उपेक्षा, उत्पीड़न का दंश झेल रहा कलाल समाज

 

 

(हरीश अहमद मिनहाज)

इस कटु सत्य की अवहेलना, अनदेखा या विस्मृत नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम समाज में एक ऐसा वर्ग भी है, जो ना तो सभ्य समाज या इस्लाम धर्म ही इसका इजाजत देता है कि वो शराब (मद्यपेय) का व्यवसाय करें।

जी हाँ… हम बात कर रहे है मुस्लिम समाज में सबसे पिछड़ी जाति कलाल जाति का, जो कलवार, कलार, कल्लार या ऐराकी नाम से जाना जाता है। शतक दर शतक से यह समाज अपने परम्परिक पुश्तैनी व्यापार को आत्मसात किया हुआ है। बिना कोई लज्जा और धर्म में निषेध से परे, बिना डर के विपरीत बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंगाल राज्यांें में शराब का एक क्षत्र ठेका इस जाति के नाम आज भी कलाली नाम से सार्वजनिक है। उर्दू शब्द कोष फिरोजुल लुगात में भी इसका रूपांतरण शराब बेचने, पीने व व्यवसाय करने से की गई है। इस जाति की भगोलीय स्थिति मुख्य रुप से बिहार, झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा, दिल्ली आदि राज्यों में अधिकांश रुप से प्रगाढ़ है। ऐसा नहीं है कि कलाल समाज की जनसंख्या बिहार राज्य में कम है या राजनीतिक रुप से वोट की शक्ति से हसिए पर है। इसकी जनसंख्या बिहार के सभी जिलों में हैं और कुछ विधानसभा क्षेत्रों में प्रबल है। प्रत्याशियों को जीतने व हराने की ध्रुवीकरण की निर्णायक क्षमता इस जाति के पास यथावत है। बिहार की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम पिछड़ी जाति है। झारखण्ड राज्य में तो सबसे बड़ी मुस्लिम जनसंख्या वाली यही समाज है। हजारीबाग, रामगढ़, राँची, चतरा, सिमडेगा, चांईबासा, लोहरदग्गा, गिरीडीह, धनबाद, डालटेलगंज आदि जिलों में इस जाति की जनसंख्या और जनाधार प्रभुत्व है। फिर भी दोनों राज्यों की सरकार के उदासीनता के कारण कलाल समाज पिछड़ा है वंचित है।

यह अलग बात है कि 90वें के दशक में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के मण्डल बनाम कमण्डल के ब्यार के परिमाटी में इस जाति को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भारतीय राजपत्र में 6 दिसंबर 1999 को पिछड़ी जाति के एनैक्चर-2 सूची में शामिल किया था। इसकी सारी व्यूह रचना और रुपरेखा राँची के निकट ईटकी क्षेत्र मंे बिहार मुस्लिम कलवार, कलाल ऐराकी मिल्लत कमेटी के बैनर तले समाज का दो दिवसीय 5-6 नवम्बर 1994 को विराट पैमाने पर व्याख्यानमाला का सफल आयोजन कर जिसकी अध्यक्षता चाकुलिया निवासी एस. एम. इलियास ने किया। अपने 208 पृष्ठों के स्मारिका में व मुख्य अतिथि लालू प्रसाद यादव के उपस्थिति में स्वयं को अति अत्यंत पिछड़ी जाति के एनैक्चर-1 के सूची में सम्मिलित करने का गुहार लगाया था, परन्तु राजनीतिक व सामाजिक सूझ-बूझ से निष्क्रिय और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने में निष्फल और दक्षता नहीं रहने के कारण शासित दल के दांव, छल और प्रपंच में इस जाति को एनैक्चर-2 से 24 वर्षो से आज तक संतोष करना पड़ रहा है। जो विषेश और प्रत्यक्ष तौर पर समाज के उन कल्याणकारी योजनाओं से उनके बच्चे लाभांवित नहीं हो रहे हैं जो उन्हे मुख्य धारा मेंशामिल कर विकास के पथ पर अग्रसर करा सके।

