सिर्फ प्रतिक्रिया देने की एप्रोच!

(अजित द्विवेदी)

कोरोना वायरस यानी कोविड-19 से भारत की लड़ाई कैसी है? भारत की सरकार और आम लोग क्या वैसे ही लड़ रहे हैं, जैसे इससे प्रभावित दूसरे अपेक्षाकृत विकसित और सभ्य देशों में लड़ा जा रहा है या हमारी लड़ाई उनसे अलग है? इसे समझने के लिए कोरोना वायरस से प्रभावित देशों की अलग-अलग श्रेणियां बना कर अपनी श्रेणी के किसी देश के साथ तुलना करने पर वास्तविकता का पता चलता है। पर यह तरीका बहुत विवादित हो जाएगा क्योंकि पहला सवाल इसी पर उठेगा कि हम किस श्रेणी में आते हैं? हम यूरोप की श्रेणी में नहीं हैं और अमेरिका की श्रेणी में भी नहीं हैं। एशियाई देशों में भी हम चीन, दक्षिण कोरिया या जापान की श्रेणी में नहीं हैं। और अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि की श्रेणी में भारत को रखें तो बहुत से लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।

इसलिए भारत की तैयारी और इसकी लड़ाई को अपने ही नजरिए से देखने की जरूरत है। तो सवाल है कि हमारा नजरिया कैसा है? भारत का नजरिया सिर्फ प्रतिक्रिया देने का है। भारत की ओर से आगे बढ़ कर समस्या से मुकाबला करने की एप्रोच नहीं दिखाई गई है। संकट आ जाने पर उससे लड़ने के बंदोबस्त जरूर हो रहे हैं पर यह सोच नहीं दिख रही है कि संकट आने से पहले उससे मुकाबले की रणनीति बने।

संकट को सिर्फ तात्कालिक तौर पर देखा जा रहा है। भारत सरकार, स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों, आपदा से निपटने के लिए बनाए गए विभागों आदि सबकी सोच एक जैसी है। सब कमर कस कर तैयार हैं कि संकट आएगा तो उससे निपट लेंगे। असल में इसी एप्रोच ने भारत को संकट में डाला है। 50 दिन पहले जब भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया तब भी हम तैयार नहीं थे और आज भी तैयार नहीं हैं।

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17 जनवरी को पहली बार एक अधिसूचना जारी की और कहा कि चीन से भारत आने वाले हर यात्री की हवाईअड्डे पर थर्मल स्क्रीनिंग होगी। इसके बाद टुकड़ों-टुकड़ों में कई तरह की अधिसूचना जारी हुई। करीब डेढ़ महीने बाद जाकर मार्च में सरकार ने वायरस से प्रभावित देशों के नागरिकों को जारी वीजा, ई-वीजा आदि निरस्त किया और उसके बाद मार्च के तीसरे हफ्ते में विदेश से आने वाले सभी विमानों की भारत में लैंडिंग रोकी गई। सरकार के इस प्रयास में समग्रता नहीं थी। उसने किश्तों में यह काम किया, जिसका नतीजा यह निकला कि अनेक लोग, जो इस वायरस से संक्रमित थे, वे बिना रोक-टोक देश में आ गए। उन्होंने ही भारत में इसका संक्रमण किया।

अगर जनवरी में ही भारत के राजकाज से जुड़े किसी व्यक्ति को यह सुझा होता कि यात्री चाहे किसी देश से आएं, उनकी स्क्रीनिंग होगी या किसी भी देशी या विदेशी यात्री की ट्रैवल हिस्ट्री चीन जाने की रही है तो उसकी स्क्रीनिंग होगी या उसे आइसोलेशन में रखा जाएगा तो भारत में यह नौबत ही नहीं आती। पर इतनी दूर की सोचने की तो छोड़ें यह भी नहीं सोचा गया कि समुद्र के रास्ते जो लोग आएंगे उनका क्या होगा। खबर है कि करीब 40 हजार ऐसे लोगों की तलाश हो रही है, जो समुद्र के रास्ते भारत में आए हैं।

