कांग्रेस के लिए गिरेहबान में झांकने का समय

 

 

 

 

(प्रकाश भटनागर)

आप फिर हार गये। वो एक दफा और जीत। पहला पक्ष और कमजोर हुआ। दूसरे के पक्ष के भीतर अतिरिक्त ऊर्जा का संचार हो गया। पहले वाले पराजय स्वीकारने की बजाय खेल में पिछड़े किसी बच्चे की तरह मचल उठे हैं। सामने वाले समूह ने विजय का वरण करने के बाद शान से अपनी मूंछें उमेठीं और हाथ पीछे कर लिये। उस तरकश की ओर, जिसके भीतर अभी ही ऐसे और भी तीर रखे हुए हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक पर राज्यसभा की स्वीकृति के बाद विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस के लिए यह निश्चित ही गहन विचार मंथन और खुद के गिरेहबान में झांकने का समय आ गया है। अमित शाह उच्च सदन के तूफान से सफलतापूर्वक कश्ती को लेकर बाहर आ गये। कांग्रेस के विरोध का बेड़ा गर्क हो गया। यह लहरों का दोष नहीं है

दोष किसी और का है। उन नाविकों का, जिन्होंने हाल-फिलहाल इस दल की पतवार अपने हाथ में ले रखी है। राहुल गांधी बेमतलब हो चुके हैं। सोनिया गांधी थक चुकी हैं। जो गरज रहे हैं, वह मसखरे दिखते हैं। कपिल सिब्बल हम और मुसलमान आपसे डरते नहीं हैंकहते हुए एक बार फिर तुष्टिकरण खेलने का प्रयास कर रहे हैं, जिस खेल में अब खुद मुस्लिम मतदाताओं की न के बराबर दिलचस्पी रह गयी है। सिब्बल जनाब ने इस तरह की अपनी प्रतिभा का बीते कुछ सयम में यह दूसरी बार परिचय दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे।

असर यह हुआ कि गए लोकसभा चुनाव में देश के मतदाता ने कांग्रेस की उपयोगिता पर अपने सवालिया निशान की निरन्तरता को बरकरार लगा रखा। अब सिब्बल ने मुस्लिम कार्ड चला, लेकिन नतीजा बेअसर रहा। पार्टी फिर अल्पसंख्क परस्त हो गयी और राज्यसभा में परास्त भी हुई। कांग्रेस को सबसे पहले तो अपने ऊपर छायी वहम की धूल को झाड़-पोंछकर हटाना होगा। यह मानना पड़ेगा कि इस सियासी आंधी में वह अपनी जड़ों से बहुत दूर जा गिरी है। सिब्बल जैसे टोटकों की बदौलत हिंदू इस दल से और छिटक गये हैं तथा बहुत तेजी से शिक्षा एवं हकीकत के संपर्क में आये अल्पसंख्यक पहले ही उससे मुंह मोड़ चुके हैं।

तो फिर यह क्यों नहीं हो रहा कि इस दल के कर्ताधर्ता अपनी नीतियों में आमूल-चूल बदलाव की बात कर रहे हैं? वह यह समझने का प्रयास ही नहीं कर रहे कि उनकी किन-किन कमजोरियों को भाजपा ने बहुत खूबी से अपनी ताकत में तब्दील कर लिया है। यह कांग्रेस की ही गलतियों का नतीजा है ना कि देश यह जान गया कि बहुसंख्यक ही अपने दम पर देश में बहुमत की सरकार बना सकते हैं। और ऐसा एक बार गलती से नहीं हुआ, बहुसंख्यकों ने खुद को हिन्दू बनाकर इसे दौहरा भी दिया। अनुच्छेद 370 के खात्मे पर कांग्रेस ने जमकर प्रलाप किया। राहुल गांधी नोटबंदी के समय एटीएम की लाइन में लगने या कुर्ते की फटी जेब दिखाने जैसे नादान आचरण फिर दोहराते दिखे।

अब नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर शेष पार्टीजन भी गांधी के पीछे भेंड़चाल लगाये दिख रहे हैं। इस दल को यह सोचना था कि 370 और नागरिकता के मामले भाजपा के चुनावी एजेंडे का हिस्सा थे। वह विषय थे, जिनसे प्रभावित होकर देश की जनता ने इस दल को लगातार दूसरी बार स्पष्ट बहुमत प्रदान किया। जिन मसलों पर आवाम का रुख पूरी तरह साफ है, उन्हीं पर कांगे्रस लकीर की फकीर जैसा आचरण कर अपनी स्थिति और कमजोर करती जा रही है। लगता है उसके पास कम्युनिस्टों से मिले उधारी के ज्ञान के ज्ञान के अलावा अपनी कोई सोच ही बाकी नहीं है। वह मतदाता के मूड को समझने को तैयार ही नहीं दिखती। मोदी के हर कदम के विरोध की रौ में इस पार्टी ने खुद की स्थिति बहुत ज्यादा विचित्र कर ली है। यह उस शख्स जैसा मजाकिया आचरण हैं, जिसने एक दोपहर सिर्फ इसलिए अपने घर में आग लगा दी कि पड़ोसी उसकी गरमी से परेशान हो जाएं। कांग्रेस के लिए यह अपने गिरेहबान में पूरी ईमानदारी से झांकने का समय है। बाकी ऐसा तो बिल्कुल ही नहीं है कि इस दल में समझदार बाकी रह ही नहीं गए है।

(साई फीचर्स)