सहसा इस बात का आंकलन स्वयं लगा सकते हैं कि कितना हृदय विदारक मजबूरी रही होगी, कि सभ्य समाज और इस्लामिक धर्म के आदेश (हराम) से परे शराब, गांजा, खैनी, तम्बाकु , बीड़ी आदि मनिशियात (नशाखोरी) की तिजारत करते चले आ रहे थे परन्तु ऐसा नहीं है कि इस कलाल समाज के समस्त लोग शराब का व्यापार करते हैं। कुछ लोग अपवाद के तौर पर मुट्ठी में गिनती भर नाम-मात्र ही आते थे। अंग्रेजों द्वारा जाति सूचक व्यापार करने से कलाल की कलाली नाम से पूरा समाज दुष्प्रचार हुआ और धीरे-धीरे मुस्लिम समाज के अगडी जातियों द्वारा भी इन्हें हे दृष्टि से बल्कि यूं कहें कि सामाजिक प्रताड़ना, बहिष्कार का दंश भी सहना पड़ा और आज भी इसका तिरस्कार निरंतर इस समाज का होता है। सफलता का परिचायक चक्र चुनाव चिन्ह की जिस लालू प्रसाद यादव की सरकार ने कलाल समाज को पिछड़ी जाति के श्रेणी में शामिल किया, वहीं इन्हीं के सरकार के कुनीतियों व यादवी अत्याचार व भायादोहन से बिहार के किसी भी जिला और कस्बा में शराब का एक भी ठेका वर्तमान परिदृष्य में कहीं भी कलाल समाज का नहीं है। इसकी शून्यता या प्रत्यागता से समाज में प्रसन्नता का पात्र है। कारण यह है कि, शराब का व्यापार इस्लाम धर्म में हराम, स्वर्ग व दुआ की प्राप्ति से वंचित बताया गया है। एक दृष्टिकोण यह भी है कि मुट्ठी भर शराब का कारोबार करने वालों से सम्पूर्ण समाज कलंकित हो रहा था और उस पर दुष्प्रचार यह कि मुस्लिम समाज में मरवाड़ी और धन कुबेर के तौर पर कुविख्यात था। जिसका खामियाजा उन लोगों को उठाना पड़ रहा था जो वास्तविक तौर पर निरीह, दबे कुचले कलाल थे। जो रोज कुआं खोदो और पानी पीओ की पद्धति से बड़ी मुश्किल से जीवन यापन कर दो जून की रोजी-रोटी जुटाकर परिवार पाल रहे थे। अन्ततः धन कुबेर का फुदना, तमगा और कलाली ठेका का क्लंक हट चुका है और उन्हे सरकार से आस है कि अत्यंत पिछड़ी जाति के सूची एनैक्चर-1 में सम्मिलित कर आने वाली नसलों का भविष्य स्वर्णिम बना सकें।

