संकल्पों के बीच जीना

 

(प्रणव प्रियदर्शी) 

जब हमारे देश में मुक्ति युद्ध शुरू हुआ तब मैं सिर्फ छह साल की थी। माता-पिता मेरे साथ नहीं रह पाए उसके बाद। दोनों को अंडरग्राउंड होना पड़ा। दोनों एक साथ तो शायद ही कभी आ पाए उन दस वर्षों में, पर जब भी दोनों में से कोई आता तो वे कुछ पल मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में तब्दील हो जाते। हालांकि किसी उग्रवादी विचारधारा से मेरा कोई सीधा वास्ता नहीं पड़ा था तब तक, पर कितना भी बड़ा मकसद हो, हिंसक साधनों से उसे साधने की कोशिश जो साइड इफेक्ट लाती है, उसे लेकर आशंकाएं मन में जरूर थीं। नेपाल में 1996 से 2006 तक चले उस दौर के वहां के समाज पर पड़े प्रभावों को लेकर भी कई तरह के संदेह थे, मगर जो सादगी, सरलता और प्रतिबद्धता मुक्ति युद्ध से जुड़े दो बड़े व्यक्तित्वों की इस संतान के विवरण से ध्वनित हो रही थी, उसके आड़े आने की हिम्मत उन आशंकाओं में नहीं थी। वे दुम दबाए छिपी रहीं मन के किसी कोने में।

छह साल से सोलह साल यानी आपके मेकिंग ईयर्स उसी मुक्ति युद्ध में खपे। कैसा लगता था उस दौरान- डर का साया हमेशा बना रहता होगा. . .

नहीं, वैसा बिल्कुल नहीं था जैसा आप सोच रहे हैं। एक तो तब मेरा पूरा देश ही उस स्थिति से गुजर रहा था। सो मेरा अकेला परिवार नहीं था उस तरह की स्थितियां झेलने वाला। दूसरी बात, मेरी मां कभी कुछ छिपाती नहीं थी मुझसे। उसने साफ-साफ बता दिया था कि हम लोग एक जरूरी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसमें कभी भी कुछ भी हो सकता है। वे लोग मुझे मार सकते हैं, तुम्हें भी मार सकते हैं। बच्चों में प्रतिकूलताएं स्वीकारने की गजब की ताकत होती है। हम अपने डर की वजह से उनकी उस ताकत को आजमाते नहीं हैं। मां ने मुझे बता दिया था और मैं समझ गई थी कि कुछ भी हो सकता है, पर ये लड़ाई बहुत जरूरी है। एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि मां और पिताजी पकड़े जाएंगे।

वे पकड़े भी गए। उन्हें जेल में डाल दिया गया। तब मैं उनसे मिलने गई थी। मां ने कहा, आओ मैं दिखाती हूं तुम्हें जेल कैसी होती है। उसने जेलकर्मियों से इशारों में ही इजाजत ली, और कुछ हिस्सा, जाहिर है बहुत थोड़ा सा हिस्सा, मुझे घुमा दिया कि देखो यहां हम लोग रहते हैं अभी। फिर कुछ समय में बाहर आ जाएंगे। मैं समझ गई कि यह भी लड़ाई का हिस्सा है। इसमें कभी-कभी जेल जाकर कुछ दिन वहां रहना होता है। पर देश को हम इस हालत में तो नहीं छोड़ सकते। उसे इससे निकालना ही होगा। इसलिए लड़ाई जरूरी है। ऐसे ही संकल्पों के बीच बीता मेरा जीवन, अब भी बीत रहा है।

(साई फीचर्स)