सिद्धार्थ की लाश, बिजनेस की हकीकत!

 

 

(हरीशंकर व्यास)

पता नहीं नरेंद्र मोदी और उनके दफ्तर को संभालने वाले नृपेंद्र मिश्र ने कैफे कॉफी डे (सीसीडी) के मालिक सिद्धार्थ की नदी किनारे पड़ी लाश को देखा या नहीं? देखना चाहिए क्योंकि वह तस्वीर मोदी-शाह राज की वह बानगी है, जो आने वाले सालों में रिपीट होती रहेगी। किसी ने मुझे बताया कि सूरत के दो कारोबारियों ने कुछ ही दिन पहले आत्महत्या करते हुए बताया कि आज धंधा याकि आत्महत्या का रास्ता! ध्यान रहे हत्या की कहानी से अधिक खौफनाक आत्महत्या होती है। आत्महत्या में उत्पीड़न, खौफ, त्रास, पीड़ा, निराशा और अंधेरी सुरंग वाली चरम भयावहता होती है। सोचें, सिद्धार्थ पर। सब कुछ था उसके पास। भारत की सफल कहानी थी। 140 साल से बागान खेती की पारिवारिक विरासत लिए हुए था। अपनी पढ़ाई, अपने आइडिया से कैफे कॉफी डे का वैश्विक ब्रांड बनाया। कर्नाटक के कभी नंबर एक नेता रहे एसएम कृष्णा का दामाद। दक्षिण याकि बेंगलुरू में हर तरह की प्रतिष्ठा में मेक इन इंडिया के एक के बाद एक प्रोजेक्ट सोचे, बनाए। बिजनेस के उतार-चढ़ाव में 36 साल का सफर और बावजूद इसके वह पुरूषार्षी आत्महत्या को मजबूर हुआ! सोचें, क्या आजाद भारत के पुरूषार्थ की इससे ज्यादा त्रासद आत्महत्या कोई है?

तभी सिद्धार्थ की लाश को मोदी, शाह, नृपेंद्र मिश्र को वेक अप कॉल के नाते देखना चाहिए। मैं उस लाश को देखते हुए तलाश रहा था कि इसके पीछे राजनीतिक चील कौन हैं और सिस्टम के हाकिमों की खून लगी चीले कौन सी? भारत नाम के इस देश, राष्ट्र, कौम का कमाल देखिए कि सिद्धार्थ ने अपनी पीड़ा को अपने पत्र से जाहिर किया, क्षमा मांगी लेकिन हम हिंदुओं की माई बाप सरकार के आय कर विभाग ने नदी में कूद मरने के बाद भी सिद्धार्थ को झूठा बताया। सोचें इन दिनों कैसे इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों के हाकिम इस कदर बेखौफ हैं! इन्होंने मोदी-शाह से ऐसा प्रश्रय पाया हुआ है कि पुरूषार्थी की आत्महत्या पर भी डरेंगे नहीं, बल्कि उलटे तुरंत कहेंगे वह तो चोर था, मर गया तो क्या हुआ। हम तो सही थे, हैं और रहेंगे।

जरा सिद्धार्थ के पत्र में लिखे वाक्य जानें। उसने लिखा- मैंने 37 साल भारी कंपीटिशन के बीच मैं कड़ी मेहनत से 30 हजार नौकरियां देने का उद्यम बनाया। मैंने सब कुछ दिया लेकिन उद्यमी के तौर पर आज विफल हूं। आय कर के पूर्व महानिदेशक ने बहुत उत्पीड़न किया। माइंडट्री सौदे को रोकने के लिए दो अलग-अलग मौकों पर हमारे शेयर जब्त कर लिए और बाद में हमारे कॉफी डे के शेयर भी कब्जा लिए। यह बहुत अनुचित था और इससे हमें नकदी का गंभीर संकट झेलना पड़ा। कर्जदाताओं की तरफ से अत्यधिक दबाव ने मुझे स्थिति के आगे झुक जाने पर मजबूर किया। लंबे समय तक लड़ाई लड़ी लेकिन, आज मैं हिम्मत हार रहा हूं। हमारी संपत्तियां हमारी जिम्मेदारियों से अधिक है और हर किसी के बकाये का भुगतान कर सकती हैं।

इस पर जरा अब आय कर विभाग के वाक्यों पर गौर करें- सूत्रों ने कहा कि शेयरों की अस्थायी जब्ती की कार्रवाई राजस्व हितों के संरक्षण के लिए थी। वह तलाशी या छापों के दौरान जुटाए गए विश्वसनीय साक्ष्यों पर आधारित था। सिद्धार्थ को माइंडट्री शेयर की बिक्री से 32 सौ करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे लेकिन सौदे पर देय कुल तीन सौ करोड़ रुपए के न्यूनतम वैकल्पिक कर में से मात्र 46 करोड़ रुपए का भुगतान किया। फिर यह जो पत्र है उस पर सिद्धार्थ के दस्तखत सही नहीं लग रहे हैं।

सोचें, इनकम टैक्स ने अधिकृत नाम से नहीं, बल्कि सूत्र से मीडिया में खबरें चलवाई कि सिद्धार्थ झूठा है। यहीं नहीं देश को बता दिया कि पत्र भी झूठा है क्योंकि सिद्धार्थ के दस्तखत ही नहीं हैं!

