युवा महिला गणितज्ञों के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

 

(चंद्रभूषण)

ईरान की जीनियस गणितज्ञ मरियम मिर्जाखानी की याद में युवा महिला गणितज्ञों के लिए 50 हजार डॉलर का एक पुरस्कार शुरू किया गया है। अमेरिका में दिया जाने वाला यह पुरस्कार संसार में कहीं की भी महिला गणितज्ञ को उसकी डॉक्ट्रेट थीसिस स्वीकृत होने के दो साल के अंदर ही दिया जा सकता है। इस समय सीमा के बाद पुरस्कार की अर्हता समाप्त हो जाएगी। गणित की अमूर्त दुनिया में लैंगिक विभाजन और इससे जुड़े पूर्वाग्रहों के लिए कोई जगह नहीं होती, लेकिन समाज में अगर ऐसे पूर्वाग्रह मौजूद हों तो उनसे निपटना भी गणितज्ञों का ही काम है। लड़कियों का गणित कमजोर होता है, ऐसी एक धारणा भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में चली आ रही है, हालांकि हकीकत इससे अलग है। इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस से लेकर प्योर मैथमेटिक्स तक गणित के सारे क्षेत्रों में लड़कियों-लड़कों के बीच अब कोई फर्क नहीं बचा है।

मरियम मिर्जाखानी को 2014 में मिला फील्ड्स मेडल किसी महिला गणितज्ञ को उसके क्षेत्र का यह सर्वाेच्च सम्मान मिलने का पहला वाकया था, जिसके तीसरे साल यानी 2017 में ही ब्रेस्ट कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी गिनती गणित के नायकों में पहले ही हो रही थी पर इस दुखद घटनाक्रम ने उनके इर्द-गिर्द दुखांत नायिका की अद्भुत आभा रच दी। फील्ड्स मेडल असाधारण प्रतिभा वाले गणितज्ञों की पहचान करने वाला एक अलग तरह का पुरस्कार है। चार साल के अंतर पर दिया जाने वाला यह पुरस्कार 40 साल से कम उम्र के मैथमेटिशियंस को ही मिलता है। इसकी दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1936 से अब तक यह कुल 70 लोगों को मिला है, जिनमें कुछेक का नाम एक से ज्यादा बार भी दर्ज है। मरियम मिर्जाखानी का गणित में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करना किसी परीकथा से कम नहीं था।

1977 में जन्मी मरियम जब तेहरान में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रही थीं तब उनका देश कट्टरपंथी इस्लामी क्रांति से गुजरते हुए इराक के साथ लंबे युद्ध का सामना भी कर रहा था। इस अशांत स्थिति में भी किसी आम तेहरानी नागरिक की तरह मरियम में साहित्य के प्रति गहरा अनुराग था और बड़ी होकर वे इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं। यहां से गणित के बिल्कुल अजनबी दायरे में अपनी यात्रा का वे एक दिलचस्प किस्सा बताती थीं। उनके बड़े भाई एक दिन स्कूल से आए और उन्हें 1 से लेकर 100 तक की संख्याओं का जोड़ फटाफट बताने को कहा। मेहनत-मशक्कत करके इस सवाल का कोई जवाब खोज पातीं, इसके पहले ही भाई ने उन्हें बताया कि ऊपर और नीचे की संख्याओं के जोड़े बनाकर देखो- 100 धन 1 बराबर 101, 99 धन 2 बराबर 101, 98 धन 3 बराबर 101, 49 धन 52 बराबर 101 और 50 धन 51 बराबर 101, यानी कुल 50 ऐसे जोड़े, जिनका जोड़ 101 आता है। इस तरह कुल हिसाब 50 गुणित 101 बराबर 5050 का बनता है।

मरियम का कहना था कि यह चमत्कार देखकर वे गणित की मुरीद हो गईं। कितनी प्रतिभा उनके अंदर छिपी थी और कितनी तेजी से उन्होंने इसका इस्तेमाल करना सीख लिया, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईस्कूल पास करने के तुरंत बाद 1994 और 1995, दोनों वर्षों के इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलिंपियाड उन्होंने जीते। पहली बार 99 और दूसरी बार सौ में सौ अंकों के साथ। यहां से आगे अपनी बी. एससी. उन्होंने तेहरान की शरीफ टेक्निकल युनिवर्सिटी से पूरी की और फिर हायर स्टडीज के लिए अमेरिका आ गईं।

गनीमत इतनी ही थी कि इस समय ईरान में उदारवादी नेता मोहम्मद खतामी का शासन था और बाहर पढ़ने की उनकी अर्जी को पलायन या देशद्रोह की कोशिश की तरह नहीं देखा गया। जहां तक सवाल गणित में मरियम के योगदान का है तो यह टोपॉलजी के क्षेत्र में है, जिसे कुछ लोग ज्योमेट्री (रेखागणित) की एक ताजातरीन शाखा की तरह भी देखते हैं। पहली नजर में कोई उनके काम को ऐब्स्ट्रैक्ट मैथमेटिक्स तक ही सीमित बताएगा, लेकिन कंप्यूटर साइंस से लेकर जूलॉजी तक विज्ञान के कई दायरों में अब इसकी धमक सुनाई देने लगी है। मरियम मिर्जाखानी के रिसर्च पार्टनर अलेक्स एस्किन को अभी बीते सितंबर में 30 लाख डॉलर का ब्रेकथ्रू प्राइज उसी मैजिक वॉन्ड (जादू की छड़ी) थ्योरम के लिए मिला है, जिसका प्रूफ दोनों ने साथ मिलकर खोजा था।

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