शीतला अष्टमी को क्या करें क्या न करें! जानिए क्यों मनाई जाती है शीतला सप्तमी

जानिए कब है शीतला अष्टमी, पूजा का विधान, महूर्त आदि सब कुछ जानिए विस्तार से
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शीतला सप्तमी एवं अष्टमी सनातन धर्मावलंबियों का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं। ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में बाद करते हैं। इसका पुजारी कुम्हार होता है। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा ब्रहस्पतिवार के दिन ही की जाती है।
भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी अर्थात पहले से बना हुआ खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और बाद में कुम्हार को समर्पित किया जाता है तत्पश्चात् भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है। ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।
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शीतला देवी कात्यायनी का एक रूप है। वह बुखार से पीड़ित रोगियों को ठंडक प्रदान करती है। इस साल शीतला अष्टमी का व्रत शनिवार, 22 मार्च 2025 के दिन रखा जाएगा। शीतला अष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। यह तिथि पूर्ण रूप से मां शीतला की पूजा के लिए समर्पित है। शीतला माता को सेहत और सफाई की देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि शीतला माता, देवी पार्वती का ही रूप हैं। उन्हें चेचक, त्वचा रोग को ठीक करने वाली देवी भी कहा जाता है। बसौड़ा यानी शीतला अष्टमी पर शीतला माता को बासी खाने की भोग लगाया जाता है।
जानिए, शीतला अष्टमी पर क्यों खाते हैं बासी खाना
शीतला अष्टमी का त्योहार गर्मी की शुरुआत में आता है। इस समय मौसम बदलता है, जिससे बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसलिए, इस दिन बासी खाना खाना अच्छा माना जाता है। माता शीतला को भी बासी भोजन पसंद है और उन्हें इसी का भोग लगाया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलाते और केवल बासी खाना ही खाते हैं। इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि उष्मा या गर्मी से त्वचा संबंधी रोग होते हैं इसलिए इस दिन बासी और ठंडी तासीर वाली चीजें खाई जाती हैं।
शीतला अष्टमी पूजा विधि जानिए,
शीतला सप्तमी से एक दिन पहले ओलिया, खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी और सब्जियां बनाई जाती हैं। कुल्हड़ में मोठ और बाजरा भी भिगो दिया जाता है। इस दौरान पूजा से पहले किसी भी पकवान को नहीं खाना चाहिए।
छठ पूजा में सप्तमी से एक दिन पहले खास तैयारी होती है। इस दिन रात में खाना बनाने के बाद रसोई की सफाई की जाती है। फिर पूजा होती है। पूजा में रोली, मौली, फूल और वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाते। शीतला अष्टमी के दिन ठंडे पानी से नहाने के बाद इन सभी चीजों का भोग शीतला माता को लगाया जाता है। इसके बाद बचे हुए भोजन को प्रसाद के रूप में वितरित करें और स्वंय भी खा लें।
जानिए कैसा है माता का स्वरूप,
शीतला माता के हाथ में झाड़ू और कलश। माता की पूजा बीमारी से बचाव के लिए की जाती है। शीतला माता बीमारियों से बचने का संदेश भी देती हैं। देवी के एक हाथ में झाड़ू है जो घर और आसपास के क्षेत्र की साफ-सफाई का संदेश देती है। वहीं दूसरे हाथ में कलश है, जिसमें रोगाणु नाशक जल हाथ धोने का प्रतीक है, इसलिए शीतला माता के व्रत के दौरान भोजन नहीं बनाया जाता एवं किचन में सफाई और पूजा की जाती है।
जानिए, शीतला अष्टमी पर क्यों होती है शीतला माता की पूजा,
शीतला माता को रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। खासकर चेचक, खसरा और त्वचा की बीमारियों से। शीतला अष्टमी पर व्रत रखने और उनकी पूजा करने से रोगों से छुटकारा मिलता है। ऐसा माना जाता है कि माता अपने भक्तों के सारे दुख दूर करती हैं। उनकी पूजा करने से चेचक जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त जानिए,
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष शीतला अष्टमी का व्रत शनिवार, 22 मार्च 2025 को रखा जाएगा। यह तिथि विशेष रूप से माता शीतला की आराधना के लिए समर्पित है। इस अष्टमी तिथि का समापन अगले दिन, 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर होगा। हिंदू धर्म में उदयातिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए उदयातिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च को मनाया जाएगा। इसके अलावा, 22 मार्च को शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 16 मिनट से प्रारंभ होगा, जो शाम 6 बजकर 26 मिनट तक जारी रहेगा।
शीतला माता का माहात्म्य जानिए,
प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अतः कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्रायः माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है जो इस प्रकार है,
वन्दे हंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम,
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम,
इसका अर्थ है, गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू, होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
शीतला माता का पूजन विधान जानिए,
शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। शीतला माता की उपासना अधिकांशतः वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णतः सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है। आधुनिक युग में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है। भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि जानिए,
सुबह जल्दी उठकर नहा लें। पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें। दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें। दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रख दें। अब शीतला माता की पूजा करें। माता को सभी सामग्री अर्पित करने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं। मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें। आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें। बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें। इसके बाद होलिका दहन वाली जगह पर भी जाकर पूजा करें। वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राम्हण को दे दें।
जानिए, शीतला अष्टमी पर क्या नहीं करना चाहिए
इस दिन कुछ कार्यों को करने की मनाही होती है। शास्त्रों के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन गर्म भोजन का सेवन वर्जित होता है। इसके अलावा इस दिन महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और बुनाई जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। मान्यता है कि इन कार्यों को करने से माता शीतला अप्रसन्न हो सकती हैं। साथ ही इस दिन घर में अगरबत्ती या दीपक जलाने से भी बचना चाहिए।
शीतला अष्टमी का व्रत रखने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और रोगों से सुरक्षा मिलती है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। व्रत करने के बाद अगले दिन महिलाएं फलाहार या हल्का भोजन ग्रहण करती हैं।
शीतला अष्टमी पर्व केवल धार्मिक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे स्वास्थ्यवर्धक कारण भी हैं। गर्मी के मौसम में ताजा, अधिक मसालेदार और गर्म भोजन से परहेज कर ठंडा एवं हल्का भोजन करने से पाचन तंत्र ठीक रहता है और शरीर में गर्मी नहीं बढ़ती। इस प्रकार शीतला अष्टमी का पर्व आध्यात्मिक और स्वास्थ्य दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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अखिलेश दुबे

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