किस बात का इंतजार है विपक्ष को!

 

भाजपा विरोधी सारी पार्टियों को लग रहा है कि देश में इस समय सरकार के खिलाफ जनमानस बन रहा है। लोग आंदोलित हैं। नागरिकता कानून के अलावा अर्थव्यवस्था की मंदी, महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों को परेशान करके रखा है। इसके बावजूद विपक्ष कोई साझा पहल क्यों नहीं कर रहा है? विपक्ष के तमाम नेता और पार्टियां आखिर किस बात का इंतजार कर रही हैं? किसी और ज्यादा बड़े मौके का या नेता का?

वैसे इससे पहले कई विपक्षी नेताओं की ओर से धुरी बनने का प्रयास हुआ है पर राष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी नहीं मिली है। सारे नेता थक हार कर बैठ गए दिखते हैं। किसी समय नीतीश कुमार विपक्ष की धुरी बनते लगते थे पर वे भाजपा के साथ चले गए। फिर चंद्रबाबू नायडू से उम्मीदें थीं पर जगन मोहन से हार कर वे भी अब एनडीए में लौटने का रास्ता बना रहे हैं। के चंद्रशेखर राव ने ममता बनर्जी को आगे करके विपक्षी एकजुटता का प्रयास किया था पर अब लग रहा है कि ममता अपने राज्य में ही घिरी हैं। इस बीच विपक्ष को धुरी बनने वाले नए नेता के रूप में शरद पवार मिल गए हैं।

महाराष्ट्र के घटनाक्रम के बाद सहज रूप से माना जा रहा है कि वे विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैं। पर वे कब पहल करेंगे, यह कोई नहीं बता रहा है और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस उनको राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने के लिए राजी होगी? कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि सोनिया गांधी को कोई दिक्कत नहीं है। वे शरद पवार को अब चुनौती नहीं मान रही हैं। वैसे भी पवार की उम्र बहुत ज्यादा हो गई है और सेहत भी बहुत अच्छी नहीं है। तभी अगर वे विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने का प्रयास करते हैं तो कांग्रेस इसका समर्थन करेगी।

पर सवाल है कि कब यह पहल शुरू होगी? क्या विपक्ष झारखंड और दिल्ली के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहा है? विपक्ष के ज्यादातर नेता मान रहे हैं कि इन दोनों राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन खराब होगा और इस बीच अगले तीन महीने में देश की अर्थव्यवस्था भी और बिगड़ेगी। तब विपक्षी एकजुटता का सही समय आएगा। हालांकि कांग्रेस और एनसीपी दोनों के पुराने नेता इसे लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय चुनाव में अभी साढ़े चार साल बाकी हैं और तब तक मौजूदा माहौल को बनाए रखना संभव नहीं है। इसलिए वे अभी यथास्थिति के पक्ष में हैं।

(साई फीचर्स)