कल टेलीग्राफ अखबार ने सिद्धार्थ के पत्र सहित उसके चार दस्तखतों की हस्तलिपी विशेषज्ञों से जांच करा बताया है कि पत्र पर सिद्धार्थ के ही दस्तखत हैं। टीओआई, फर्स्टपोस्ट, वायर आदि में छपी खबरों के तथ्यों को जोड़ें तो सिद्धार्थ नाम का मुर्गा अगस्त 2017 में बेंगलुरू में कांग्रेस नेता शिवकुमार व उनके वित्तीय सलाहकार शुकापुरी के यहा इनकम टैक्स की छापेमारी से सामने आया। छापेमारी राजनीतिक थी तो डायरेक्टर इनकम टैक्स ने अपने ऊपर दिल्ली दरबार की मेहरबानी मानी हुई होगी। कांग्रेसियों को-विरोधियों को, सालों को खत्म करो का जब सभी एजेंसियों को मैसेज है तो आय कर जांच का डायरेक्टर भला क्यों मुर्गा काटने का मौका चूकेगा? टीओआई ने डीजी-आईटी का नाम बालाकृष्णन बताया है जो इन दिनों कर्नाटक-गोवा क्षेत्र का प्रमुख आय कर आयुक्त है। छापे के बाद सिद्धार्थ का कैसा उत्पीड़न हुआ होगा इसे इस बात से समझ सकते हैं कि कभी कल्पना में सोची भी न जाने वाली बात हुई जो छापे के बाद उसके ससुर एसएम कृष्णा भाजपा में शामिल हुए। मतलब सिद्धार्थ के परिवार ने मोदी-शाह की शरण में जा कर बचाव चाहा। लेकिन एक बार जब एजेंसी के आगे अरबपति मुर्गा हो और बिना दिल्ली दरबार में पहुंच लिए हुए हो तो उसे चूसने के लिए दस तरह की कल्पनाओं, थ्योरी के साथ लिंक, साजिशे गढ़ी जाएगी। एक रिपोर्ट अनुसार सिद्धार्थ और शिवकुमार में लिंक साबित करने की कोशिश हुई। नेता शिवकुमार को बरबाद करना है तो सिद्धार्थ को भी बरबाद करो। इससे दिल्ली दरबार खुश तो मुर्गे को हलाल करने का पूरा मौका।

अब जरा देश की इस हकीकत को भी नोट रखें कि 2015 के बाद भारत का लगभग हर उद्योगपति कम कमाई और बढ़ते कर्ज में फंसा है। मध्यम या बड़े हजारों उद्योगपति आज कर्ज रिस्ट्रक्चर करा, या दिवालिया बन एनसीएलटी में गए हुए हैं या जाने की तैयारी या विलय, शेयर बेचने जैसे तमाम उपायों से जान बचाने के लिए हाथ पांव मार रहे हैं। सो, धंधे की मंदी में सिद्धार्थ के कॉफी डे, बागान व कंपनियों पर कर्ज बढ़ना या होना कोई घपले वाली बात नहीं है। उसने बैंकों से कर्ज ले कर एनपीए नहीं बनाया हुआ था। सिर्फ बिजनेस के उतार-चढ़ाव की साइकिल में फंसा हुआ कोशिश कर रहा था। तभी उसने पत्र में लिखा लंबे समय तक लड़ाई (कोशिश की) लड़ी। आज भी हमारी संपत्तियां हर किसी के बकाये का भुगतान कर सकती हैं।

लेकिन सिद्धार्थ या भारत का कोई भी कारोबारी (दरबारियों को छोड़कर) भला कैसे बच सकता है जब सरकार और उसकी एजेंसियों की नजर लग जाए। सिद्धार्थ कंपनी का मालिक और उसके खुद के शेयर। उन्हें ही जब्त करके इनकम टैक्स विभाग ने उसे ऐसे जकड़ा ताकि न वह कर्ज चुका सके और न उसके पास नकदी रहे। ऐसा आज हर कारोबारी के साथ अलग-अलग रूप में हो रहा है। मंदी है, सामान बिक नहीं रहा, बैंकों का कर्ज चुकता नहीं हो रहा तो इसे समझने के बजाय धंधा जाम बनाने के लिए उनके पीछे एजेंसियों को छोड़ा हुआ है। मैं यह पांच सालों से लगातार लिख रहा हूं कि भारत के व्यापारियों-कारोबारियों को चोर, डाकू, लुटेरा साबित करने की कोशिश में एजेसियों को मनमानी छूट के साथ जैसे एम्पॉवर किया गया है वैसा आजाद भारत में पहले कभी नहीं हुआ।

