त्सेरिंग नामग्याल: नया प्रदेश, नया हीरो

 

 

(श्रुति व्यास)

छह अगस्त को लोकसभा में जब लद्दाख के युवा सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल पहली बार सदन में बोलने को खड़े हुए तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि चश्मा पहने और बिखरे बालों वाला यह नौजवान अपने पहले और हिंदी में दिए भाषण से देश भर के करोड़ों लोगों का दिल जीत लेगा। त्सेरिंग ने बहुत ही मार्मिकता से देश के समक्ष हर लद्दाखी के दुखदर्द को रखा। दुखदर्द उस दुर्गम पहाड़ी इलाके के लोगों का जिसे् पिछले सात दशक से भी ज्यादा समय से सिर्फ इसलिए झेलते आ रहे थे क्योंकि जम्मू – कश्मीर को धारा 370 में विशेष दर्जा मिला हुआ था।

त्सेरिंग का भाषण मुश्किल से कोई बीस मिनट का था लेकिन सबके दिल को छूते हुए उन्होने इस अंदाज में भाषण दिया कि सुनने वाला हर राजनेता और पत्रकार चकरा गया। इतिहास को भूले हुए, इसकी हकीकतों से अनजान और लोगों की अनसुनी मांगों का हवाला देते हुए उन्होंने याद दिलाया कि किस तरह से लद्दाख को भुला दिया गया था और हमेशा सिर्फ और सिर्फ कश्मीर की भावनाओं की चिंता कर उसे भुनाया जाता रहा।

कितनी सही बात है यह। सोचे कि क्या आज भी यह नहीं लगता कि सभी का ध्यान अभी भी कश्मीर के अंधेरे और निराशा पर ही केंद्रित है! नए लेह – लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेश को लेकर थोड़ी खुशी भी कही भी देखने को नहीं मिल रही है।

एंड्य्रू हार्वे ने 1983 में ए जर्नी इन लद्दाख में लिखा था कि किस तरह से जम्मू – कश्मीर पर नियंत्रण की वजह से लद्दाख की अनदेखी हुई है। लद्दाख को लेकर कश्मीरी अधिकारियों का रवैया कठोर और मनमाना भरा है। यहां तक कि लद्दाख के स्कूलों में पांचवीं के बाद लद्दाखी नहीं पढ़ाई जा सकती। लद्दाख के प्राचीन स्मारकों और बौद्ध मठों जिनका इतिहास तीसरी सदी से शुरू होता है, का पैसे के अभाव और उपेक्षा की वजह से दिनोंदिन तेजी से ह्रास होता जा रहा है और ये अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। संदेह नहीं कि लद्दाख की सत्तर बाद से घोर अनदेखी हुई है।

पर अनुच्छेद – 370 अब खत्म है। निश्चित ही केंद्र सरकार के फैसले से, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना कर लद्दाख को नया जीवन मिला है। लद्दाख के इस नए उदय के साथ ही उसे नई पहचान मिली है और इसी के साथ लद्दाख में एक नए महानायक का भी उदय हुआ है जिसका नाम जामयांग त्सेरिंग नामग्याल है।

नया इंडिया के साथ विशेष बातचीत में जामयांग ने राजनीति से अलग हट कर बात की। कहा कि सिर्फ लद्दाख ही नहीं है जो बाहरी अवसरों से वंचित हुआ है, बल्कि देश का बाकी हिस्सा भी लद्दाख की खूबियों, यहां की कुदरत, उसके आकर्षण और लद्दाखियों के कौशल से वंचित रहा है। लद्दाख में इतना ज्यादा ज्ञान और प्रेरणा है जिसे कोई भी यहां से और यहां के लोगों से ले सकता है। स्वच्छ भारत अभियान के बहुत पहले ही, करीब दस – पंद्रह साल पहले लद्दाख के एक महिला संगठन ने पूरे लद्दाख में पॉलिथिन की थैलियों पर पाबंदी लगाने का फैसला लिया था। और आप देखेंगे कि आज लद्दाख में हर कोई हर जगह इसका पालन किया जाता है।

ध्यान रहे दो दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने देशभर के लोगों से अपील की थी कि वे देश को पॉलिथिन मुक्त बनाने के लिए काम करें। जबकि लद्दाख पहले ही इसकी मिसाल बन चुका है। मगर यह बात कितनों को मालूम थी?

