मोदी मंत्रिमंडल : मध्यप्रदेश का कद बढ़ा, मंत्रियों का घटा

(अरुण दीक्षित)
नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल के बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक जमाने में संघ और भाजपा की नर्सरी रहे मध्यप्रदेश को क्या हासिल हुआ है। पहली नजर में देखें तो मध्यप्रदेश के खाते में कुल 6 मंत्री आये हैं। इनमें 4 कैबिनेट और दो राज्य मंत्री हैं।


पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश से तुलना करें तो मध्यप्रदेश को बहुत कम हिस्सा मिला है। चूंकि उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव सामने हैं इसलिए इस तरह की तुलना उचित नही होगी। दूसरा पक्ष आबादी का भी है। जनसंख्या के अनुपात में मध्यप्रदेश को उसका हिस्सा दिया गया है। मोदी ने 4 प्रमुख मंत्रालय देकर मध्यप्रदेश का कद बढ़ाया है। लेकिन मंत्रियों के कद उन्होने छांट दिए हैं।
सबसे पहले बात नरेंद्र तोमर की। पिछले कुछ महीने से किसान आंदोलन की बजह से सुर्खियों में चल रहे तोमर के विभाग कम कर दिए गए हैं। उनसे पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग ले लिए गए हैं। अब उनके पास सिर्फ कृषि मंत्रालय ही बचा है।
सामाजिक न्याय मंत्रालय संभाल रहे थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बनाकर कर्नाटक भेज दिया गया है। उनकी जगह डाक्टर वीरेंद्र कुमार खटीक को लाया गया है। खटीक कैबिनेट मंत्री हैं। उनका जो व्यक्तित्व है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे गहलोत की तरह चुपचाप वही करेंगे जो मोदी चाहेंगे। हालांकि वे प्रदेश के वरिष्ठ तम सांसद हैं। लेकिन उनका दायरा बहुत ही सीमित रहा है। खास बात यह है कि वह संघ के भी प्रिय हैं। उनके पिता संघ के स्वंयसेवक रहे थे। उनके बहनोई डाक्टर गौरीशंकर शेजवार भी प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। फिलहाल वे पार्टी में हाशिये पर हैं।
मोदी मंत्रिमंडल का सबसे सबसे चर्चित नाम है-ज्योतिरादित्य सिंधिया। कांग्रेस छोड़ भाजपा में आये सिंधिया अपने साथ मध्यप्रदेश सरकार भी लाये थे। उनकी बजह से भाजपा की सरकार बनी और शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली।
सिंधिया को मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए करीब सवा साल इंतजार करना पड़ा। हालांकि कागजी सूची में मोदी ने उन्हें चौथे स्थान पर रखा था लेकिन नागरिक उड्डयन मंत्रालय देकर कद नाप दिया है। सिंधिया और उनके करीबी मान रहे थे एक राज्य सरकार के बदले उन्हें कोई बड़ा मंत्रालय मिलेगा। उनकी नजर रेल मंत्रालय पर थी।
लेकिन मोदी ने उन्हें जर्जर जहाज पर बैठाकर उड़ा दिया है। सब जानते हैं कि देश में नागरिक उड्डयन की हालत बहुत खराब है। खासतौर पर सरकारी विमानन कम्पनियां तो भारी घाटे में हैं। उन्हें कभी भी निजी क्षेत्र को सौंपा जा सकता है। ऐसे हालात में इस मंत्रालय में कुछ कर पाना सिंधिया के लिए टेढ़ी खीर होगी।
यह अलग बात है कि सिंधिया इस बात से खुश हो सकते हैं कि मोदी ने उन्हें वही मंत्रालय दिया है जो 30 साल पहले उनके पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के पास था। लेकिन ग्वालियर की राजगद्दी और मंत्रालय की कुर्सी में बहुत फर्क है। देखना यह है कि सिंधिया खुद को कैसे सावित करते हैं।
