नागपंचमी की कथा और महूर्त के बारे में जानिए . . .

जानिए नाग पंचमी का शुभ महूर्त एवं नागपंचमी की कथा क्या है?
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की आरंभ 9 अगस्त 2024 को सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर हो रहा है और अगले दिन अर्थात 10 अगस्त को सुबह 6 बजकर 9 बजे पर समापन होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, 9 अगस्त को नाग पंचमी मनाया जाएगा।
अब जानते हैं पूजन का शुभ महूर्त इस दिन पूजा का विशेष मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 13 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर 1 बजे समाप्त होगा। इस दिन प्रदोष काल में नाग देवता की पूजा का बड़ा महत्व है। 9 अगस्त को शाम 6 बजकर 33 मिनिट से रात 8 बजकर 20 मिनिट तक नाग देवता की पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त रहेगा।
जानकार विद्वानों के अनुसार इस बार नाग पंचमी पर अनेक शुभ संयोग भी बन रहे हैं। इस साल नाग पंचमी के मौके पर शिववास योग, सिद्ध योग,साध्य योग,बव और बालव, करण योग और हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग में नाग पंचमी मनाई जाएगी।
जानिए नागपंचमी कालसर्प दोष के सरल उपाय क्या हैं। जानकार विद्वानों की मानें तो नागपंचमी के दिन घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं। इसकी विधिवत पूजा करें। इससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और कालसर्प दोष से होने वाली परेशानियां दूर होंगी। इसके अलावा नाग पंचमी के अवसर पर राहु और केतु के मंत्रों का जाप करना लाभकारी माना गया है। इस दिन राहु मंत्र ऊँ रां राहवे नमः और केतु मंत्र ऊँ कें केतवे नमः मंत्र का जाप करें।
इसके अतिरिक्त नागपंचमी के दिन श्रीमद भागवत पुराण और श्री हरिवंश का पाठ भी लोगों के द्वारा करवाया जाता है। माना जाता है कि इससे जीवन के सभी दुख-कष्टों से छुटकारा मिलता है। नागपंचमी के दिन भैरव बाबा की पूजा करना भी शुभ होता है। इस दिन भैरव बाबा को पूजा के दौरान कच्चा दूध चढ़ाएं। इस शुभ मौके पर नागदेवता या शिवमंदिर में जाकर झाड़ूं लगाएं। धर्म स्थल की सीढ़ियों पर पौछा लगाएं।
आईए जानते हैं पूजन की विधि प्रातः उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ। इसके पश्चात स्नान कर साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजन के लिए सिंवई चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। देश के कुछ हिस्सों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाएं, फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसी आकृति बनाएं और उसमें नागदेवों की आकृति बनाएं। कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजें। सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ाकर आएं। और फिर दीवाल पर बनाए गए नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाएं और इसके बाद आरती कर कथा का श्रवण जरूर करें।
नागपंचमी के दिन क्या करना चाहिए। इस संबंध मंें जानकार विद्वानों का कहना है कि इस दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिए। बांबी अर्थात नागदेव के निवास स्थान की पूजा करना चाहिए। नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है। ऊॅ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।
नाग पंचमी की कथा इस प्रकार है। प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया अर्थात खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा कि उस सर्प को न मारा जाए, यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा कि हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो। यह सुनकर उसके ससुराल वालों ने कहा कि इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि श्महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दोश्। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।
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(साई फीचर्स)

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