बहरहाल सिद्धार्थ पर लौटें। उसने कारोबार की वित्तीय स्थिति दुरूस्त करने के लिए आईटी कंपनी माइंडट्री को एलएंडटी को बेचा ताकि कर्ज उतार सके। मगर आय कर विभाग ने माइंडट्री सौदे को रोकने के लिए पहले सिद्धार्थ के शेयर जब्त किए और फिर यह तर्क देते हुए दुबारा शेयरों की जब्ती (फिर कॉफी डे के शेयर भी) यह कहते हुए कर ली कि सौदे में मुनाफा हुआ है और मुनाफे का टैक्स अदा नहीं होने का खतरा, संभावी राजस्व न मिलने की आशंका है तो उसके द्वारा बेचे जाने वाले शेयर ही जब्त। इस पर इनकम टैक्स ने सूत्र के हवाले जो सफाई दी है वह यह है-यह कदम सरकार को मिलने वाली रेवेन्यू के हित में उठाया गया और यह इनकम टैक्स एक्ट के प्रावाधनों में भरोसेमंद सबूत के आधार पर था।

मतलब एक अखबार में अनुमान वाली खबर छापी कि सिर्द्धार्थ अपनी देनदारी कम करने के लिए अपने शेयर बेचने के जुगाड़ में हैं तो फटाक से इनकम टैक्स ने शेयर जब्त किए! दूसरा मतलब यह कि सिद्धार्थ को शेयर बेचने से बहुत कमाई हुई थी तो उसके लाभ का टैक्स सरकार को अगले रिटर्न में पता नहीं मिले या न मिले तो क्यों न पहले ही सरकार की रेवेन्यू की चिंता के बहाने शेयर जब्त कर लो!

उफ! मां भारती के पुरूषार्थियों के साथ ऐसा सलूक! तभी भारत के तमाम पुरूषार्थियों के लिए इस लाश के कई सबक हैं। एक, यदि दिल्ली के तख्त पर अकबर का राज खत्म हो और ओरंगजेब का नया राज बने तो देश के भामशाह तुंरत दिल्ली दरबार में जा कर अपने को उसका वफादार प्रमाणित करें। दूसरे, जिस कारोबारी ने जीरो से कारोबार बना कर, संपदा, जॉब और ब्रांड बनाया वह हमेशा हाकिम की एजेंसियों मतलब इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई, सीबीडीटी, ईएसआई, पीएफ, बैंक आदि तमाम एजेंसियों के लिए धंधे में बीस-तीस प्रतिशत नजराना निकालने की अनिवार्य व्यवस्था लिए हुए हो। ताकि संकट के समय नकदी खिलाने की कमी न हो। तीसरे, अपने आपको संकट के वक्त चीलों से नुचवाने के लिए उसे हिम्मती रहने की ट्रेनिंग भी लिए हुए होनी चाहिए।

आखिर में जाने चेन्नई, कोलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इंदौर, बेंगलुरू सब तरह हजारों पुरूषार्थियों की आज की हकीकत को कि बाजार की मंदी, धंधे के चौपट होने के बावजूद बेचारे सब अपनी हिम्मत की वहीं परीक्षा दे रहे हैं, जिसमें सिद्धार्थ फेल हुआ और नदी में कूद कर मरा। यदि सिद्धार्थ नदी में कूद कर नहीं मरता तो क्या भारत के बिजनेस डोमेन की आज की त्रासदायी, उत्पीड़न व जलालत वाली, अंधेरी हकीकत का पता पड़ता? बावजूद इसके यह भी चंद लोगों का ही सत्य है क्योंकि इनकम टैक्स, नरेंद्र मोदी- अमित शाह और नृपेंद्र मिश्र जैसे नियंता आज भी डिनायल याकि खंडन मोड में हैं। तभी इनसे सादर, करबद्ध विनती है कि नदी किनारे सिद्धार्थ की पड़ी लाश के फोटो को जरूर गौर से देखें और सोचें कि वह भारत का चोर-अपराधी था या सिस्टम के हाथों हत्या का शिकार भारत मां का एक ब्रांड पुरूषार्थी था?

(साई फीचर्स)