विदेशी धरती पर हम हिंदुस्तानी और हमारा रवैया

(संतोष उत्सुक)

विदेशों के अनुशासित जीवन की तारीफ में कसीदे हममें से हर वह शख्स काढ़ता है जो विदेश हो आया है। हम हिंदुस्तानी भी वहां ज्यादा अनुशासित और शालीन आचरण करते पाए जाते हैं। मगर हाल के न्यूजीलैंड प्रवास के दौरान मुझे इसके कुछ दिलचस्प अपवाद दिखे। एक दिन उस क्षेत्र में जाना हुआ जहां हिंदुस्तानी ज्यादा रहते हैं। मैंने देखा, एक बंदा आराम से आया और पेड़ के नीचे बने घेरे में संभवतः बासी चावल फेंक कर कार में बैठ निकल गया। थोड़ी दूरी पर अपनी कार के अंदर से मैं यह वाकया देख रहा था। बहुत बुरा लगा। सोचा, ये तो हो नहीं सकता कि उसको पता ही न हो कि वहां हर मकान में दो तरह की कचरा पेटियां रखी जाती हैं- एक उन कचरों के लिए जो रिसाइकल हो सकते हैं। दूसरी पेटी वैसे कचरों के लिए होती है जिसे नियमित अंतराल पर म्युनिसिपल काउंसिल वाले आकर ले जाते हैं। फिर भी जनाब ने हिंदुस्तानी तरीका प्रयोग किया तो जाहिर है, आदत से मजबूर होंगे। एकबारगी मन में आया कि जाकर टोकूं, भई हिंदुस्तान से बाहर निकल कर भी पुरानी आदतों के चंगुल से क्यों नहीं निकल पा रहे, पर यह सोचकर रुक गया कि अपना ही हिंदुस्तानी भाई है। टोकने पर पता नहीं कैसे रिएक्ट करे!

भारतीय रेस्ट्रॉन्ट्स में खाने की ललक थी। एक तो अपना हिंदुस्तानी खाना मिस कर रहा था, दूसरे यह भी देखना था कि विदेशों में ये रेस्ट्रॉन्ट्स कैसी सर्विस देते हैं। पर वहां पनीर और चना मसाला की सब्जियों में एक जैसी ग्रेवी मिली। काउंटर पर शिकायत की तो बोले, शेफ को जरूर बताएंगे। साफ लग रहा था, वे टालने के लिए बोल रहे हैं। एक अन्य भारतीय रेस्ट्रॉन्ट में विशेष दिवस पर टेबल बुक कराया। पहुंचे तो रश नहीं था। वहां, मैंगो लस्सी ऑर्डर की तो नमकीन लस्सी में आम का रस मिलाकर मैंगो लस्सी के रूप में पेश किया गया। जब उन्हें बताया कि यह मीठी न होकर नमकीन है तो काफी देर बाद उन लोगों ने बताया कि मैंगो लस्सी उपलब्ध नहीं है। यहां भी मलाई कोफ्ते काफी सख्त थे। मालिक को बताया तो बोले, गर्म करने के लिए किसी ने बोल दिया होगा माक्रो मार दे, फिर हंसते हुए कहने लगे, हमारे कोफ्ते बहुत अच्छे होते हैं सर, आज रश था। आप कभी रूटीन डेज में आइए। मेरे बेटे ने बताया कि किसी गोरे के साथ ये ऐसा नहीं कर सकते थे।

नए मकान में शिफ्ट हुए एक यंग कपल से बात हो रही थी जो वहां नौकरी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले तक वे एक भारतीय परिवार के साथ शेयरिंग में रहते थे। घर की मालकिन बिना नॉक किए, बिना बताए कमरे में आ धमकती थी। बार-बार टोकने पर भी उसका व्यवहार नहीं बदला। पता चला वहां के भारतीय उन विद्यार्थियों को काम पर रख लेते हैं जो जेबखर्च निकालने के लिए सप्ताह में कुछ घंटे काम के लिए उपलब्ध रहते हैं। मगर इन विद्यार्थियों को न्यूनतम वेतन से काफी कम पैसे दिए जाते हैं।

दौरा खत्म कर मैं स्वदेश लौट आया, पर विदेशों में बसे हमवतनों का आपसी व्यवहार मन में ढेरों सवाल खड़े कर गया। जब हम उन देशों के मूल निवासियों से खास तरह का व्यवहार कर सकते हैं तो हमवतनों से दूसरी तरह का व्यवहार क्यों करते हैं? शायद बाहरी दबाव ने हमारे ऊपरी आचरण को तो थोड़ा-बहुत बदला है, पर हमारा मन आज भी वैसा ही है। उसे बदलने में पता नहीं कितनी सदियां लगेंगी।

प्यार में अगर दिल सचमुच टूट जाए तो क्या उसका कोई इलाज है? कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक न्यूरोसाइंटिस्ट ने इस सवाल का जवाब तलाश लिया है। कई बार ब्रेक अप में ऐसा मानसिक झटका लगता है कि इंसान का हार्ट सही तरीके से खून की पंपिंग नहीं कर पाता। ऐसे में दिल के मारे उस इंसान की मौत भी हो सकती है। जाहिर है, मरीज का तुरंत इलाज किया जाना चाहिए। एनेस्थीसिया ड्रग्स और न्यूरोफीडबैक के जरिये किया जाने वाला यह उपचार विशेषज्ञों द्वारा कारगर घोषित किया जा चुका है।

(साई फीचर्स)