(राहुल पाण्डेय)
अंधविश्वास हमारा नुकसान करते हैं। हमें किसी भी अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अंधविश्वास पर यकीन वही करते हैं, जो बेवकूफ होते हैं। अंधविश्वास पर अगर किसी स्कूली बच्चे से भी बात करेंगे, तो वह भी यही बात बताएगा। लेकिन फिर भी लोगों में अंधविश्वास कम होने की जगह अगर बढ़ते ही जा रहे हैं तो उसमें एक भूमिका मीडिया की भी है। एक राष्ट्रीय समाचार संथान की वेबसाइट पर मैंने देखा कि खबर लगी हुई थी कि रविवार को करें भगवान शंकर के लिए यह अचूक टोटका, मिलेगा मनचाहा आशीर्वाद। इसमें भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए जो टोटके बताए गए थे, इसे लिखने वाले का दावा था कि अगर वह किए गए तो इंसान जो चाहे, वह कर सकता है।
कई हिंदी वेबसाइटों में चाहे राष्ट्रीय समाचार संस्थान हों या क्षेत्रीय, ऐसा लगता है कि धर्म-कर्म का सारा सेक्शन पूरी तरह से अंधविश्वासियों के ही हवाले है और चुन-चुनकर इन संस्थानों में अव्वल दर्जे के पोंगा पंडित बैठाए गए हैं। वरना शंकर को प्रसन्न करने के लिए पांच गुरुवार पांच नींबू चढ़ाने या बुधवार के दिन सवा सै ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द और सवा 11 रुपए चढ़ाने का जो टोटका दिया गया है, वह क्यों दिया जाता? हमारा संविधान कहता है कि देश में वैज्ञानिक चेतना फैलानी है। वहीं हमारे मीडिया हाउस धर्म-कर्म के नाम पर इस तरह की जो चेतना फैलाते हैं, वह काली उड़द और काले तिल के साथ मिलकर संविधान में ही कालिख पोतने का काम कर रही है।
इसी तरह से पितृ पक्ष में भी देश भर के मीडिया संस्थान, चाहे वे राष्ट्रीय हों या क्षेत्रीय, लगभग सभी जमकर अंधविश्वास परोसने का काम कर रहे हैं। ऐसे ही एक हिंदी खबरिया वेबसाइट में पितृपक्ष के बहाने लोगों को भरमाने की शुरूआत हो चुकी है। शायद इन्हें यह लगता होगा कि अज्ञान के बाजार में भी ठीक-ठाक हिट्स मिल सकते हैं, बस शर्त बस इतनी है कि अंधविश्वास को आस्था का रूप देकर परंपरा की छौंक लगाते रहना है। कायदे से तो ऐसे समाचारों पर देश की एडीटर्स गिल्ड को नजर रखनी चाहिए, लेकिन एडीटर्स गिल्ड बेचारी मिड डे मील में नमक रोटी दिखाने के आरोप में जेल काट रहे अपने ही पत्रकार को नहीं छुड़ा पा रही है तो कैसे उम्मीद करें कि वह अंधविश्वासों के जाल में फंसी मीडिया को छुड़ा पाएगी।
ऐसे ही कई वेबसाइटों पर रंगों से संबंधित ढेरों अंधविश्वास बिखरे पड़े हैं। इनका कहना है कि फलां दिन अगर फलां रंग के कपड़े पहनेंगे तो जीवन में यह होगा। या फिर फलां दिन के दिन अगर दूसरे फलां रंग का गमछा डालेंगे तो जीवन में वह होगा। रंगों का दिनों से कोई मेल जोल नहीं है। पृथ्वी के घूमने पर दिन और रात होते हैं। दिन का रंग क्या होगा, यह मौसम निर्धारित करता है और मौसम को अंतरिक्ष में होने वाली वे वैज्ञानिक क्रियाएं, जिनमें से सभी के कारण हमें ज्ञात हैं। मौसम का मतलब है किसी जगह विशेष पर, किसी खास समय पर वहां के वायुमंडल का हाल। यहां हाल में काफी कुछ शामिल होता है जिनमें हवा की गर्मी, उसका