अब भी भारत सरकार अगले एक-दो महीने के हालात की चिंता में दूरदृष्टि के साथ कोई योजना नहीं बना रही है। यह अच्छा है कि सरकार इस प्रयास में लगी है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को स्टेज-दो में रोक दिया जाए। स्टेज-तीन यानी व्यापक जन संक्रमण नहीं होने दिया जाए। पर इस सोच के साथ साथ स्टेज-तीन आने पर उससे मुकाबला करने की तैयारी भी होनी चाहिए। भारत में यह तैयारी किसी स्तर पर नहीं देखी जा रही है। सरकार की एप्रोच कितनी तात्कालिक है इसका पता इस बात से चल रहा है कि आईसीएमआर ने 130 करोड़ की आबादी में सिर्फ आठ सौ लोगों के रैंडम सैंपल के आधार पर ऐलान कर दिया कि व्यापक जन संक्रमण नहीं हुआ है और इसके दो दिन के बाद सरकार ने जांच का दायरा बढ़ाया। 21 मार्च से पहले तक हर किस्म के फ्लू से प्रभावित लोगों की जांच जरूरी नहीं समझी गई थी। 21 मार्च को इसके बारे में नियम-कायदे तय हुए हैं।

भारत की हकीकत यह है कि यहां सिर्फ 111 केंद्रों पर जांच की व्यवस्था है। सोचें, 130 करोड़ की आबादी में 111 जांच केंद्र! अमेरिका में पहले से हजारों जांच केंद्र हैं पर कोरोना का संक्रमण बढ़ा तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो हजार और हाई स्पीड जांच केंद्र खुलवा दिए। दक्षिण कोरिया ने अपने संकट के बीच ही सिर्फ दस मिनट में इसकी जांच करने वाला किट विकसित कर लिया और वह जल्दी ही इसका निर्यात भी शुरू करेगा। लेकिन भारत में सिर्फ 111 केंद्रों पर जांच होगी। यह भी हकीकत है कि भारत में इंटेसिव केयर यूनिट में सिर्फ एक लाख बेड हैं। अगर स्टेज-तीन आ गई तो यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी।

तभी सरकार को दूरदृष्टि से काम लेना चाहिए। इसका संक्रमण रोकने के प्रयासों के साथ साथ आगे के खतरे को समझते हुए अस्थायी व्यवस्थाएं बनाने की जरूरत है। स्कूल-कॉलेज बंद हैं तो उनमें अस्थायी अस्पताल बनाए जाने चाहिए। जरूरत हो तो तमाम बड़े स्टेडियम को अस्थायी अस्पताल में बदला जाना चाहिए। कानून बना कर तमाम निजी अस्पतालों में इसकी जांच शुरू कराई जानी चाहिए और दूसरी कम गंभीर बीमारियों के मरीजों की छुट्टी देकर ज्यादा से ज्यादा बेड कोरोना वायरस के संक्रमितों के लिए आरक्षित करना चाहिए। सरकार ने एम्स में ऐसी व्यवस्था की है। वहां गैरजरूरी सर्जरी बंद कर दी गई है और कोरोना के मरीजों के लिए अतिरिक्त व्यवस्था की गई है। ऐसी व्यवस्था हर निजी अस्पताल में होनी चाहिए और उनके नुकसान की भरपाई का सरकार को वादा करना चाहिए। जब खतरा सामने आएगा, तभी लड़ेंगे की सोच छोड़नी होगी और आगे बढ़ कर खतरा आने से पहले उससे लड़ने की रणनीति बनानी होगी।

प्रतिक्रिया देने की एप्रोच की बजाय प्रीइम्पट करना होगा। यानी बीमारी हमला करे उससे पहले बीमारी पर हमला करना होगा। ज्यादा से ज्यादा जांच कराने होंगे। इसकी जांच की किट महंगी है पर सरकार को उस पर खर्च करना होगा और निजी अस्पतालों को भी इसमें जोड़ना होगा। सरकार को आगे बढ़ कर कंपलीट लॉकडाउन की एप्रोच बनानी होगी। अगर वायरस के संक्रमण की शृंखला तोड़नी है तो पूरी तरह से सब कुछ बंद करना होगा। इमरजेंसी मोड में आना होगा और उसी हिसाब से सारे बंदोबस्त करने होंगे। तात्कालिकता की बजाय भविष्य में देखना होगा।

(साई फीचर्स)

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