जब पिता ने ही बेटे को ठग लिया

 

 

(जॉन डी रॉकफेलर)

उस दस साल के मासूम की आंखों में आंसू रोके नहीं रुकते थे। मुर्गियां बेचकर और पड़ोसियों के काम कर जो थोड़े पैसे जुड़े थे, उन्हें उसके ही बाप ने झूठ बोलकर हड़प लिया था। जब तक बेटा हुए नुकसान को अपनी उंगलियों पर जोड़ पाता, तब तक बाप वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था। पहला दुख तो यही था कि मेहनत की कमाई चली गई। दूसरा दुख यह कि सगे पिता ने ही ठग लिया, और तीसरा दुख यह कि पिता गए, तो अब न जाने कब लौटेंगे।

वह मासूम बाहर से जितना रो रहा था, उससे कहीं ज्यादा अंदर सिसक रहा था। मन हुआ कि मां के पास दौड़कर चला जाए, लेकिन ऐसा कोई पहली बार तो नहीं हुआ था। क्या यही वह पापा हैं, जिनका वह दो महीने से इंतजार कर रहा था कि पापा आएंगे, तो ये लाएंगे, वो खिलाएंगे, ढेर सारे किस्से सुनाएंगे। कल ही तो, दिनों बाद पिता को देख वह खुशी से चहक उठा था, पिता रात को रुके, फिर सुबह ही निकल पड़े। गए तो गए, फिर ठगी कर गए। कोई बाप अपने बेटे को ठगता है क्या? क्या कोई बाप ऐसा भी होता है क्या? वह मासूम जितना सोचे जा रहा था, उतना ही रोए जा रहा था। दूसरे बच्चों के भी पापा हैं, कितना प्यार करते हैं। साथ रहते हैं, घूमते-घुमाते हैं, उपहार देते हैं और न जाने क्या-क्या करते हैं। 

वह मासूम सोचते-सोचते दुख से बेबस कांप उठा। उसके ही पापा ऐसे क्यों हैं? आसपास कोई नहीं, जो उसके पापा की तारीफ करता हो। सभी उन्हें बुरा कहते हैं। सुना है कि पापा का कहीं एक और परिवार भी है। पापा ने न जाने कहां-कहां रिश्ते फंसा रखे हैं, तभी तो वह साथ नहीं रहते। सुबह आते हैं, तो शाम चले जाते हैं। कुछ देर अगर ठहरते भी हैं, तो शायद किसी को ठगने के लिए या फिर किसी से डॉलर ऐंठने के लिए। वह अपना मकसद पूरा होते ही झट निकल लेते हैं, जैसे आज अपने बेटे को ही बनाकर निकल गए। जब अगली बार आएंगे, तो मानेंगे भी नहीं कि ठगी कर गए थे। हर बार यह भी लगता है कि इस बार पापा नहीं ठगेंगे, लेकिन पापा हैं कि सुधरते नहीं। 

किसी के पापा इतने भी बुरे होते हैं क्या? मां ज्यादा बोलती नहीं है, लेकिन अंदर-अंदर सिसकती रहती है। उस मासूम को याद आया कि मां ने मजबूर होकर अपना क्या गम बयां किया था। कभी पिता लकड़हारा थे, फिर जड़ी-बूटी बेचने वाले स्वघोषित हकीम हो गए। घर-घर घूमकर बेचते थे। मां के घर भी सामान बेचने जाते थे, लेकिन गूंगा बनकर। सहानुभूति बटोरने के लिए स्लेट पर लिखकर अपनी बात कहते थे। एक गूंगे गबरू जवान को देख दया आती थी। मां के मन में ख्याल आया था कि अगर यह गूंगा न होता, तो शायद इससे शादी हो जाती। आते-जाते पिता ने मां के मन की बात जान ली और फिर अपना आधा सच बता दिया कि वह गूंगे नहीं हैं। बाकी का आधा और निर्णायक सच यह था कि पिता ने पता कर लिया था, शादी करने से ससुर से 500 डॉलर मिलेंगे। 

यह याद आते ही मां के लिए भी खूब आंसू उमडे़ थे। इतना बदनाम भी कोई होता है क्या? दिमाग में यह ख्याल आया कि यहां रहे, तो समाज में बदनामी भी होगी और बार-बार अपने के हाथों ठगे भी जाएंगे। पिता के चंगुल से मां नहीं निकल पाएगी, लेकिन कुछ तो करना ही होगा, ताकि ऐसे पिता का साया भी न पड़े। तब उस मासूम ने अपने दिल को मजबूत कर लिया और आंसू पोंछ लिए। यह सोचना शुरू किया कि यहां से कैसे भागा जाए

परिवार इतना दागदार था कि बाकी बच्चों के साथ सहज होने में परेशानी आती थी। स्कूल की पढ़ाई में मन नहीं लगता था, तो स्कूल छोड़कर उसने स्थानीय स्तर पर ही प्रबंधन का एक कोर्स किया। कोर्स करते ही महज 16 की उम्र में वह एक दिन घर से भाग छूटा। पिता के स्याह सायों से दूर उसने खुद को ऐसे खड़ा किया कि दुनिया बोल उठी, वाह, जॉन डी रॉकफेलर (1839-1937) तुमने कमाल कर दिया। तेल रिफाइनरी के उद्योग से वह पहले अमेरिका और फिर दुनिया का सबसे अमीर उद्यमी बन गया। 

बाप से दूर भागे बेटे की ख्याति इतनी ज्यादा हो गई कि बाप को न केवल छिपकर रहना पड़ा, बल्कि अपना नाम तक बदलना पड़ा। हालांकि यहां भी वह बाप, जिसे लोग शैतान बिल के नाम से जानते थे, अपनी आदत से बाज नहीं आया। उसने अपना नया नाम रखा – डॉ विलियम लेविंग्सटन। उसने अपनी सफाई में कहा था, हां, मैं अपने लड़कों को ठगने का एक मौका नहीं छोड़ता था। मैं उन्हें मजबूत बनाना चाहता था। खैर, वह बेटा कभी-कभी बाप से छिपकर मिलता तो था, लेकिन दिल में गम और नफरत की गांठ ऐसी थी कि वह बाप का कहीं जिक्र आते ही खामोशी ओढ़ लेता था। (लेखक सुविख्यात उद्योगपति रहे हैं)

(साई फीचर्स)