(अजीत द्विवेदी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने तीसरे संबोधन में कोरोना वायरस से जंग जीतने की ओर बढ़ जाने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से ऐसा नहीं कहा पर मंगलवार की सुबह दिया गया उनका भाषण इस बात का ऐलान था कि भारत ने जीत की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। उन्होंने अपने पहले के भाषणों में भी कहा है और इस बार फिर कहा कि दुनिया के महाबली देशों को देखें उनकी क्या स्थिति है और भारत आज किस स्थिति में खड़ा है। असल में दूसरे तमाम भाषणों की तरह यह भाषण भी पॉपुलर नैरेटिव को कंट्रोल करने की उनकी क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण था।
उन्होंने कहा और उससे पहले ही उनके समर्थकों ने नैरेटिव बनवा दिया है कि भारत और इसके 130 करोड़ लोगों का सौभाग्य है, जो कोरोना वायरस की इस वैश्विक महामारी के समय नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। यह साक्षात ईश्वर की ही कृपा है, जो वे कमान संभाले हुए हैं। सोशल मीडिया में यह नैरेटिव कई दिन से चल रहा है कि अच्छा है, जो मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नहीं हैं। यह भी तंज किया जा रहा है कि अगर इस समय राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते तो देश की क्या हालत होती। यानी इस मुश्किल समय के नैरेटिव में भी अपना राजनीतिक लाभ सुनिश्चित करना और अपने विरोधी की छवि को खराब करना मोदी टीम के केंद्र में है।
यह नरेंद्र मोदी की खासियत है, जो वे प्रधानमंत्री के तौर पर दिए जाने वाले अपने भाषणों में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जो आमतौर पर कोई प्रशासकीय व्यक्ति इस्तेमाल नहीं करता है। वे राजनीतिक शब्दावली में ही प्रशासनिक कामकाज का ब्योरा प्रस्तुत करते हैं। जैसे उन्होंने मंगलवार के भाषण में अनेक बार त्याग, तपस्या, परिश्रम, प्रतिबद्धता, समर्पण, अनुशासन, प्रार्थना जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। सरकार कैसे कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रही है, क्या मेडिकल तैयारियां हैं, जांच की स्थिति क्या है और उसमें कहां परेशानी आ रही है, दवाओं की क्या स्थिति है और भारत इसके लिए कितना तैयार है, कोरोना वायरस को लेकर सरकार का क्या प्रोजेक्शन है, यह कितना फैलेगा और कितने लोगों की मौत अनुमानित है, देश की आर्थिकी को क्या नुकसान हो रहा है और उसे बचाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं, ऐसी तमाम बातें उनके भाषण से या तो बिल्कुल नदारद थीं या यह बताने के लिए थीं कि सरकार ने कितना शानदार काम किया है।
इसके बावजूद उनका भाषण हिट है तो इसलिए कि वे हिंदी भाषा का राजनीतिक इस्तेमाल दूसरे किसी भी नेता के मुकाबले बेहतर जानते हैं। इसके अलावा उनके पास अच्छी बातों का एक पिटारा है, जिसमें से वे जरूरत के मुताबिक बातें निकालते हैं और उसे हिंदी की लच्छेदार शब्दावली में पिरो कर प्रस्तुत कर देते हैं। इसके बाद फिर वे जो चाहते हैं वह करते हैं और देश के लोगों से करा भी लेते हैं। जैसे दूसरे विश्वयुद्ध के समय विंस्टन चर्चिल के राजनीतिक फैसलों को लेकर बनी फिल्म ‘डार्केस्ट ऑवर’ के आखिरी दृश्य में चर्चिल के जोरदार भाषण के बाद उनका विरोधी नेता कहता है- ही मोबिलाइज्ड द इंगलिश लैंग्वेज एंड सेंट इट इन टू बैटल!
यह काम चर्चिल से भी बेहतर तरीके से नरेंद्र मोदी करते हैं। मंगलवार को एक बार फिर उन्होंने इसका प्रमाण दिया। उन्होंने लॉकडाउन बढ़ाने की बात ऐसे अंदाज में कही कि लोगों को लगा जैसे यह मजबूरी नहीं, उनका सौभाग्य है, जो नरेंद्र मोदी ने उनसे घरों में रहने को कहा। यह उनका कर्तव्य है, उनका दायित्व है, उनकी देशभक्ति है। जरा मोदी के संबोधन में इस्तेमाल किए गए जुमलों पर नजर डालें, ‘आप लोगों ने कष्ट सह कर अपने देश को बचाया, हमारे इस भारतवर्ष को बचाया’, ‘देश की खातिर आप एक अनुशासित सिपाही की तरह अपना कर्तव्य निभा रहे हैं’, ‘आपकी तपस्या, आपके त्याग की वजह से भारत अब तक कोरोना से होने वाले नुकसान को काफी हद तक टालने में सफल रहा है’, ‘नए हॉटस्पॉट का बनना हमारे परिश्रम और हमारी तपस्या को और चुनौती देगा’, ‘जो क्षेत्र इस अग्निपरीक्षा में सफल होंगे, जो हॉटस्पॉट नहीं होंगे, वहां 20 अप्रैल के बाद कुछ गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है’।
उन्होंने इस भाषण में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी, नए साल की शुभकामना की, देश के हर नागरिक को सपरिवार स्वस्थ रहने की मंगलकामना की, दुनिया के समार्थ्यवान देशों से तुलना करते हुए बताया कि कैसे वे देश संकट में हैं और भारत ने अपने को उस स्थिति में जाने से बचा लिया, जिसमें ‘आज भारत खड़ा होता तो रोएं खड़े हो जाते’। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक रूप से भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है पर लोगों की जान की कीमत बहुत ज्यादा है। उनके शब्दों में जो कसर रह जाती है वह उनकी भाव-भंगिमा, देह-भंगिमा और शब्दों के उच्चारण में आने वाले उतार-चढ़ाव से पूरी हो जाती है।
बहरहाल, उनके भाषण का लब्बोलुआब यह था कि कोरोना पर विजय की ओर भारत बढ़ गया है और इस देश के महान लोगों को घरों में रह कर अपनी जिम्मेदारी निभानी है। फिलहाल तीन मई तक यह जिम्मेदारी निभानी है, उसके बाद जो होगा वह उस समय देखा जाएगा। इस दौरान लोगों का जीवन कैसे चलेगा, उनके काम धंधे, रोजी-रोटी का क्या होगा, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनके भविष्य का क्या होगा, राशन-पानी की जरूरतें कैसे पूरी होंगी, कोरोना के अलावा अगर कोई और बीमारी है तो उसका इलाज कैसे होगा, जैसे अनगिनत सवाल हैं, जो भाषण का असर खत्म होने पर हो सकता है कि लोगों को सूझे, पर तब तक दूसरा भाषण आ जाएगा। दूसरी अपील जारी हो जाएगी। हां, इस बीच कुछ प्रशासनिक दिशा-निर्देश भी जारी होंगे, जिनसे वास्तव में पता चलेगा कि व्यवहार में नया क्या करना है।
(साई फीचर्स)

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