दबाव, उसके बहने की स्पीड और दिशा के साथ-साथ बादल, कोहरा, बारिश या बर्फबारी आदि की उपस्थिति और उनकी आपस में होने वाली क्रियाएं शामिल होती हैं। आपस में होने वाली यही क्रियाएं ही किसी जगह के मौसम का निर्धारण करती हैं। यह लगातार होने वाली प्रक्रिया है और इसके चलते मौसम हर दिन तो बदलता ही है, साथ ही दिन में कई बार बदल सकता है। अब इन वेबसाइटों पर अंधविश्वास का ज्ञान देने वाले यह पोंगा पंडित अगर यह बताएं कि सोमवार को हलका कपड़ा पहनें और अगर सोमवार को बर्फबारी हो रही हो तो? जाहिर है कि दिनों का रंगों से कोई मेलजोल नहीं है और दिन का बदलना भी जिस वजह से होता है, विज्ञान के पास उसके ठोस जवाब हैं।
ऐसे ही एक वेबसाइट बताती है कि शीतला माता की पूजा की वह जो विधि बता रही है, उसी विधि से पूजा करेंगे तो चेचक जैसी बीमारियां घर में नहीं फटकेंगी। चेचक के विषय में शीतला माता का घोर अंधविश्वास इस देश से जोंक की तरह चिपका हुआ है और चेचक से होने वाली कई सारी मौतों के लिए शीतला माता पर जताया गया यही अंधविश्वास जिम्मेदार भी है। इन अंधविश्वासों में सबसे पहले कहा जाता है कि शीतला माता के लिए उपवास रखा जाए। मेडिकल साइंस में यह बात अब प्रमाणित हो चुकी है कि छूत की अधिकतर बीमारियां हमें इसलिए लगती हैं क्योंकि हम खाली पेट होते हैं। मेडिकल कॉलेजों में छूतरोग विभागों में जो स्टाफ काम करता है, उसे साफ निर्देश होते हैं कि उनका पेट हमेशा भरा रहना चाहिए, छूत के कीड़ों से पहला मुकाबला भरा हुआ पेट ही करता है, वहीं से शरीर को इनसे लड़ने की ताकत मिलती है। सो शीतला माता के लिए उपवास करना सिरे से बेवकूफी है। इससे भी बड़ा अंधविश्वास यह है कि यही खबरिया वेबसाइटें बताती हैं कि चेचक हो जाए तो शीतला माता का कलश स्थापित करके उसकी पूजा करें तो चेचक चली जाएगी। इसी साल चेचक रोगियों के साथ हुई इन्हीं हरकतों से अकेले उत्तर प्रदेश में चार लोगों की मौत हो चुकी है और दो साल पहले बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के खुद के गांव में दो लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
ऐसे ही चंद्रयान को लेकर भी अंधविश्वासों ने जमकर उड़ान भरी और उसे उतनी ही हवा दी मीडिया हाउसों ने। चंद्रयान को लेकर जहां कहीं भी पूजा की गई और उसकी खबर दी गई, एक भी खबर में यह नहीं लिखा गया कि चंद्रयान को लेकर इस तरह की जितनी भी हरकतें हो रही हैं, वह अंधविश्वास तो है ही, अव्वल दर्जे की बेवकूफी भी है। चंद्रयान पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रयोग है और यह किसी देवी-देवता के जोर से चंद्रमा तक नहीं गया और न ही वहां पर किसी इंद्र ने आकर उसका कनेक्शन काट दिया। सब कुछ विशुद्ध गणितीय गणना पर आधारित फिजिक्स का प्रयोग था, लेकिन इसके प्रति मीडिया ने जिस अवैज्ञानिक चेतना का प्रदर्शन किया, वह निसंदेह निंदा के ही काबिल है। मीडिया का काम देश में वैज्ञानिक चेतना का प्रचार-प्रसार करना है, न कि अंधविश्वासों को बढ़ावा देना या उनकी जड़ मजबूत करना।
(साई फीचर्स)