नई शुरुआत, नई मुश्किलें

(श्रुति व्यास)

गुजरे साल की 31 दिसबंर की रात हरेक के लिए अलग थी। कुछ लोग अगर नाच-गाने, जश्न के माहौल में डूबे थे तो कुछ अपने अकेलेपन में खोए हुए थे। लेकिन दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में महिलाएं अपने बच्चों के साथ नागरिकता कानून के खिलाफ जैसे धरने पर बैठी वह बहुतों और खासकर समान विचार वाले लोगों को बहुत छू गया। शाहीन बाग में आजादी के नारोंऔर राष्ट्रगान गाती भीड़ ने अहसास कराया मानो नएवर्ष के उनके संकल्प की यह शुरुआत है। तो वर्ष की शुरुआत को कैसे लंे? क्या नया वर्ष देशवासियों के सोचने विचारने और सुनिश्चित पक्ष-विपक्ष से शुरू नहीं हुआ?

पिछले महीने संसद में नागरिकता बिल पास होने, उसके कानून की शक्ल लेने के बाद से पूरे देश में लोग अजीबोगरीब ढंग से विभाजित मूड में बंटे से हैं। लोग विरोध में हैं तो समर्थन में भी हैं। ज्यादातर मुसलमान सड़कों पर हैं और उनके भीतर यह बात पैठ गई है कि यह कानून उनके खिलाफ है। इन्हें हिंदुओं में भी जोरदार मुखर समर्थन मिला है। ये सब सरकार को लेकर भारी गुस्से में हैं। बावजूद इसके ऐसा वर्ग भी है जो पूरी तरह से इन सबके खिलाफ है, जबकि कई लोग एनआरसी और सीएए के पक्षधर भी हैं।

जाहिर है समाज बंटा हुआ और दो फाड़ होने की तरफ है। एक ओर बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक पर सीएए और एनआरसी के खिलाफ अभियान में जुटे हैं तो दूसरी ओर इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सीए और एनआरसी समर्थकों ने जहरीला,सघन अभियान छेड़ा हुआ है। सोशल मीडिया के इन मुखर समर्थकों से हटकर एक वह तबका है जो मन ही मन ही मुसलमान मुक्त भारत का ख्याल, उसकी कल्पना करते हुए मौन है। फिरवे लोग भी कम नहीं हैं जिन्हें इस बारे में कुछ नहीं मालूम कि आखिर ये सब हो क्या रहा है? ये लोग किसी भी खेमे का हिस्सा नहीं हैं, न समर्थकों के साथ हैं, न विरोधियों के। इन लोगों ने मौन धारणा बना रखी होगीबावजूद इसकेये भी चाहे-अनचाहे अपने को पक्ष विशेष में घिरा हुआ पा रहे होंगे।

हां, जिस नए दशक में हमने प्रवेश किया है वह अस्थिरता, भ्रम, आतंक और हमलावर मनोवृत्ति का माहौल लिए हुए है। कोई नहीं जानता कि सही क्या है और गलत क्या। किसी को नहीं मालूम कि सीएए या एनआरसी के सही-सही तथ्य क्या हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे लोगों को अनुच्छेद 370 खत्म करने के असली मायनों के बारे में मालूम नहीं था। हो सिर्फ यही रहा है और सिर्फ एक ही बात जो आस्ट्रेलिया के जंगलों की आग की तरह फैल रही है और वह यह है कि सीएए और एनआरसी मुसलमानों के खिलाफ है। उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली और जम्मू से लेकर अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय, असम से अहमदाबाद तक सीएए और एनआरसी को लेकर लोगों में इन धारणा में भ्रम कायम है और हवा में बात हो रही है।

लोग बहकावे में ही नजर आ रहे हैं। राजनीतिक तौर पर बहुत से लोग नरेंद्र मोदी और अमित शाह से बुरी तरह चिढ़ गए हैं। लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि ये दोनों हिंदू-मुसलमान को बांटने का काम कर रहे हैं। पुराने लोग कहते हैं कि भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए यही सबसे पुराना और कारगर हथियार है। लेकिन हर कोई यह भूल जाता है कि अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमले के बाद चीजें पूरी तरह से बदल चुकी हैं। भारत में भी वही है जो दुनिया में है। आज के वक्त में पूरी दुनिया में मुसलमानों को संदेह की नजर से देखा जा रहा है। मुसलिम देशों से आने वाले शरणार्थियों को कई देश अपने यहां पनाह नहीं देना चाहता। कुछ ने तो बाकायदा इस पर पाबंदी भी लगा दी है। नेताओं ने मुसलमानों की छवि ऐसी बना डाली है जो उन्हें बुरे रूप में ही पेश करती है। मुसलमानों को एक तरह से अस्तित्व के लिए खतरा मान लिया गया है 9/11 की घटना के बाद दुनिया में कई जगह मुसलमान का मतलब आतंक करार दिया गया। अलकायदा और इस्लामिक स्टेट के आतंक ने मुसलमानों की ऐसी छवि बना डाली है जिसका निदान दुनिया का कोई सेकुलर देश भी खोज नहीं पा रहा है।