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व एकेश्वरवाद को स्थापित करने की चेष्टा में प्रभु की आज्ञा पालन करने हेतु अपना सब कुछ बलिदान कर देने वाले पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके इकलौते बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की ऐतिहासिक कुबार्नी को याद दिलाता है।

अब्दुल वाहिद खान ने आगे बताया है कि इब्राहीम अ. के पिता का नाम आजर था जो पत्थर की मूर्तियां बनाकर बेचा करते थे और लोग उसी को अपना ईष्ट मानते थे। इब्राहिम अ. के मन में बात आई कि पत्थर की मूर्ति हमें क्या दे सकती है? उसे तो हम अपने हाथों से बनाते हैं तो, यह हमारी ईष्ट कैसे हो सकती है? इसके जन्मदाता तो हम हैं, यह हमारी जन्मदाता कैसे हो सकती है?

बस इसी सोच में इब्राहीम की सुबह से शाम हो गई और जब रात छा गई तो उसने एक तारा देखा तो कहने लगा यह मेरा रब है, परंतु जब वह डूब गया तो कहा डूबने वालों से मुझे प्रेम नहीं, फिर जब चांद को देखा कि चमक रहा है तो कहने लगे यह मेरा परवरदिगार है, किंतु जब चंद्रमा भी डूब गया तो बोल उठे कि मेरा प्रभु मुझे सीधा रास्ता नहीं दिखाएगा तो मैं भटके हुए लोगों में हो जाऊंगा और जब सूरज निकला और उसे चमकता हुआ देखा तो कहने लगे कि यह मेरा रब है क्योंकि यह सबसे बड़ा है किंतु जब सूरज भी डूब गया तो इब्राहीम ने कहा डूबने वाला मेरा प्रभु नहीं हो सकता।

इब्राहीम ने कहा मैंने हर ओर से कट कर उस की ओर अपना मुँह कर लिया जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया है उसका कोई साझी नहीं। इब्राहीम अ. ने एकेश्वरवाद को स्वीकार करके सबसे पहले अपने पिता आज? को समझाया किंतु वह न मानें बल्कि, इब्राहीम को उनका विरोध सहना पड़ा। इस प्रकार समाज भी उनका विरोधी हो गया और अंत में उस समय का राजा भी उनका विरोधी हो गया, किंतु इब्राहीम सत्यमार्ग से टस से मस नहीं हुए।

मदरसा सुमैया लिलबनात के सचिव ने आगे बताया कि उन्होंने उस समय के बादशाह नमरूद को भी तौहीद एकेश्वरवाद की दावत दी किंतु, इब्राहीम को एक अल्लाह को मानने और उसकी सत्ता को स्वीकार करने के अपराध में धड़कती आग में फेंक दिया गया। ईश्वर के आदेश से आग इब्राहीम के लिए गुलजार हो गई और इब्राहीम अपने अल्लाह को समर्पित होने में कामयाब हो गए। उन्हें बाप ने मार डालने की धमकी दी, अतरू उन्हें स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। यह इब्राहीम के लिए कड़ी परीक्षा थी।

इब्राहीम अपनी प्रत्येक परीक्षा में पास होते गए। समय बीतता गया, शादी भी हुई, बुढ़ापा भी आया, किंतु बीबी के बांझ होने के सबब कोई औलाद नहीं थी, उन्होंने अल्लाह से दुआ मांगी तो 86 वर्ष की आयु में अल्लाह फरिश्तों के द्वारा बेटा होने की खुशखबरी दी गई। इब्राहिम अ. के बुढ़ापे के पहले बेटे का नाम इस्माईल अ. रखा गया।