अन्तोगत्वा जो भी हो, बिहार सरकार ने 1999 में दिये आरक्षण के अवलोकन और मूल्यांकन का वास्तु स्थिति जानने के लिए 29 जून 2001 को न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद, गौरख प्रसाद, भीम सिंह, द्वारिका प्रसाद और अली अनवर के नेतृत्व में चार सदस्यीय दल का गठन कर अपने 12 पृष्ठों के दस्तावेज पर आधारित कलाल समाज को एनैक्चर-1 से वंचित कर एनैक्चर-2 में अपने स्थान पर यथावत बनाये रखे जाने की सिफारिश किया जो सत्य और धरातलीय पटल से कोसो दूर परे था। जो ना सिर्फ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने बिहार सरकार को वास्तविकता से पूरी तरह गुमराह किया बल्कि उन लोगों के अधिकार का भी हनन किया जो एनैक्चर-1 मिलने के पात्र थे, हकदार थे। आनन-फानन, दबाव और पक्षपात में दिये गये आयोग की रिपोर्ट में बहुत सी खामियां है। महज 3-4 दिनों के भीतर मात्र 3-4 जिलों के भ्रमण के आधार पर कोई भी आयोग सम्पूर्ण समाज के पिछड़ेपन के प्रतिबिम्ब को केन्द्रित नहीं कर सकती। कलाल समाज चाहता तो आयोग की रिपोर्ट को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती देकर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकती थी। परन्तु भविष्य की कल्पना और समुन्द्र मंथन के आधार पर विष का सेवन करने में स्वयं को हितकारी समझी। कितना विकराल और भयावह इस सत्-प्रतिशत् पराकष्ठा का शिखर सत्य यही है कि आज भी चाहे सुदृढ़ ग्रामीण ईलाका हो या अत्याधुनिक शहरी ईलाकों में कलाल समाज मध्य वर्गीय श्रेणी के नीचे के स्तर पर पूरा समाज जिन्दगी बसर कर रहा है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित की स्थिति इनके घर की ड्योढ़ी द्वार पर जाकर सहसा देखा जा सकता है। गया जिला के अन्तर्गत शेरघाटी प्रखण्ड के कचौड़ी पंचायत में लछनैती गाँव इसका ज्वलंत जीता जागता प्रमाण है। साथ ही करहरा, बकरौल, छाछ इत्यादि गांव में मिट्टी और गिलावे के घर पर जिन्दगी दो चार है। घर के मर्द रोजगार के लिए पलायन कर गये हैं और युवा दूसरे के खेत और ईंट भट्टा में काम करते है। प्रमण्डलीय मुख्यालय गया शहर के गयावाल बिगहा, भुसुण्डा, अबगीला में अधिकांश परिवार अगरबत्ती बनाने, शेखपुरा में टम टम, ठेला रिक्शा चलाकर जीवन-यापन कर रहे हैं। वहीं गिरीडीह में पत्थर तोड़ने, चतरा में पेड़ पत्ता, काटने और गंगा पार के अधिकांश जिलों में लोग मुर्गी पालन व जूट की खेती पर निर्भर है। सरांशताः इस समाज का यही है कि बकौल न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर के दलित समाज से भी बदत्तर जीवन यापन ये लोग (कलाल समाज भी) कर रहें हैं।

समाज की पस्तहाली और राजनीतिक चेतना का ना रहने का अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि जब द्वितीय क्रम में 26 जून 2007 को गया परिसदन में अति पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष उदयकान्त चौधरी कलाल समाज की समीक्षा के लिए गया जिला आये थे तो समाज को मालूम ही नहीं चला था। तृतीय क्रम अर्थात 13 जून 2015 को तत्कालीन अध्यक्ष रविन्द्र तांती के नेतृत्व में चार सदस्यीय आयोग जांच दल, जिनमें उपाध्यक्ष प्रमोद कुमार चन्द्रवंशी, सदस्य टुनटुन प्रसाद, रजिया कामिल अंसारी, राम दयाल मेहता जब प्रमाणित वस्तु स्थिति से अवगत हुए और कलाल समाज की बदहाली देखकर उनके आंखों में आंसु आ गया और सहसा जेब से 500 रुपये निकालकर बच्चों को मिठाई खाने के लिए पारितोशित दे दिये।

यदि हम पश्चिम बंगाल की बात करंें तो ममता सरकार ने भी बिहार, झारखण्ड सरकार की भांति 19 जनवरी 2015 को अपने राजपत्र में इस जाति को पिछड़ा वर्ग की सूची में ही रखा। राज्य में इस जाति का घनत्व आसनसोल, अण्डाल, रानीगंज, दुर्गापुर, कोलकत्ता, हुगली, पुरूलिया, सीलीगुड़ी, चन्दन नगर, काकीनाड़ा, इच्छापुर तथा 24 परगना क्षेत्रों में बहुतायत है। कलाल जाति को केन्द्रीय सूची में शामिल कराने का संघर्ष यहां के लोग प्रयासरत है।