धर्मेंद्र प्रधान मूल रूप से तो ओडिशा के हैं लेकिन उन्हें राज्यसभा में मध्यप्रदेश से भेजा गया था। इसलिए उन्हें मध्यप्रदेश के कोटे में गिना जा रहा है। प्रधान अब शिक्षा मंत्रालय संभालेंगे। अभी तक वह पेट्रोलियम मंत्रालय संभाल रहे थे। देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में सेंचुरी लगाने का रेकॉर्ड उन्ही के नाम पर है। देश के इतिहास में तेल के दाम पहले कभी इस तरह नही बढ़े जैसे पिछले एक साल में बढ़ गए हैं। देखना होगा कि कोरोना पीड़ित शिक्षा व्यवस्था को वे किस दिशा में ले जाते हैं।
नरेंद्र मोदी ने सबसे बड़ा झटका प्रदेश के ऊर्जावान नेता प्रह्लाद पटेल को दिया है। प्रह्लाद अभी तक संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय संभाल रहे थे। उनके पास इन दोनों मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार था। लेकिन अब मोदी ने उनसे न केवल यह विभाग ले लिए हैं बल्कि स्वतंत्र प्रभार भी खत्म कर दिया है। अब प्रहलाद को गजेंद्र सिंह शेखावत और पशुपति पारस के मातहत राज्यमंत्री के तौर काम करना होगा।
मोदी के इस फैसले को लेकर मध्यप्रदेश के राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा है। भाजपा नेताओं का मानना है कि दमोह उपचुनाव में पार्टी की हार और उसके बाद हुए आंतरिक विवाद से मोदी खुश नही थे। इसी बजह से उनका कद कम किया गया है।
उल्लेखनीय यह भी है कि मोदी ने अपने स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों-राजकुमार सिंह,हरदीप पूरी और किरेन रिजीजू को प्रमोट करके कैबिनेट मंत्री बनाया है। उन्हें पहले की तुलना में महत्वपूर्ण विभाग भी दिए गए हैं। जम्मू के डाक्टर जितेंद्र सिंह और हरियाणा के राव इंद्रजीत सिंह को यथावत रखा गया है। प्रह्लाद पटेल का दर्जा घटाया है और संतोष गंगवार को बाहर कर दिया है। मोदी के फैसले से प्रहलाद समर्थक खुश नही हैं। वे उनके प्रमोशन की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन कुर्सी बच जाने का संतोष भी है।
वरिष्ठ आदिवासी नेता फग्गनसिंह कुलस्ते को यथास्थिति में रखा गया है। अब वे इस्पात औऱ ग्रामीण विकास मन्त्रालय में राज्यमंत्री के तौर पर काम करेंगे।
इस विस्तार का एक और असर मध्यप्रदेश पर पड़ेगा! आने बाले दिनों में नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई तेज होगी। तोमर और सिंधिया दोनों ही ग्वालियर क्षेत्र से ही हैं। तोमर इस समय मुरैना से सांसद हैं। यह क्षेत्र भी सिंधिया के प्रभाव वाले इलाकों में आता है। इस क्षेत्र में सिंधिया अपना दखल बनाये रखना चाहते हैं। इसी बात को लेकर दोनों नेताओं में शीतयुद्ध चल रहा है।
अब कैबिनेट में आने के बाद यह मुकावला और तेज होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आठ दिन पहले जब जिलों के प्रभारी मंत्री नियुक्त किये थे तब सिंधिया की पसंद का पूरा ख्याल रखा था। सिर्फ मुरैना को छोड़ सभी जिलों में सिंधिया समर्थक मंत्रियों को प्रभार दिया गया है।
देखना यह होगा कि अगले ढाई साल तक चंबल ग्वालियर में भाजपा की राजनीति क्या रंग लाती है। क्योंकि अब वहां भाजपा मतलब सिंधिया हो गया है। फिलहाल सबकी निगाहें मोदी के अगले कदम पर हैं। लोगों को लग रहा है कि उत्तराखंड जैसा कोई कदम मध्यप्रदेश में भी उठाया जा सकता है। ऐसा सोचने वाले लोगों कहना है-प्यार , युद्ध और राजनीति में सब कुछ जायज है। और कभी भी कुछ भी हो सकता है। इनके लिये तो यही कहा जा सकता है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है।
(साई फीचर्स)