(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। 64वें राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय पाठ्यक्रम के संकाय और पाठ्यक्रम सदस्यों ने 1 अक्टूबर को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात की।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि गतिशील वैश्विक भू-राजनीतिक वातावरण हमारे समक्ष अनेक चुनौतियां प्रस्तुत करता है। हाल के दिनों में जिस तेज गति से घटनाक्रम हुए हैं, शायद एक दशक पहले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। इसलिए, सभी अधिकारी, चाहे वे सिविल सेवा से हों या रक्षा सेवाओं से, उन्हें अपने सामने आने वाली चुनौतियों और कमजोरियों के बारे में पता होना चाहिए। इतना ही नहीं, उन्हें उन शक्तियों के बारे में भी पता होना चाहिए, जो ऐसी चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकती हैं। एक शक्ति, जो उनके पास निश्चित तौर पर होनी चाहिए और उस शक्ति के बिना वे कुछ नहीं कर सकते। वह शक्ति है – अपने संगठनों, देशों और बड़े पैमाने पर मानवता की भलाई के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने में सक्षम होना। नवाचार एक और कारक है, जो उन्हें भविष्य के लिए तैयार रखेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज सुरक्षा संबंधी हमारी चिंताएं, क्षेत्रीय अखंडता के संरक्षण से आगे बढ़कर राष्ट्रीय कल्याण के अन्य क्षेत्रों, जैसे आर्थिक, पर्यावरणीय, ऊर्जा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा मुद्दों को भी शामिल करती हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए गहन अनुसंधान की आवश्यकता है और इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि साइबर हमले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरे हैं। साइबर हमलों से निपटने और उनका मुकाबला करने के लिए उच्च-स्तरीय तकनीकी क्रियाकलाप के साथ-साथ मजबूत डिजिटल बुइंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ अच्छी तरह से प्रशिक्षित और विशेषज्ञ मानव संसाधन की आवश्यकता होती है। यह उन क्षेत्रों में से एक है, जहां सिविल सेवाओं और सशस्त्र बलों को ऐसे हमलों को विफल करने में सक्षम एक सुरक्षित राष्ट्रव्यापी प्रणाली बनाने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तकनीकी विकास ने देशों के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को स्थापित करना और उसका इस्तेमाल करना अनिवार्य बना दिया है। शासन प्रणालियों में बड़े पैमाने पर डेटा और संवेदनशील जानकारी भी उपलब्ध है, जिसे असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने सभी से इस मुद्दे की गंभीरता को समझने और इसका समाधान करने के लिए ठोस उपाय करने का आग्रह किया।