इतिहास के मंच पर हावी हुआ राजनीति का रंग

 

(मोहम्मद शहजाद) 

केरल की कन्नूर यूनिवर्सिटी में पिछले दिनों राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब के बीच हुई बहस एक कड़वा अहसास छोड़ गई। खुदा न खास्ता कभी भारतीय इतिहास की किताबें नष्ट हो जाएं तो इरफान हबीब उसका पुनर्लेखन कर देंगे। अलीगढ़ में हमारे स्कूल मिंटो सर्कल के पूर्व छात्र रहे प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब के बारे में हमारे सहपाठियों के बीच ऐसी ही धारणा थी। अबोध बाल मन ने इसे सच भी मान लिया था। संयोग से आगे की कक्षा में जाने के बाद मुझे जो छात्रावास आवंटित हुआ उसका नाम इरफान हबीब के पिता मोहम्मद हबीब के नाम पर है। पता चला मोहम्मद हबीब साहब भी प्रसिद्ध इतिहासकार रहे हैं। फिर बाद में एक और किस्सा सुनने में आया कि कुछ छात्र एएमयू अलीगढ़ से ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी जब इतिहास में पीएचडी करने गए तो उनसे बड़े अचरज से पूछा गया कि तुम एएमयू के उस अडवांस्ड हिस्ट्री डिपार्टमेंट को छोड़कर आए हो जहां इरफान हबीब प्रोफेसर हैं?

पता नहीं इसमें भी कितनी सच्चाई है। सब किस्से-कहानियां ही सही, लेकिन इनसे इरफान हबीब के उस आभामंडल का पता जरूर चलता है जो इतिहास के छात्रों पर छाया रहा है। अपनी मार्क्सवादी विचारधारा और बेबाक राय के सबब वह हिंदू-मुस्लिम चरमपंथियों के समान रूप से निशाने पर रहे हैं लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी डिगे नहीं। केरल की कन्नूर यूनिवर्सिटी में भी पिछले दिनों यही हुआ जब वह उसूलों पर आंच आती देख अपनी ही यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से भिड़ गए।

आरिफ मोहम्मद खान की छवि भी एक प्रखर विद्वान की रही है। शाह बानो मामले पर राजीव गांधी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर चर्चा में आने के बाद से वह मुस्लिम रूढ़िवादिता पर गहरी चोट करते रहे हैं। अलबत्ता इस दौरान वह अपनी राजनीतिक जमीन तलाश करते हुए कांग्रेस से वाया बीएसपी बीजेपी तक का सफर तय कर चुके हैं। इन दोनों विद्वानों में यही बुनियादी अंतर है। इरफान हबीब अपने मार्क्सवादी सिद्धांतों पर अडिग रहे, जबकि आरिफ मोहम्मद खान अलग-अलग सिद्धांतों वाले राजनीतिक दल बदलते रहे।

इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के मंच पर हुए विवाद का मूल कारण भी कहीं न कहीं विचारधारा का टकराव ही रहा। मामला तूल नहीं पकड़ता अगर केरल के राज्यपाल नागरिकता कानून का विरोध करने वालों को केवल शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने की नसीहत देते। लेकिन उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आजाद का हवाला देते हुए ऐसी बात कह दी जिसका पाकिस्तान दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल करता रहा है। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा, मौलाना आजाद ने कहा था कि विभाजन गंदगी को अपने साथ ले गया, लेकिन कुछ गड्ढे रह गए जिसमें पानी इकट्ठा हो गया। अब उससे दुर्गंध आ रही है। उनका मतलब आप जैसे लोगों से ही था। इरफान हबीब ने इस पर कहा, मैं उस समय (1948 के एएमयू के दीक्षांत समारोह में) मौजूद था और मौलाना ने ऐसी कोई बात नहीं कही थी।

कहना बेजा न होगा कि आरिफ मोहम्मद खान इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस को राजनीतिक मंच की तरह इस्तेमाल करने की चूक कर बैठे। इससे नाराज इरफान हबीब ने कहा कि उन्हें मौलाना और गांधी की बजाए गोडसे को कोट करना चाहिए। इसके बाद माहौल में कड़वाहट रोकी नहीं जा सकी। राजभवन से हुए ट्वीट में भी ऐसा दर्शाया गया मानो 88 साल के बुजुर्ग इतिहासकार से मंच पर सुरक्षा में घिरे राज्यपाल को खतरा हो। कुछ नेताओं ने तो इरफान हबीब से उनका पद-सम्मान वापस लेने की बातें भी शुरू कर दीं।

इरफान हबीब को यूजीसी ने एएमयू में प्रोफेसर एमिरेटस का गौरव दिया है। जाने कितनी बार और कितने समय तक उन्होंने इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद और ब्रिटिश रॉयल हिस्टोरिकल सोसायटी जैसी चोटी की संस्थाओं का प्रतिनिधित्व किया है। ऐतिहासिक भूगोल, भारतीय प्रौद्योगिकी के इतिहास और आर्थिक इतिहास जैसे विषय पर उनका लंबा अध्ययन है। ऐसे में इतिहास के इ शब्द का बोध न रखने वाले नेता और ट्रोल गैंग इरफान हबीब पर वामपंथ के चश्मे से इतिहास गढ़ने जैसे आरोप मढें तो यह ईसा-मसीह को बाइबिल पढ़ाने जैसी हरकत ही कही जाएगी।

(साई फीचर्स)

 

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