वहीं उड़ीसा में कलाल समाज सम्पूर्ण रुप से लघु व छोटे व्यवसाय करते है। पुरानी पीढ़ी विशेष तौर पर शिक्षा की शक्ति से अनभिज्ञ थी, वर्तमान में युवा पीढ़ी कुछ पढ़-लिख रही है, जिससे कि उसकी पहचान उसकी कृति से समाज लाभांवित हो। दूसरे राज्यों की भांति यहां भी इस समाज को कलवार, कलाल, कलार नाम से भी जाना जाता है। इसकी बहुलता राउलकेला, राजगामपुर, छालसोगड़ा, सम्भलपुर, सुंदरगढ़, गंजाम आदि जिलों में हैं। परन्तु राज्य सरकार कलाल जाति को पिछड़ी जाति की सूची में रखने के मृगमरीचिका का खेल खेल रही है। लगभग दो दशक से अध्यादेश अधर में है। समाज की स्थिलता और निष्क्रियता से राज्य पिछड़ा आयोग व मंत्रालय ने भी इसकी पहल और इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। जिसके फलस्वरुप समाज लाभांवित नहीं हो पा रहा है। विकास के सारे मार्ग अवरुद्ध है। सरकार की योजनाओं से इन्हें परस्पर कोई भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसी आलोक में उड़ीसा सरकार की विकास की शंखनाद की पहल और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के संयुक्त तत्वाधान में 18 अप्रैल 2001 को भुवनेश्वर में चार सदस्यीय आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी.एल.यादव, श्रीमती नीरा शास्त्री, डॉ0 बी.एम.दास और एम.एस. माथारू वहीं राज्य सरकार की ओर से अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अवर सचिव एम.के.मलिक, डॉ0 एन.के. भरूवा, डॉ0 के.सी.जेना और डॉ0 श्रीनिवास साहु, राज्य आयोग की ओर से शीतल प्रसाद शिवहरे ने प्रतिनिधित्व किया, तो कलाल समाज की ओर से स्थानीय निवासी मोहम्मद हामिद हुसैन राजपत्रा, साबिर हुसैन और मोहम्मद इब्राहीम ने समाज की बदहाली का पक्ष रखा।

बहरहाल, कलाल समाज वर्तमान परिदृश्य मंे मात्र ये चार राज्यों, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल में ही सीमित नहीं है। आधुनिकता के इस दौर में खासकर युवा वर्ग चाहे पठन-पाठन हेतु या स्व-रोजगार संसाधन खोजने के लिये जीविका का क्षितिज सम्पूर्ण भारतवर्ष में रेखांकित करती है, अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है, दिल्ली, मुम्बई, बेगलूरू, हैदराबाद, मद्रास, सेलम आदि छोटे बड़े शहर हों या महानगरों में मुस्लिम कलाल समाज स्थापित है।

इसके पिछड़ेपन की व्याख्या के सार का अखण्ड ज्ञान एनथरोपोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा प्रकाशित

  1. श्री एच.एच. रिसले ने अपनी किताब दि ट्राईप्स एण्ड कॉस्ट ऑफ बंगाल वर्ष 1891 पृष्ठ 385-387
  2. श्री विलियम कुर्क द्वारा दि ट्राईप्स एण्ड कॉस्ट ऑफ दा नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया वर्ष 1896
  3. हकीम मौलवी मोहम्मद ईब्राहिम साहब द्वारा लिखित 47 पृष्ठो पर आधारित सिलसिल-ए-अनसाबुल ऐराकीया प्रकाशित 23 मार्च 1917
  4. खुतब-ए-सदारत राज्य स्तरीय जमीअतुल ऐराकीन कानफ्रेेन्स, जहानबाद 28, 29 अकतुबर 1951
  5. दि इम्पीरियल गजटियर वर्ष 1881 और 1991 ईस्वी की जनगणना की रिपोर्ट में कलाल जाति के पिछड़ेपन का उल्लेख सर्वोपरि है।
  6. उर्दू त्रिमासिक पत्रिका किरण 1948 से 1952 में संबंधित आलेख प्रकाशित है।
  7. श्री रामचन्द्र प्रसाद द्वारा इंडिया दि लैंण्ड एण्ड दा पीपुल्स बिहार पृष्ठ 151
  8. एम.के.ए सिद्दकी द्वारा अपनी पुस्तक मुस्लिम ऑफ कोलकत्ता पृष्ठ 36, 78, 86,92
  9. श्री के.के. सिंह पीपुल्स आफ इंडिया वर्ष 1996, पृष्ठ 1381-1382, 1387-1388
  10. दलित मुस्लिम प्रकाशित देशकाल सोसाईटी पृष्ठ 8,17,18
  11. कुर्तकुल ऐन हैदर की मशहूर रचना आग का दरिया
  12. कंवल भारती द्वारा शीर्षक आलेख मुस्लिम समाज में दलित पत्रिका सरस सलिल वर्ष 1 अप्रैल 1994
  13. अरुन रंजन विषय मुस्लिम चेत रहे है नवभारत टाइम्स 15 जुलाई 1994
  14. मुस्लिम समाज के चार राज्यों की प्रतिष्ठित प्रतिनिधि संस्था इमारते शरिया द्वारा प्रकाशित नकीब में आलेख प्रकाशित 2 मई 1994
  15. क्य्यूम खिर्ज द्वारा कलाल समाज की विस्तृत विवरण व इतिहास कलीद गुमशुदा की बाज़याफ्त वर्ष 1994
  16. बिहार के प्रख्यात पत्रकार व स्तभकार सेराज अनवर द्वारा आलेख रिपोर्ट कलाल जाति का जख्म 22 जून 1998 दैनिक प्रभात खबर समाचार पत्र
  17. न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर कमेटी रिपोर्ट पृष्ठ 201 वर्ष 2006
  18. अयूब राईन द्वारा कृत पुस्तक भारत के दलित मुसलमान वर्ष 2018 पृष्ठ 58 से 75
  19. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरीश अहमद मिनहाज द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित आलेख समता मूलक अधिकार से वंचित है कलाल समाज वर्ष 2019

