उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने विकास के मामलों में राजनीति करने के प्रति सचेत किया

श्री जगदीप धनखड़ ने कहा, ”जब भी हम देश से बाहर जाते हैं तो हम अपने देश के राजदूत होते हैं

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, राष्ट्र-विरोधी यात्राएं हमारी सामूहिक पहचान को कमजोर करती हैं

उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने बल देकर कहा, भारत के स्वास्थ्य को नष्ट करना भारत माता के सीने में खंजर घोंपने से कम नहीं है

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, अटलजी के कार्य एक ही लक्ष्य द्वारा निर्देशित थे- मेरा भारत महान, मेरा भारत, मेरा राष्ट्रवाद

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने सिलवासा के डोकमार्डी सभागार में सार्वजनिक समारोह को संबोधित किया

(ब्यूरो कार्यालय)

सिलवासा (साई)। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने देशवासियों से 24 घंटे राजनीति का शिकार न होने की अपील की। श्री धनखड़ ने कहा, “राजनीति राष्ट्र से ऊपर नहीं हो सकती। विकास के मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए. हम राष्ट्रवाद, राष्ट्र की प्रगति और विकास के मूल्य पर अत्यधिक राजनीति का शिकार नहीं हो सकते।

श्री धनखड़ ने आज दादर और नगर हवेली तथा दमन और दीव के सिलवासा में डोकमर्डी ऑडिटोरियम में सार्वजनिक समारोह में एक सभा को संबोधित किया। उपराष्ट्रपति महोदय ने अपने संबोधन में विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व करते समय राष्ट्र की गरिमा और गौरव को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ”किसी को भी भारत के बाहर जाकर भारत के बारे में बुरा बोलने, भारत के दुश्मनों के साथ बैठने का अधिकार नहीं है। जब भी हम देश से बाहर जाते हैं तो हम देश के राजदूत होते हैं, राष्ट्रवाद के अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकते।

विदेशों में भारत की छवि खराब करने वाले व्यक्तियों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “आज, हम चिकित्सा पर्यटन और सफारी पर्यटन को फलते-फूलते देख रहे हैं, लेकिन राष्ट्र-विरोधी पर्यटन क्यों हो रहा है? अगर हम विदेश जाते हैं और अपने देश के बारे में बुरा बोलते हैं, तो यह अस्वीकार्य है। ऐसा व्यवहार न केवल देश को हानि पहुँचाता है बल्कि हमारी सामूहिक पहचान को भी कमज़ोर करता है।

उपराष्ट्रपति महोदय ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुकरणीय आचरण का हवाला देते हुए, उस समय की ओर इशारा किया जब विपक्ष के नेता होते हुए भी श्री वाजपेयी जी ने विदेश में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, और उस समय देश में कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, “अटलजी के कार्य एक ही लक्ष्य – मेरा भारत महान है, मेरा भारत, मेरा राष्ट्रवादद्वारा निर्देशित थे।”

श्री धनखड़ ने सभी क्षेत्रों में निरंतर सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “हर चीज में विकास की गुंजाइश है। हर दिन, हम देखते हैं कि हम आज जो कुछ भी करते हैं, वह कल के लिए बेहतर होना चाहिये।” उन्होंने देश की प्रगति को आगे बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया, लेकिन देश और उसके लोगों के स्वास्थ्य से समझौता करने वाले कार्यों के प्रति सचेत भी किया। उन्होंने घोषणा की, “भारत के स्वास्थ्य को नष्ट करना भारत माता के सीने में खंजर घोंपने से कम नहीं है और इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

स्थानीय स्तर पर उत्पादित की जा सकने वाली आयातित वस्तुओं के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रश्न पूछते हुए उन्होंने कहा, “हम मौद्रिक लाभ के लिए विदेशी वस्तुओं का उपयोग क्यों करते हैं? क्या हमारे देश में फर्नीचर विदेश से आएगा? क्या बोतलें विदेश से आएंगी? यहां तक ​​कि पतंग, दीया, मोमबत्तियां और कपास भी अब विदेशों से आ रहे हैं।”

उन्होंने इस प्रथा की तीन प्रमुख हानियों पर प्रकाश डाला: विदेशी मुद्रा की कमी, घरेलू कर राजस्व की हानि और भारतीय उद्यमियों के लिए समाप्त होने वाले अवसर जो बढ़ने और पनपने चाहिए थे। उपराष्ट्रपति महोदय ने इस तथ्य पर अफसोस व्यक्त किया कि आयातित वस्तुओं पर ऐसी निर्भरता अल्पकालिक आर्थिक लाभ से प्रेरित हैं और अंततः देश की दीर्घकालिक समृद्धि को नुकसान पहुंचाती हैं।

श्री धनखड़ ने समानता और सामाजिक गतिशीलता की दिशा में भारत की अविश्वसनीय यात्रा को दर्शाते हुए, विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को नेतृत्व के उच्चतम पदों तक पहुंचने के लिए सशक्त बनाने में देश की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, “गरीबी के बावजूद एक चाय बेचने वाला भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन गया? एक किसान का बेटा उपराष्ट्रपति कैसे बन गया? जनजातीय पृष्ठभूमि की एक महिला देश की राष्ट्रपति कैसे बन गई?”

उन्होंने वर्ष 1990 में एक मंत्री के रूप में जम्मू-कश्मीर की अपनी यात्रा का स्मरण करते हुए तब और अब के बीच दिखाई दिए काफी अंतर की ओर इशारा किया। उन्होंने एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में क्षेत्र के महत्वपूर्ण पुनरुत्थान को रेखांकित करते हुए कहा, “उस समय, मैंने अपनी यात्रा के दौरान 30 लोगों को नहीं देखा था और इस वर्ष, 2 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर की यात्रा की है।”

श्री धनखड़ ने किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से सरकार की पहल का हवाला देते हुए भारत के कृषि क्षेत्र की वृद्धि और विकास की भी प्रशंसा की। उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, “आज, 10 करोड़ किसानों को साल में तीन बार सीधे भुगतान मिलता है।”

इस अवसर पर केंद्रशासित प्रदेश दादर और नगर हवेली तथा दमन और दीव तथा लक्षद्वीप के माननीय प्रशासक श्री प्रफुल्ल पटेल, दादर और नगर हवेली की माननीय सांसद श्रीमती डेलकर कलाबेन मोहन भाई और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।