नाम के बिना तो ईश्वर भी नहीं!

 

 

(विवेक सक्सेईना)

एक खबर पढ़ने को मिली। इस लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की सफलता से प्रभावित होकर उत्तर प्रदेश के गोंड़ा जिले में एक मुस्लिम अभिभावक ने अपने नवजात शिशु का नाम उनसे प्रभावित होकर मोहम्मद नरेंद्र मोदी रख दिया। पिता दुबई में नौकरी करता है। उसके नाम के 12वें दिन पर उसका नामकरण करने के पहले पिता ने उसकी मां से फोन पर इस संबंध में लंबी बातचीत की। हालांकि उन दोनों के इस फैसले का गांव वालों। में काफी विरोध हुआ। चूंकि बेटा होने के पहले उनके दो बेटिया थी अतः अपनी इस उपलब्धि के कारण मां अपने फैसले पर अड़ी रही व उसने जन्म के बाद घर में अल्ताफ आलम बुलाए जाने वाले इस बच्चे का नाम मोहम्मद नरेंद्र मोदी रखने का फैसला किया।

यह नहीं सोचा कि इस नाम के व्यक्ति ने अपनी सगी पत्नी व मां तक को बुढ़ापे में साथ नहीं रखा। कल को यह मेरे साथ भी हो सकता है। इस खबर पर हंगामा होना स्वाभाविक था। अब गांव वाले उसे यह डरा रहे हैं कि हिंदू संगठन वाले आकर उसका बच्चा छीन ले जाएंगे।

हमारे समाज में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नाम की अपनी अलग अहमियत रही है। सारी दुनिया में बहुत सोच-समझ कर नाम रखे जाते हैं व इस मौके पर आमतौर पर विशेष आयोजन तक होता है। बच्चे का नाम रखने के पहले मां-बाप लंबी चौड़ी कवायद करते हैं। मुझे लगता है कि अगर इस मां ने इस फैसले के पहले असादुद्दीन औवेसी या मणि शंकर अय्यर सरीखे नेताओं की सलाह ली होती तो वे उसका नाम गौधरा सरीखा रखने को कहते।

दुनिया में हम बिना नाम के जी नहीं सकते हैं। अतीतकाल से यह परंपरा चली आ रही है। हमारे भगवान व उनकी औलदो तक के नाम होते थे। यही स्थिति राजा महाराजा के साथ भी रही। हमारे देश में नाम रखने की परंपरा दुनिया से अलग है। हर देवी देवता के सैकड़ो नाम है। चूंकि हनुमानजी को पवन का बेटा माना जाता है अतः उनको पवनपुत्र के नाम से भी बुलाया जाता है। इस तरह कलयुग में शाक (सब्जी) से उत्पन्न होने के कारण दुर्गा देवी को शाकंभरी भी कहा जाता है। उनका एक नाम रक्तदेता भी है।

हमारे समाज में बच्चे का नाम देवी-देवता या भगवान के नाम पर रखा जाना बहुत पुरानी परंपरा रही है। लोग इसी बहाने ईश्वर की याद करने की बात करते थे। यही वजह है कि पहले लोग बच्चे के नाम राम कुमार, रामच्रंद, लक्ष्मण दास, सीतारानी रखते थे।

फिर समय की हालात के अनुसार नाम रखने की परंपरा शुरू हुई आपातकाल के दौरान मीसा कानून में जेल में बंद रहने के कारण लालू प्रसाद यादव ने इस दौरान पैदा हुई अपनी बेटी का नाम मीसा रख डाला। इसी तरह वामपंथी नेता स्टालिन से प्रभावित करूणानिधि ने अपने बड़े बेटे का का नाम एमके स्टालिन रखा। आप की नेता का नाम आतिशी मारलीनी है। हालांकि अपने इस नाम के दौरान उन्हें चुनाव की दिक्कत हुई थी।

फिर कुछ लोगों ने अपने नाम काम धंधे के अनुसार रखने शुरू कर दिए। जैसे कि पेशे से पायलट राजेश्वर प्रसाद अपना नामांकन। भरते समय राजेश पायलट हो गए थे। फिल्म स्टारो द्वारा अपना नाम बदला जाना तो आम बात रही। अपराध जगत में अपराधी अपने नाम मेंटल-सुपारी, एके आदि रखते है। जोकि उनकी हरकतो या उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारो या इस तरह के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दो पर आधारित होते हैं।

मेनका गांधी ने तो अंकविद्या से प्रभावित होकर अपना नाम बदल कर मनेका गांधी रख डाला था। खास बात यह है कि हमारे समाज में कोई भी इतिहास में खलनायको या नायिकाओं के नाम पर अपने बच्चो के नाम नहीं रखना चाहता है। आपने रावण, कैकैयी, विभीषण या कंस नाम का शायद ही कोई व्यक्ति देखा है। लोग द्रौपदी नाम भी नहीं रखते हैं। मैंने अपने बेटे का नाम विनम्र रखा था। वह मुझे बाद में लड़ते हुए कहता था कि आधे लोग तो मेरा नाम तक सहीं नहीं लिख पाते व वी अक्षर होने के कारण किसी इंटरव्यू में मेरी बारी सबसे बाद में आती है।

राजीव गांधी का नाम तो कमल के ऊपर रखा गया था। मगर समय का फेर देखिए कि जीवन के अंतिम दिनो में वे बोफोर्स के कारण बदनाम कीचड़ में डूबे रहे। वहीं सीताराम युचूरी तो सबसे बड़े राम विरोधी है। एक कहानी सुनाता हूं। एक औरत को शादी के बाद पता चला कि उसके पति का नाम ठनठन गोपाल है। वह उनसे रोज अपना यह अजीब नाम बदलने के लिए कहती रही। एक दिन उससे परेशान होकर पति ने कहा कि तुम्हें जो नाम अच्छा लगे वह रख लो। नाम की खोज में वह घर से बाहर निकली। रास्ते में उसे कंधा पाथते हुए एक महिला मिली। औरत ने उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है, वह बोली लक्ष्मी, और आगे चलने पर उसे खेत जोतता हुआ किसान मिला। जब औरत ने उससे उसका नाम पूछा तो उसने बताया गोपाल। जब वह वापस घर लौटने लगी तो उसे एक शव यात्रा दिखी। औरत ने मरने वाले का नाम पूछा तो किसी ने बताया कि अमर। घर लौट कर पत्नी ने पति से कहा कि आपका नाम ठनठन गोपाल ही सबसे अच्छा है क्योंकि कंधा पाथे लक्ष्मी, हल जोते गोपाल (राजा), अमर थे तो मर गए। सबसे अच्छे मेरे ठन ठन गोपाल। यह है नाम की अहमियत।

(साई फीचर्स)

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