इस्माईल अ. जब अपने बाप के साथ चलने फिरने और दौड़ने की उम्र पर पहुंचे तो एक दिन इब्राहीम अ. ने कहा बेटा, ह्यमैं वाब में देखता हूं कि तुम को जिबहा कर रहा हूं तो तुम सोचो कि तु हारा क्या याल है?ह्य बेटे इस्माईल ने अपने बाप से कहा अब्बा! जो आपको हुक्म हुआ है वही कीजियेगा। अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाइयेगा। दोनों ने फिर जब समर्पण भाव प्रगट कर दिया तो बाप ने बेटे को माथे के बल लिटा दिया कि छुरी फेरे। अल्लाह ने पुकारा ए इब्राहीम तुमने वाब को सच्चा कर दिखाया हम नेकोंकारों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं। निश्चित ही यह एक खुली हुई परीक्षा थी।

अल्लाह ने इस्माईल की जान बचाने के लिए एक बड़ी कुबार्नी दी अर्थात फरिश्ते ने कहा मेंढा हज?त इब्राहीम अ. के सामने प्रस्तुत कर दिया जो ह.इस्माईल अ. की जगह उन्होंने जिब्हा कर दिया और इसे अल्लाह ने कयामत तक के लिए प्रचलित कर दिया कि ठीक इसी तिथि यानि 10 जिलहिज्जा को संपूर्ण संसार में मुसलमान अल्लाह के बताए चौपाये जानवरों की कुबार्नी करें और प्रण करें कि मेरी नमाज, मेरी कुबार्नी, मेरा जीना, मेरा मरना सब अल्लाह के लिए है जो सारे जहान का स्वामी है और उसका कोई शरीक नहीं। इसी का मुझे आदेश दिया गया है और मैं सब से पहले इस्लाम की स्वीकारोक्ति करता हूं। अल्लाह के नाम से जो सब से बड़ा है। अल्लाह यह मेरी तरफ से है और तेरे लिए है तू इसे कुबूल फरमा जैसा तूने अपने खलील ह.इब्राहीम और अपने हबीब ह.मुहाद स. की कुर्बानियों को कुबूल फरमाया है।

हजरत इब्राहीम अ. की कुबार्नी का मकसद मात्र एक पिता द्वारा अपने इकलौते पुत्र के खून से जमीन को रंग देना नहीं था बल्कि अल्लाह के सामने अपनी समस्त भावनाओं, इच्छाओं, मनोकामनाओं और अभिलाषाओं का बलिदान था। अल्लाह के आदेश के आगे अपने हर प्रकार के इरादे और मर्जी को मिटा देना था। यह मात्र खून और गोश्त की कुबार्नी नहीं है बल्कि, अल्लाह की राह में अपनी हर प्रिय चीज की कुबार्नी का प्रतीक है। अल्लाह के आज्ञापालन की सब से अद्भुत घटना और इतिहास की यादगार है ह्यह्यईदुल अजहाह्यह्य।

अब्दुल वाहिद खान ने आगे बताया है कि ईदुल अजहा इस्लामी सन् हिजरी के बारहवें और अंतिम महीने की दस तारीख को मनाई जाती है। इस दिन सुबह सबेरे उठकर गुस्ल करना। अच्छे से अच्छे कपड़े जो मयस्सर हों पहनना इत्र और सूर्मा लगाकर बगैर कुछ खाये पिये ईदगाह जाना। रास्ते में और ईद गाह में तकबीरात जोर, जोर से पढ?ा। इमाम के पीछे जमाअत से दो रकअत नमाज पढ?, खामोशी के साथ खुतबा सुनना और अपने लिए अपने मुल्क व मिल्लत के लिए अमन व शांति की दुआ अपने मालिके हकीकी से मांगना।

उन्होंने आगे बताया कि ईदगाह से दूसरे रास्ते से वापस आकर चौपाये जानवरों की कबार्नी करना और सब से पहले कुबार्नी का गोश्त को खाना, खिलाना सुन्नत है। कुबार्नी का गोश्त गरीबों, यतीमों, मिस्कीनों को सदका करना और दोस्त अहबाब को तोहफे में देना जायज है। तागूत से और शिर्क से बचना और हक की शहादत देना इस अजीज और अच्छाईयों को फैलाना प्रत्येक समर्पित धर्म परायण व्यक्ति का ध्येय होना चाहिए।

(साई फीचर्स)

SAMACHAR AGENCY OF INDIA समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.