(अजित कुमार)
बहुत पहले कार्ल मार्क्स और जोसेफ पियरे प्रूदों के बीच दर्शन की निर्धनता और निर्धनता के दर्शन पर बहस हुई थी। प्रूदों ने मार्क्स के सिद्धांतों के बारे में लिखा था यह निर्धनता का दर्शन है। इसके जवाब में मार्क्स ने दर्शन की निर्धनता नाम से किताब लिखी। इसके करीब डेढ़ सौ साल बाद निर्धनता का अर्थशास्त्र लिखने वाले अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार मिला है। बनर्जी, उनकी पत्नी एस्टर डफ्लो और माइकल क्रेमर को साझा तौर पर नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अभिजीत बनर्जी की सबसे खास बात यह है कि वे आर्थिक नीतियों की सैद्धांतिक व्याख्या में नहीं उलझे रहे। हालांकि किसी भी काम के लिए अच्छा सिद्धांत पहली जरूरत होती है। पर बनर्जी ने सिद्धांत के साथ साथ व्यवहार धरातल पर भी अपने सिद्धांतों को खुद आजमाया। यानी कोई ऐसी थ्योरी नहीं दी, जो लोग समझ न सकें और जिस पर अमल के लिए दशकों या सदियों इंतजार करना पड़े।
उन्होंने रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल यानी आरसीटी का सिद्धांत दिया तो खुद इस पर अमल करके भी देखा और जब यह सफल रहा तो उन्होंने भारत सहित दुनिया के अनेक गरीब देशों की सरकारों को इस सिद्धांत पर अमल के लिए कहा। इस महान अर्थशास्त्री की दूसरी खास बात यह है कि उन्होंने अपने को सिर्फ क्लासिक अर्थशास्त्र तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने हेल्थ से लेकर खाद्य सुरक्षा तक अपने अर्थशास्त्र का विस्तार किया।
तीसरी खासियत यह है कि उन्होंने अर्थशास्त्र को शुद्ध विज्ञान और गणित में बदल दिया। उनका आर्थिक नीतियों का प्रयोग विज्ञान के प्रयोगों की तरह है। चौथी खूबी यह है कि उन्होंने सरकारों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे आंक़ड़ों और बिल्कुल जमीनी स्तर से उठाए गए सबूतों को गंभीरता से लें और उसके हिसाब से नीतियां बनाएं। इसी का नतीजा है कि उनके सिद्धांत से कम से कम दस देशों को गरीबी कम करने में मदद मिली है।
तभी सवाल है कि क्या भारत सरकार उनकी नीतियों पर अमल करेगी? यह सही है कि भारत में गरीबी तेजी से कम हो रही है। लोग गरीबी रेखा के दायरे से बाहर आ रहे हैं पर यह इस बात की गारंटी नहीं है कि उनका जीवन स्तर सुधर रहा है। अभिजीत बनर्जी के सिद्धांतों को लागू किया गया है तो स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और अंततः लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनेगा। पर मुश्किल यह है कि वे मौजूदा सरकार की वित्तीय व आर्थिक नीतियों के समर्थक नहीं हैं।
दूसरे, वे कांग्रेस पार्टी के साथ मिल कर उसका घोषणापत्र बना रहे थे। वे राहुल गांधी के सलाहकार थे। तीसरे, उन्होंने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है, जिसे भारत की सत्तारूढ़ पार्टी और यहां तक कि सरकार के लोग भी टुकड़े टुकड़े गैंग का मुख्यालय मानते हैं। चौथे, अभिजीत बनर्जी ने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की है। भारत के प्रधानमंत्री हार्वर्ड को बहुत हेय दृष्टि से देखते हैं और मानते हैं कि उनका हार्डवर्क हार्वर्ड से बेहतर है।
सो, ऐसा लग रहा है कि इतनी सारी कमियां जिस व्यक्ति में हों, उसके सिद्धांत को सरकार लागू करेगी। परंतु अगर लागू किया जाए या नीतियां बनाते समय उनका ध्यान रखा जाए तब भी देश के करोड़ों लोगों का भला हो सकता है। आखिर भारत से ज्यादा गरीब देश कहां मिलेगा और यहां से ज्यादा गरीबी दूर करने की जरूरत किस देश को है? अभिजीत बनर्जी ने अपने सिद्धातों को भारत में ही परीक्षण किया है इसलिए इसके भारत में सफल होने की ज्यादा संभावना है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अभिजीत बनर्जी का दर्शन गरीबी कम करने में मददगार होगा। उन्होंने उन तमाम बातों को अपने दर्शन में शामिल किया है, जिनकी अब तक चर्चा होती रही है। जैसे वे मानते हैं कि खाद पर सब्सिडी देने से बेहतर है कि किसानों को सीधे नकद पैसे दिए जाएं। कई राज्यों ने और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू कर दिया है। भले इसे अभिजीत बनर्जी का सिद्धांत मान कर लागू नहीं किया गया हो पर यह लागू हुआ।
वे यह भी मानते हैं कि आम लोगों के लिए एक न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसी सुझाव पर अमल करते हुए कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में हर गरीब को साल में 72 हजार रुपए देने का वादा किया था। हालांकि अभिजीत बनर्जी का ओरिजिनल सुझाव 36 हजार रुपए साल में देने का था। वे खाद, बिजली या किसी और चीज पर मिलने वाली सारी सब्सिडी खत्म करके आम लोगों के खातों में पैसे डालने का सिद्धांत देते हैं पर उससे पहले यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि लोग सरकार के डिलीवरी सिस्टम पर भरोसा करें। यानी उन्हें यह भरोसा दिलाया जाए कि सरकार जितने पैसे कह रही है उतने उनके खाते में हर हाल में पहुंचेंगे। उसमें लीकेज या गड़बड़ी नहीं होगी। अभिजीत बनर्जी के सिद्धांत में आउटकम पर बहुत फोकस है। वे यह जानना चाहते हैं कि जो भी सरकारी सहायता दी गई या नीतियां लागू की गईं उनका कितना फायदा हुआ। उन्होंने आरसीटी यानी रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल किया तो उसमें भी इस बात पर ही फोकस था। इसके तहत उन्होंने रैंडम यानी अचानक दो श्रेणी के लोगों को चुना। एक श्रेणी के लोगों को सरकारी मदद दी गई और दूसरे को नहीं दी गई। फिर लंबे समय में उन्होंने दोनों श्रेणी के लोगों की स्थिति का अध्ययन किया। यह बिल्कुल वैज्ञानिक प्रयोग की तरह था। इसी के नतीजे के आधार पर उन्होंने सब्सिडी की बजाय सीधी मदद का सुझाव दिया।
बहरहाल, उनके सिद्धांत बहुत जटिल नहीं है, बल्कि व्यावहारिक हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि अपने पूर्वाग्रह छोड़ कर इन पर अमल करे।
(साई फीचर्स)

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.
अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.