टेस्ट, इलाज, लॉकडाउन में चाहिए संतुलन

(सुशांत कुमार)

कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने की भारत की लड़ाई में कई पहलू हैं और लगभग हर पहलू में औसत का अनुपात बिगड़ा हुआ है। हर लड़ाई एक असंतुलित औसत में लड़ी जा रही है। जैसे बीमारी पकड़ने के लिए टेस्ट औसत से कम हो रहा है और संक्रमण के लक्षण वाले मरीजों की अस्पताल में भरती का अनुपात औसत से ज्यादा है। इसी तरह भारत की जरूरत और हालात को देखते हुए लॉकडाउन अनुपात से ज्यादा है। तभी राज्यों की सरकारों से लेकर निर्यातक और जरूरी चीजें बनाने वाली कंपनियों के लोग तक ढील की मांग कर रहे हैं। सो, सरकार को अभी लॉकडाउन के शुरुआती दस दिन के आंकड़ों के आधार पर हालात की समीक्षा करनी चाहिए और जहां जरूरत हो वहां बदलाव करना चाहिए।

भारत में इस समय कोरोना वायरस से संक्रमितों की जांच की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है या जान बूझकर कर ज्यादा जांच नहीं किया जा रहा है। वैसे स्वास्थ्य सेवाओं से जानकारों की राय इस मामले में बंटी हुई है। कई जानकार दक्षिण कोरिया के मॉडल को फॉलो करते हुए ज्यादा से ज्यादा जांच की जरूरत बता रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ जानकारों का कहना है कि भारत को हॉटस्पॉट पर यानी जहां ज्यादा केसेज आ रहे हैं वहां ध्यान देना चाहिए। अगर जरूरत हो तो व हां ज्यादा जांच की जाए। पूरे देश में ज्यादा जांच करने की जरूरत नहीं है। हालांकि सरकार टेस्टिंग किट्स उपलब्ध करा रही है।

निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक कंपनियां इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन भी कर रही हैं। इसलिए संभव है कि अगले कुछ दिन में भारत में भी जांच की स्पीड बढ़े। असल में सरकार को सबसे ज्यादा इसी पर ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि ज्यादा जांच होगी तो मामले जल्दी सामने आएंगे और लोगों को आइसोलेशन में डाल कर इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। हालांकि ऐसा भी नहीं कि अमेरिका की तरह भारत हर दिन एक लाख लोगों की जांच करे पर अभी तक सिर्फ 50 हजार लोगों की जांच का आंकड़ा भी बहुत कम है। इसके बीच संतुलन बनाना चाहिए।

ऐसे ही कोरोना संक्रमितों को अस्पताल में भरती करने का अनुपात बहुत ज्यादा है। जिस किसी में भी इसके लक्षण दिख रहे हैं सरकार उसको अस्पताल में भरती कर रही है। इसका नतीज यह हो रहा है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जो भी व्यवस्था बनाई गई है, जितने बेड्स की व्यवस्था की गई है वे तुरंत भर जा रहे हैं। अगर संख्या इसी तरह बढ़ती गई तो सरकार के सामने बड़ा संकट खड़ा होगा। इसलिए इस मामले में भी संतुलन की जरूरत है। खबर है कि सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि मामूली लक्षण वाले लोगों को अस्पताल में भरती नहीं किया जाएगा। उन्हें दवा देकर घर भेजा जाएगा और आइसोलेशन में रहने को कहा जाएगा। वे फोन के जरिए डॉक्टर के संपर्क में रहेंगे। इससे अस्पतालों पर दबाव कम होगा और दूसरे डॉक्टरों या स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने की संभावना भी कम होगी। ध्यान रहे इस समय सबसे ज्यादा जरूरी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को बचाना है।

तीसरा पहलू लॉकडाउन का है। कई जानकार मान रहे हैं कि भारत के हालात, स्थितियों और जरूरतों को देखते हुए पूरी तरह से लॉकडाउन करना ठीक नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले ट्विट करके सवाल उठाया था कि पूरे देश को इस तरह से बंद कर देने का मॉडल भारत के लिए ठीक नहीं है। इसमें भी संतुलन बनाने की जरूरत है। अगर संतुलन नहीं बनाया गया तो कोरोना वायरस से लड़ाई में भी मुश्किल आएगी और इस लड़ाई के खत्म होने के बाद देश की आर्थिकी को पटरी पर लाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। अभूतपूर्व संकट खड़ा हो सकता है।

खबर है कि देश के कई हिस्सों में कई जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित होने लगी है। बताया जा रहा है कि देश में 90 लाख नेशनल परमिट वाले ट्रकों में से सिर्फ दस फीसदी ही ट्रक चल रहे हैं। अगर ऐसा है तो क्या इससे देश के 130 करोड़ लोगों की जरूरतें पूरी हो सकती हैं? अगर यहीं स्थिति रही तो कोरोना संकट के बीच में ही जरूरी चीजों का संकट खड़ा हो सकता है। तभी राज्य सरकारें भी रियायत चाहती हैं और कारोबारी भी रियायत चाहते हैं। केरल के मुख्यमंत्री ने आग्रह किया है कि सीमा खुलवाई जाए ताकि आवागमन सुगम हो सके। राज्यों की सीमा के दोनों तरह अस्पताल हैं, जिनकी सेवाओं का लाभ लोगों को पूरा नहीं मिल रहा है। इसी तरह कई जगह सीमा पर सामान से लदे ट्रक भी खड़े हैं, जिनका मंजिल तक पहुंचना जरूरी है।

बुधवार को देश के निर्यातकों ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से आग्रह किया कि उन्हें कुछ चीजों के निर्यात की अनुमति दी जाए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो चीन दुनिया के बाजार को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लेगा। वैसे भी चीन का पहले से दुनिया के बाजार पर कब्जा है लेकिन अगर भारत से निर्यात पूरी तरह बंद रहा तो भारतीय कारोबारी दुनिया के बाजार में अपना बचा-खुचा हिस्सा भी गंवा देंगे। यह स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होगी। आखिर कोरोना का संकट खत्म होने के बाद भारत को अपनी आर्थिकी की चिंता में जुटना होगा और अगर अभी से चीजों को संभाला नहीं गया तो उस समय बहुत मुश्किल आएगा। तभी कंपनियां और कारोबारी चाहते हैं कि सीमित तौर पर ही उन्हें अपना काम करने की अनुमति मिले। उन्होंने उत्पादन से लेकर आपूर्ति तक की पूरी शृंखला टूट जाने का अंदेशा सता रहा है। ऐसा हुआ तो उसे जोड़ने में फिर महीनों लग जाएंगे।

(साई फीचर्स)

 

SAMACHAR AGENCY OF INDIA समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.