(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। हॉलीवुड फिल्मों में आपने जॉम्बी कैरेक्टर देखा होगा। वायरस या बैक्टीरिया के चलते इंसानों की मानसिक क्षमता को कम करने की प्रवृत्ति को जॉम्बी से जोड़कर देखा जाता है। आज पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है क्योंकि फ्रेंच वैज्ञानिकों ने 48,500 साल पुराने जॉम्बी वायरस को जिंदा कर दिया है।
यह अब तक रूस में एक जमी झील के नीचे दफन था। दो साल तक कोरोना महामारी झेल चुकी दुनिया में यह एक नए खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। जिनके बारे में इंसानों को पता ही नहीं था वे अब बर्फ से निकल रहे हैं। हिमालय में दो ग्लेशियरों में बर्फ के नीचे दफन ऐसे दर्जनों वायरस पिछले साल पाए गए थे। चीन के वुहान की तरह रूस के झील की भी चर्चा होने लगी है। वैज्ञानिकों को डर है कि एक और महामारी आ सकती है।
बर्फ के नीचे क्या है?
दरअसल, ग्लेशियर के बनने की एक प्रक्रिया है। समय के साथ बर्फ पर बर्फ चढ़ती जाती है। धूल के कण और गैसों के साथ बर्फ मोटी होती जाती है। अब बर्फ पिघली तो नीचे छिपी चीजें नए राज उगल रही हैं। इससे वैज्ञानिकों को हजारों साल पहले के वातावरण के बारे में भी नई जानकारी मिल सकती है। वायरस भी उस समय के वातावरण का एक हिस्सा है। ग्लेशियर की बर्फ अपनी कोख में पुराना इतिहास छिपाए हुए है। भविष्य में जलवायु में होने परिवर्तन का ये संकेत भी देते हैं।
स्टडी में बताया गया है कि किसी प्राचीन गुमनाम वायरस के जिंदा होने से पौधे, जानवरों या इंसानों में बीमारी के रूप में हालात कहीं ज्यादा विनाशकारी हो सकता है। दुनिया में बढ़ रहा तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती सतह के नीचे स्थायी रूप से जमी बर्फ की लेयर (Permafrost) के विशाल क्षेत्रों को पिघला रही है। यही फ्रोजेन ग्राउंड उत्तरी गोलार्ध के एक चौथाई हिस्से में है। इसके चलते लाखों सालों से जमी ऑर्गेनिक चीजें बाहर आ रही हैं, जिसमें संभवत: घातक जर्म्स भी हो सकते हैं। 2013 में साइबेरिया में 30,000 साल पुराने वायरस की पहचान की जा चुकी है। सबसे पुराना पैंडोरावायरस येडोमा 48,500 साल पुराना है। यह रेकॉर्ड उम्र इस बात को बताती है कि बर्फ के नीचे छिपा वायरस कितने लंबे समय तक जीवित रह सकता है। स्टडी में कुल 13 वायरस की बात की गई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी ‘जॉम्बी वायरस’ में संक्रमित करने की क्षमता है और ऐसे में ये स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। उनका मानना है कि कोविड-19 की तरह की महामारी भविष्य में आम बात हो जाएगी क्योंकि ग्लेशियर के पिघलने से लंबे समय तक निष्क्रिय रहने वाले वायरस जिंदा हो सकते हैं। एक्सपर्ट कह रहे हैं कि प्राचीन वायरल पार्टिकल के संक्रामक बने रहने से खतरे की आशंका बेबुनियाद नहीं है।
आगे क्या होगा, पता नहीं
दुर्भाग्य से, ग्रीनहाउस इफेक्ट से बर्फ पिघल रही है और ये खतरा बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यह गुमनाम वायरस प्रकाश, गर्मी, ऑक्सीजन और अन्य चीजों के संपर्क में आने पर किस तरह से संक्रामक हो सकता है, यह जानने के लिए ज्यादा रिसर्च की जरूरत है।
ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट में फ्रांस के वायरॉलजिस्ट मिशल क्लेवरि लाखों सालों तक बर्फ की तहों में वायरस के जिंदा रहने की बात पर यकीन करते हैं। 2020 में छपी एक रिपोर्ट में क्लेवरि कहते हैं कि बर्फ में बैक्टीरिया के लंबे समय तक जिंदा रहने की बात निश्चित तौर पर यकीन करने लायक है। बहस इस बात को लेकर है कि आखिर कितने समय तक? क्या यह अवधि करोड़ों साल की है? या 5 लाख साल? या फिर 50 हजार साल? वह कहते हैं कि इस पर ठीकठाक रिसर्च है कि बर्फ के बड़े ग्लेशियरों में वह कई सालों तक जीवित रहते हैं।
भारत को भी टेंशन
अगर आपको लग रहा हो कि मामला रूस का है, भारत को क्या दिक्कत? तो आप गलत हैं। कोरोना वायरस का कहर हम देख ही चुके हैं। एक साल पहले भी ग्लेशियरों पर स्टडी करने वाले वैज्ञानिकों ने 33 वायरसों का पता लगाया था जो 15,000 साल से बर्फ के नीचे दबे थे। इनमें से 38 नॉवेल वायरस थे, जिसके बारे में इंसानों को कम पता था। पिछले साल तिब्बती ग्लेशियर में नए वायरस पाए गए थे। समुद्र के स्तर से 22,000 फीट ऊपर तिब्बत से बर्फ के सैंपल लिए गए थे। तब शोधकर्ताओं ने कहा था कि ये वायरस मिट्टी या पौधे से पैदा हुए होंगे। यह भी जान लीजिए कि सार्स-कोव-2, कोरोना वायरस भी नोवेल था और पहले इसके बारे में दुनिया को जानकारी नहीं थी। 2019 में महामारी फैलने के बाद दुनिया में लाखों लोगों की मौत हुई। हिमालय से लेकर सुदूर रूस के बर्फीले ग्लेशियरों में हो रही वायरसों की खोज आने वाले कल के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रही है।