ऐसे ही लद्दाख गर्मियों के मौसम का सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थल है। थ्री इडियट्स जैसी फिल्मों को इसका श्रेय जाता है जिनकी वजह से देशी – विदेशी पर्यटकों की तादाद यहां तेजी से बढ़ी है और लेह आने वाली उड़ानों में जगह तक नहीं मिल पाती। यहां आधुनिक सुविधाओं वाले होटल हैं तो कइयों ने पुरानी शैली की इमारतों वाले होटल भी बनाए हैं लेकिन सुविधाओं के मामले में एकदम आधुनिक। खाने में थुपका की तरह ही याम चीज पिज्जा, पास्ता और समोसा आदि सब मिलते हैं।

लद्दाख की सबसे अच्छी खूबी है कि लोग गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। दोस्ताना हैं, अपनी संस्कृति और पंरपराओं पर गर्व करते हैं। आज बाकि जगह जिस तरह की प्रदूषित जीवनशैली, खानपान, संगीत और नृत्य का चलन जोरों पर है, वही लद्दाख के लोग अभी भी उससे बचे हुए हैं। मैंने त्सेरिंग से पूछा कि क्या इस बात को लेकर कोई चिंता है कि लद्दाख के दरवाजे बाहरी दुनिया के लिए खुल है तो कही उसकी संस्कृति खतरे में तो नहीं पड़ेगी?

सेरिंग लोकसभा में भाषण जैसी ही उत्तेजना के भाव में बोले – परंपराओं का दमन तो धारा 370 ने किया था। हमारी लोक – संस्कृति को कोई कभी तवज्जो नहीं दी गई। न ही इसके विकास के लिए कुछ किया गया। हम अपनी संस्कृति को बाहर ले जा पाते और उस पर गर्व करते, लेकिन इसकी हमें कभी इजाजत ही नहीं दी गई। आज हमारी नई पीढ़ी अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को लेकर काफी सचेत है और इसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।

त्सेरिंग अपनी ही मिसाल देते हुए बताते हैं कि पहले, जब मैं दिल्ली में होता तो मुझे अपनी पारंपरिक पोशाक पहनने में काफी झिझक होती थी। और सिर्फ मैं ही नहीं, मेरे जैसे बहुत से लोग हैं जो इस पीड़ा से गुजरते हैं। लेकिन आज हम गर्व महसूस करते हैं। आज आप देखेंगे कि बहुत से लद्दाखी छात्र जो बाहर के राज्यों में हैं, अपनी पारंपरिक पोशाक पहनते हैं। जिस दिन लोकसभा में मैंने अपना भाषण दिया उस दिन भी मैंने पारपंरिक पोशाक पहनी हुई थी। त्सेरिंग वाकई गर्व का भाव झलकाते हुए थे।

त्सेरिंग का मानना है कि लद्दाख की संपदा समाजों का सह – अस्तित्व है। करगिल को लेकर उन्होंने सारी आशंकाओं को खारिज किया। वे कहते हैं दृ लेह में बहुत सारे शिया परिवार हैं लेकिन वे सब धारा 370 को खत्म किए जाने का स्वागत कर रहे हैं।

अंजुमन मोइनुल इस्लाम ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है और अपनी मस्जिद पर तिंरगा फहराया। तब क्यों करगिल के शिया अपने को अलग या नाराज महसूस करेंगे? त्सेरिंग ने कहा कि दिल्ली में भी कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें सरकार का यह अच्छा और साहसी फैसला हजम नहीं हो पा रहा है। और वही लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं और अशांति फैलाने में लगे हैं।

नौजवान सांसद ने भरोसा दिलाया कि लद्दाख के गांवों तक में लोग धर्म से परे जाकर एकजुट हैं और सरकार के फैसले का स्वागत कर रहे हैं।

त्सेरिंग से बात लंबी चल निकली और देर होने लगी। उनकी पत्नी खाने पर इंतजार कर रही थीं। लेकिन त्सेरिंग के लिए दिन खत्म नहीं हुआ था। दरअसल संसद में भाषण के बाद उन्हें एक नई दुनिया मिली है। उन्हे अगले दिन सुबह लेह की उड़ान पकड़नी थे और इससे पहले उन्हें काफी काम निपटाने थे। दिन भर उनके मीडिया से इंटरव्यू होते रहे थे।

त्सेरिंग से मिल कर लगा कि लेह, लद्दाख में भी वही जोश, वही उत्साह होगा जो त्सेरिंग के जीवन में अचानक आया है। वहा भी किसने सोचा होगा कि अचानक अनुच्छेद 370 खत्म होगा और लद्दाख राज्य का दर्जा लिए हुए होगा। लद्दाख और वहा के जन प्रतिनिधी त्सेरिंग का अचानक फोकस में आना, उनकी व्यस्तताएं बढ़ना और उत्साह – उमंग सबकुछ लेह के लोगों की वह प्रतिनिधी बात है जिसमें हम और आप, शेष भारत के लिए सुकून यह है कि देर से ही सही लद्दाख के साथ अच्छा हुआ। भारत की संसद ने वहां नई शुरूआत कराई।

आखिर में, त्सेरिंग की इस इच्छा को जानना चाहिए कि है कि विकास और उत्थान के साथ लद्दाख एक आदर्श समाज के मिसाल के रूप में पूरे देश के सामने आए जहां लैंगिक समानता हो तो विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सदभाव भी।

(साई फीचर्स)