व इन सबमें कलाल समाज की विस्तृत रूपरेखा दर्शन व इतिहास के पिछड़ेपन का सम्पूर्ण व्याख्या, चर्चा किया गया है।

यहां तक की तुलसीदास जी के श्री रामचरित मानस के पेज संख्या 986, दोहा 99 उ. का. 2 में

जे वर्णाधम तेली कुम्हारा

स्वपंच किरात कोल कलवारा

अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी, आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग है।

कलाल समाज के पृष्ठभूमिय दर्पण देखने पर स्वतंत्र भारत के 70 वर्ष बीत जाने पर भी आज तक ना कोई इस समाज का संसद सदस्य, विधायक, पार्षद, बोर्ड, परामर्शदाती समिति का सदस्य भी नहीं बना। राजनीतिक पिछड़ेपन के साथ ही शैक्षणिक पिछड़ेपन का कुरुक्षेत्र ये भी है कि आई.ए.एस., आई.पी.एस., बी.डी.ओ., सी.ओ, थाना प्रभारी, बी.एस.एफ., सी.आई.एस.एफ., जी.आर.पी. अधिकारी इत्यादि भी इस कलाल जाति का आज तक कोई भी इस पद पर स्थापित हुआ ही नहीं। आर्थिक उत्कर्ष तो नग्न है, न ही टू-व्हीलर गाड़ी का शोरूम है और न ही प्रा॰लि॰ निजी उद्योग कम्पनी या अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी के ये लोग मालिक हैं।

यक्ष प्रश्न यह है कि जिस सुशासन या सामाजिक न्याय की सरकार की बात हो या माई समीकरण (मुस्लिम यादव) की सरकार का, या फिर माँ-माटी-मानुष, या मनीषा की सरकार से, आखिर चूक कहां हुई, किससे हुई ? या, कलाल समाज विकास की मुख्य धारा से कोसों दूर कैसे होता चला गया ? यह आंकलन, मूल्यांकन और समीक्षा सरकार के साथ-साथ आत्म मंथन कलाल समाज को भी करना है। 01 जून 2010 इराकी फलाह सोसाईटी द्वारा अति पिछड़ा वर्ग आयोग पटना से पुनः एनैक्चर-1 में कलाल समाज को सम्मिलित हेतू मांग लंबित है तब से लेकर आज तक आयोग, कार्यालय और मुख्यमंत्री सचिवालय के बीच कलाल समाज अपने संघर्ष का पराक्रम और निरंतर भगीरथी वैतरणी का प्रयास करता चला आ रहा है। उसे विश्वास है कि एक समय आयेगा जब सरकार निष्पक्ष और न्यायोचित व्यवहार कर अति पिछड़ा वर्ग की सूची एनैक्चर-1 में शामिल कर हमारे बच्चे के भविष्य को संवारेगा। (लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता व सामाजिक राजनीतिक शोधकर्ता हैं)

(साई फीचर्स)